दारा का मंत्री पद पाने की दुष्कर हुई राह
08 Sep 2023
- सपा ने ऐतिहासिक मतों से जीतने का बनाया रिकॉर्ड
- शुरू से अंत तक सुधाकर सिंह की बढ़त रही बरकरार
- ओमप्रकाश को थी लोस चुनाव में चार सीट की ललक
सुभाष यादव
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मऊ : घोसी विधानसभा सीट की मतगणना की शुरुआत से ही इंडिया गठबंधन के घटक सपा के प्रत्याशी सुधाकर सिंह की बढ़त अंत तक बनी रही। सपा प्रत्याशी की इस एकतरफा बढ़त को रोक पाना या कम कर पाना भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के लिए दूर की कौड़ी साबित हुआ। इस हार ने विधायकी छोड़ मंत्री पद पाने की दारा सिंह की हसरत को चकनाचूर कर दिया।
मंत्री बनाने का जोखिम नहीं लेना चाहेगी भाजपा
कुल 33 राउंड तक चली मतगणना में शुरुआती राउंड से अंत तक सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह भाजपा के दारा सिंह चौहान पर लगातार भारी होते गए। अंतिम चरण में उन्होंने ऐतिहासिक 42 हजार 672 मतों से भाजपा के दारा सिंह चौहान को मौत दे दी। इस हार के साथ ही दारा सिंह चौहान का फिर से मंत्री बनने का सपना चकनाचूर हो गया। लोगों का कहना है कि दारा की विधायकी भी चली गई और उनका मंत्री पद भी काफी दूर हो गया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पराजय के बाद अब दारा सिंह चौहान के मंत्री बनने की राह आसान नहीं रह गई है क्योंकि पराजित नेता को मंत्रिमंडल में शामिल करने से क्षेत्र की जनता से मिले जनादेश का अनादर होगा। भाजपा छोड़ सपा में गए फिर सपा छोड़ भाजपा में आए दारा सिंह चौहान को दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल कर भाजपा नेतृत्व एक और जोख़िम नहीं उठाना चाहेगा।
घोसी की हार भाजपा के लिए गंभीर चिंतन का विषय
मंत्री बनने की चाह में दारा सिंह चौहान का ताश के पत्तों की तरह दल बदलने का दाव उल्टा पड़ गया। सिर्फ दारा सिंह चौहान के लिए ही नहीं अभी तो भाजपा नेतृत्व के लिए भी यह गंभीर चिंतन का विषय हो गया है क्योंकि दारा सिंह को जिताने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत लगा रखी थी। हर जाति के मंत्री को चुनाव प्रचार में लगा दिया गया था फिर भी हार का सामना करना पड़ा। घोसी विधानसभा सीट का हारना भाजपा के लिए गंभीर चिंतन का विषय हो गया है। कहां तो भाजपा दारा सिंह चौहान को इस सीट से जिताकर प्रदेश के अन्य क्षेत्र के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में चुनावी लाभ लेने की मुहिम में जुटी थी लेकिन दारा की हार ने सब गुड गोबर कर दिया।
ओमप्रकाश का भी मंत्री बनना लग रहा दिवास्वप्न
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि घोसी जैसी चौहान बहुल विधानसभा सीट पर इतनी मेहनत के बाद भी दारा चौहान चुनाव नहीं जीत सके तो भला वह आसपास की सीटों पर भाजपा को जिताने में सहायक कैसे साबित हो सकते हैं? अगर लोकसभा में भाजपा की जीत में दारा सिंह चौहान सहायक नहीं हो सकते तो फिर उन्हें हारने के बावजूद मंत्री बनाने का जोखिम भला भाजपा क्यों ले सकती है? इधर यही हाल सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर का भी है। भाजपा ने भी ओमप्रकाश राजभर को यह सीट जीतने के लिए टारगेट दे रखा था, जिसमें वह सफल नहीं हो सके। इस सीट को जीतने के लिए ओमप्रकाश राजभर ने भी पूरी क्षमता लगा दी थी क्योंकि उन्हें लोकसभा चुनाव में चार सीटें पानी की ललक थी, जो दारा सिंह चौहान की हार के साथ ही धूलधूसरित हो गई। इसके साथ ही उनके भी मंत्री बनने का सपना भी दिवा स्वप्न जैसा प्रतीत होने लगा है।