जैसी रही भावना जिसकी, पूरी हुई मनोकामना उसकी

29 Jul 2015

एक बार भगवान बुद्ध एक शहर में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने प्रवचन के बाद आखिर में कहा, 'जागो! समय हाथ से निकला जा रहा है।' इस तरह उस दिन की प्रवचन सभा समाप्त हो गई।

सभा के बाद तथागत ने अपने शिष्य आनंद से कहा, थोड़ी दूर घूम कर आते हैं। आनंद, भगवान बुद्ध के साथ चल दिए। अभी वे विहार के मुख्य द्वार तक ही पहुंचे ही थे कि एक किनारे रुक कर खड़े हो गये।

प्रवचन सुनने आये लोग एबाहर निकल रहे थे, इसलिए भीड़ का माहौल था, लेकिन उसमें से निकल कर एक स्त्री तथागत से मिलने आई। उसने कहा, 'तथागत मैं नर्तकी हूं'। आज नगर के श्रेष्ठी के घर मेरे नृत्य का कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन मैं उसके बारे में भूल चुकी थी। आपने कहा, ' जागो समय निकला जा रहा है तो मुझे तुरंत इस बात की याद आई।'

उसके बाद एक डाकू भगवान बुद्ध से मिला उसने कहा, 'तथागत मैं आपसे कोई बात छिपाऊंगा मै भूल गया था कि आज मुझे एक जगह डाका डालने जाना था कि आज उपदेश सुनते ही मुझे अपनी योजना याद आ गई।'

इस तरह एक बूढ़ा व्यक्ति बुद्ध के पास आया वृद्ध ने कहा, 'तथागत! जिन्दगी भर दुनिया भर की चीजों के पीछे भागता रहा। अब मौत का सामना करने का दिन नजदीक आता जा रहा है, तब मुझे लगता है कि सारी जिन्दगी यूं ही बेकार हो गई।

आपकी बातों से आज मेरी आंखें खुल गईं। आज से मैं अपने सारे मोह छोड़कर निर्वाण के लिए कोशिश करूंगा।

जब सब लोग चले गए तो भगवान बुद्ध ने कहा, 'आनंद! प्रवचन मैंने एक ही दिया, लेकिन उसका हर किसी ने अलग अलग मतलब निकाला।'

संक्षेप में

कहने का तात्पर्य यह है कि जिसकी जितनी झोली होती है, उतना ही दान वह समेट पाता है। निर्वाण प्राप्ति के लिए भी मन की झोली को उसके लायक होना होता है। इसके लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरूरी है। इस प्रेरक प्रसंग में भी ऐसा ही है।



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