कविता : मेरी चाहत मधुशाला

06 May 2022

तनहा तनहा जीता हूं
घूंट घूंट दो घूंट पीता हूं 
दिन रात तलब रहती है 
मदिरा मन में बहती है 
हरदम हो हलक में हाला l
मन का मंदिर मधुशाला ll

तुझको जो ना देखू तो
तुझको जो ना सोचू तो
दिल की बेचैनी बढ़ती
जब भी है आंखें खुलती
बस ध्यान रहे प्रिय प्याला l
 मेरी राहत मधुशाला ll

दिन में तारे दिख जाएं
घर बार भले बिक जाए
रिश्ते नाते टूट जाए
मेरे अपने छूट जाए
चाहे दामन हो काला।
मेरी चाहत मधुशाला ll

गेहूं चावल की बोरी
सब कुछ करके चोरी
नून तेल की डिबिया बेचूं
और बच्चो की दूध कटोरी

निकले जो मूंह में छाला।

 मेरी हो दवा मधुशाला।।

प्रस्तुति : अखिलानंद यादव

रतनपुरा, मऊ।



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