मऊ में बौद्धिकों ने किया पूंजीवाद पर प्रहार
16 Apr 2022
-बुद्ध, सांकृत्यायन व अंबेडकर के रास्ते होकर परंपरा की नव्यता पर हुई विचार गोष्ठी
बुलंद आवाज ब्यूरो
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मऊ : बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर की जयंती व राहुल सांकृत्यायन की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ के लाइब्रेरी हाल में परंपरा की नव्यता बरास्ते बुद्ध, राहुल सांकृत्यायन, डॉ. बी आर अंबेडकर विषयक विचार गोष्ठी हुई।
परिवर्तन स्थाई तत्व : प्रो.गोपाल प्रधान
मुख्य अतिथि अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रोफेसर गोपाल प्रधान ने कहा कि पूंजीवाद की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह हमारे दिमाग में यह विचार स्थापित कर देती है कि वह शाश्वत है। मनुष्य को हमेशा से पूंजी की जरूरत रही है। इसलिए पूजी हमेशा बनी रहेगी। कोई भी जो व्यवस्था होती है वह सबसे पहले मनुष्य के दिमाग पर इसी तरह से कब्जा जमा लेती है कि वह शाश्वत है। मानव स्वभाव के अनुकूल है। वह हमेशा बनी रहेगी। इसलिए पूंजी ही मनुष्य के स्वभाव का स्वभाविक तंत्र है। जो भी शासन हो वह हमेशा इस बात को स्थापित करने की कोशिश करता है कि उसका तंत्र शाश्वत है। हमेशा से बना हुआ है। मनुष्य के शासन के अनुकूल है। इसलिए उसमें बदलाव नहीं हो सकता।
लोकतंत्र निर्माण में पूंजीपतियों का योगदान नहीं
उन्होंने कहा कि परिवर्तन ही एक स्थाई तत्व है। परिवर्तन सत्य है। परिवर्तन ही किसी अत्याचारी शासन के प्रतिरोध का भी रास्ता तैयार करता है। शिक्षा के क्षेत्र में एक तरह की वर्ण व्यवस्था जन्म ले रही है, क्योंकि बड़े-बड़े लोगों के बेटे ही बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ सकते हैं। जो लोकतंत्र है सीमित ही सही उस लोकतंत्र के निर्माण में पूंजीपतियों का रत्ती भर योगदान नहीं है, क्योंकि पूंजी की कोई भी संस्था लोकतांत्रिक नहीं होती है। पूंजी के स्वभाव में ही लोकतंत्र नहीं है। इसलिए उसने हमेशा लोकतंत्र के साथ एक दुश्मनी बरती है।
परंपरा को नवीनता प्रदान करने का समय
उन्होंने कहा कि परंपरा को फिर से एक नवीनता प्रदान करने का समय है। जो अंबेडकर समर्थक ताकतें हैं वह भी अपनी तरह से उस परंपरा को नवीनता प्रदान कर रही हैं। हमें उनको समझने की जरूरत है और खुद भी यह जो संघर्षों की परंपरा है लोकतंत्र के पक्ष में इस पूंजी के हाथ से छीन लेना है। पूंजी ने लोकतंत्र कभी नहीं दिया है वह केवल और केवल मजदूरों के संघर्ष के बल से हासिल हुआ है।
मनुष्यता की लड़ाई लड़ी अंबेडकर ने : डा.संजय राय
डा.संजय राय ने अंबेडकर और सांकृत्यायन के सामाजिक संघर्षों और सामाजिक सरोकारों पर चर्चा की। कहा कि उन्होंने मनुष्य को मनुष्यता एवं मानवीय गरिमा दिलाने के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़ी। केवल विचार ही नहीं दिया, सड़क पर खड़े होकर संघर्ष किया। आलोचनाएं भी सही। यहां तक की उपर फेंके गये कीचड़-पत्थर को भी सहा। प्रश्न यह है कि जब आज हम राहुल और अंबेडकर को याद कर रहे हैं तो केवल हम उनकी जन्मतिथियों व निर्वाण तिथियों को मिलाकर किसी परंपरा का चयन नहीं कर सकते। परंपराओं का चयन तो होता है हमारे जीवन के प्रश्नों में और ज्वलंत प्रश्नों में।
मुठभेड़ बिना नहीं बढ़ सकती विकास यात्रा : जयप्रकाश
आजमगढ़ से आए विशेष अतिथि जयप्रकाश नारायण ने कहा कि बिना किसी नायक से मुठभेड़ किए मनुष्य की विकास यात्रा आगे बढ़ नहीं सकती, वह जड़ हो जाएगी। इसलिए हमें आज नायकों से मुठभेड़ में जाना होगा। आज के प्रश्न में यह सवाल बहुत बड़ा है कि आप उससे मुठभेड़ करते हैं कि नहीं। परंपरा के नाम पर नवरात्रि के दस दिनों में भारतीय लोकतंत्र की जड़ें खोद कर फेंक दी गई। न कानून, न राज, न संस्थान, न कोई मूल्य, न कोई भय, नहीं कोई जड़, सारी चीजें जो संविधान में विभाजित भी की गई थी न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका वह सब बुलडोजर के अधीन ला दी गई हैं। राहुल सांकृत्यायन और डॉक्टर अंबेडकर बीसवीं सदी के नायक हैं। बीसवीं सदी बहुत जटिल और तूफानी सदी है। यह 18वीं सदी के तूफानी दौर से आगे बढ़ी है। वह तूफानी क्रांति पूंजी और श्रम के टकराव से जन्म ली थी। अब पूजी श्रम को मुक्त करना चाहती है। धर्म आज के सवालों का समाधान नहीं हो सकता, चाहे उसमें कितने भी मानवीय मूल्य हों।
न्यायविरोधी मूल्यों को बेदर्दी से तोड़ें : शिवचंद राम
अध्यक्षीय संबोधन में सेवानिवृत्त जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी शिवचंद राम ने कहा कि आखिर वह कौन सी परंपराएं और मूल्य थे, जिनके रास्ते राहुल, गौतम बुद्ध और अंबेडकर को गुजरना पड़ा होगा। एक लंबे समय तक वह परंपराएं चलीं। शब्दों से कोई बात हो तो ईश्वरवाद की परंपरा, अन्याय की परंपरा, शोषण की परंपरा, गैर बराबरी की परंपराएं परंपराओं का एक रूप ले चुकी थीं। इन तीनों नायकों ने जो प्रचलित मानव विरोधी परंपराएं थी उनको बड़ी बेरहमी से तोड़ा। जो परंपराएं जिसे भले धर्म मान्यता दे रहा हो, बड़ी संस्थाएं भी मान्यताएं दे रही हों, बहुत सारे लोग भी मान्यताएं दे रहे हों वह मानवता विरोधी है। आज के आधुनिक जीवन मूल्य स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व न्याय के विरोधी हां तो उसको जितनी जल्दी हो सके बेरहमी व बेदर्दी से तोड़ देने का संकल्प लेना चाहिए। गोष्ठी में वीरेंद्र यादव एडवोकेट, प्रेमचंद कौशल एडवोकेट, रमेश मौर्य जसम आजमगढ़, रामविलास भारती ने भी अपने अपने विचार रखे। कथाकार हेमंत कुमार ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया। संचालन जयप्रकाश धूमकेतु ने किया।
इनकी रही प्रमुख उपस्थिति
गोष्ठी में प्रमुख रूप से अजय राय, मोती प्रधान, अनुभव दास, अब्दुल अजीम खां, राम अवतार सिंह, अर्चना उपाध्याय, विरेंद्र कुमार, ओमप्रकाश सिंह, रामकमल राय, रामू प्रसाद, अरविंद मूर्ति, बसंत कुमार, अजय कुमार मिश्रा, कल्पनाथ आदि शामिल रहे।