शब्द को कर्म से जोड़ा मैनेजर पांडेय ने 

09 Nov 2022

-हिन्दी साहित्य के आलोचक के निधन पर श्रद्धांजलि गोष्ठी 

बुलंद आवाज ब्यूरो
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मऊ :
हिंदी साहित्य के आलोचक मैनेजर पांडेय के निधन से साहित्यकार मर्माहत हैं। जन संस्कृति मंच ने राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ पर श्रद्धांजलि गोष्ठी का आयोजन किया। जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, किसान संग्राम समिति, वामपंथी दलों व जन संगठनों ने श्रद्धांजलि दी। 
भक्ति आंदोलन व सूरदास पर किया शोध 
गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रमुख वक्ता रामधन दामोदर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. संजय राय ने कहा कि गोपालगंज (बिहार) नारायणी नदी के किनारे लोहटी गांव में मैनेजर पांडेय का जन्म हुआ था। वाराणसी में अध्ययन के दौरान जगन्नाथ शर्मा के साथ पाण्डेय जी ने भक्ति आंदोलन और सूरदास विषय पर शोध कार्य किया। भक्ति आंदोलन में किसानों के संघर्ष की चेतना की तलाश उनकी सूक्ष्म नजर को प्रमाणित करती है। बरेली कॉलेज बरेली और जोधपुर विश्वविद्यालय में प्राध्यापन करने के पश्चात वह जेएनयू आए। वहां उनकी प्रतिभा दिनोंदिन परवान चढ़ती रही। समकालीन साहित्य के साथ भक्ति काल और रीति काल के साहित्य पर पांडेय जी ने सर्वथा नवीन दृष्टि से विचार किया और नवीन स्थापनाऐं दी। आमतौर पर हिंदी साहित्य के रीतिकाल को राग और रंग का साहित्य कहा जाता है लेकिन मैनेजर पांडेय वहां भी अपनी सूक्ष्म दृष्टि से समकालीन चेतना के बीज तलाशे।  
हिन्दी समाज रहेगा ऋणी
डॉ. संजय राय ने कहा कि मैनेजर पांडेय जब जेएनयू से अवकाश ले रहे थे तो उनके विदाई समारोह में बोलते हुए नामवर सिंह ने कहा कि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनकी जगह दिगंत भी नहीं भर सकता। भारतीय भाषा केंद्र के बारे में मैं यही कह सकता हूं। बेशक पांडेय जी जैसा कोई न तो है और न तो दूसरा होगा। ऐसा व्यक्ति जो बिना किसी लाभ-लोभ के बेबाकी के साथ साहित्यिक सच कहा हो। आलोचना को निहायत समकालीनता के कैद से मुक्त किया हो। साथ ही जरूरी समकालीन सवालों की अनदेखी पर सवाल उठाया हो। भाषा में चमत्कार की जगह शब्द को कर्म से जोड़ा हो। अखबारी आलोचना और गंभीर आलोचना में मिट रहे फर्क को सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप से जाहिर कर आलोचना को लोकधर्मी बनाया हो। हिंदी आलोचना पर पांडेय जी के यह शुभ प्रभाव हैं। हिंदी समाज जिनका सदैव ऋणी रहेगा।
दलित विमर्श पर यादगार भूमिका 
अन्य वक्ताओं ने कहा कि दलित विमर्श पर मैनेजर पांडेय का मानना था कि दलित रचनाओं को परंपरागत प्रतिमानों से नहीं समझा जा सकता। उन्हें दलित सौंदर्यशास्त्र की आवश्यकता है, जिसका विकास नहीं हुआ है। डॉक्टर पांडेय का मानना था कि सामाजिकता और नई चेतना की तलाश और उसकी प्रासंगिकता आलोचना के समक्ष आज सबसे बड़ी चुनौती है। परंपरा का विश्लेषण और उसका पुनर्मूल्यांकन भी आज नए सिरे से किया जाना चाहिए। मौजूदा दौर में चल रहे दलित विमर्श और स्त्री विमर्श में डॉक्टर मैनेजर पांडेय की भूमिका को महत्व के साथ याद किया जाएगा।
इन्होंने भी रखे विचार 
गोष्ठी को प्रमुख रूप से अब्दुल अजीम खान, राम अवतार सिंह, वीरेंद्र कुमार, अजय कुमार मिश्र, रामू प्रसाद, शमशुलहक चौधरी, मरछू राम प्रजापति, बसंत कुमार, प्रमोद यादव ने संबोधित किया। गोष्ठी की अध्यक्षता अनुभव दास और संचालन जयप्रकाश धूमकेतु ने किया।
 



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