मऊ के लाल : डा.नम्रता ने किया चरितार्थ, बेटों से बढ़कर हैं बेटियां
31 Jan 2022
---बुलंद आवाज विशेष---
-सामान्य परिवार से निकलकर संघर्ष के पथरीले रास्ते पर चलकर बनीं चिकित्सक
-नाम के अर्थ को सार्थक कर विनम्रता से होमियोपैथ विधा को पहुंचाया ऊंचाई पर
-अभावों में पल-बढ़कर हासिल किया मुकाम, गरीबों व मजलूमों से बेइंतहा लगाव
-चिकित्सा के साथ समाजिक कार्यों में रुचि, कोरोना योद्धा समेत मिला कई पुरस्कार
बृजेश यादव
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मऊ : अपने साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं डा.नम्रता श्रीवास्तव से। जिला अस्पताल में महिला चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्यरत डा.नम्रता वह शख्सियत हैं जिन्होंने बड़े ही विनम्रता से जिले में होमियोपैथी विधा को ऊंचाई दी। उन्होंने एलोपैथिक चिकित्सा के समकक्ष उसे ला खड़ा किया। नम्रता अपने संघर्ष की बदौलत खुद के रूप में बेटों से कम नहीं हैं बेटियां, बेटों से बढ़कर हैं बेटियां को भी चरितार्थ कर चुकी हैं। अभावों में पली-बढ़ी-पढ़ीं नम्रता के दिल में दबे-कुचले, कमजोर तबके के लोगों के लिये बेइंतहा सम्मान, प्यार है। खासकर वह बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने की हिमायती हैं। सामाजिक सरोकारों में अभिरुचि रखने के साथ ही सोशल मीडिया के जरिये लोगों को स्वस्थ्य रहने के निःशुल्क टिप्स देती रहती हैं। कोरोना योद्धा समेत कई सम्मानों से भी उन्हें नवाजा जा चुका है।
मरीजों से बेटी, बहन, बहू जैसा लगाव
होमियोपैथ जैसी कारगर विधा को कारगर बनाने में मरीजों को महज दवा देने तक ही उन्होंने अपने दायित्व की पूर्ति नहीं की, बल्कि उनसे भावनात्मक लगाव जोड़ रखा है। बुजुर्ग महिला-पुरुष मरीजों से वह संस्कारिक ढंग से बेटी व बहू जैसा व्यवहार करती हैं तो हमउम्र व छोटी युवतियों व युवकों से बहन जैसा। बहुतेरे डाक्टर मरीजों से रोग के लक्षण व आनुवंशिकी आदि कारण पूछने के बाद दवा लिखकर दूसरे मरीज को देखने लगते हैं, लेकिन डा.नम्रता का स्वभाव इससे अलग है। रोग के बारे में बताने के बाद मरीज उनसे घर-परिवार का हाल व अपना दुख-दर्द बतियाने लगते हैं। वह उन्हें चुप रहने को डपटने की बजाय सहानुभूतिपूर्वक उनकी पूरी बातें सुनती हैं। खुशनुमा माहौल बनाकर उन्हें दवा देकर आदर-सम्मान के साथ विदा करती हैं। यही वजह है कि एक बार जो मरीज इनसे इलाज कराने आया, वह इनसे फेमिली चिकित्सक की तरह जुड़ गया। कभी मरीजों की बाट जोहने वाले जिला अस्पताल के होमियोपैथिक चिकित्सालय में आज मरीजों की भीड़ इस विधा के लोकप्रिय होने का अपने आप में खुद-ब-खुद प्रमाण है।
हफ्ते में एक दिन महिलाओं की कार्यशाला
महिला होने के नाते डा.नम्रता श्रीवास्तव से महिलाएं बेझिझक अपनी सारी परेशानी व दुख दर्द साझा करतीं हैं। कुछ सुझाव तो वह दवा लिखते समय बातों-बातों में ही दे देती हैं, लेकिन हफ्ते में एक दिन वह नरईबांध (गाजीपुर तिराहा) स्थित अपने आवास पर कार्यशाला लगाती हैं। महिलाओं को उनका हक, अधिकार बताते हुए बेटियों को उच्च शिक्षा देने पर बल देती हैं। इसमें ग्रामीण अंचल की महिलाओं को भला-बुरा का बोध कराती हैं। बेटियों को बेटे से कम न समझने की नसीहत देती हैं। पारिवारिक तनाव को व्यवहारिक रुप से कैसे दूर किया जाए, इसके लिये किस्से-कहानियों के साथ तार्किक ढंग से कई उदाहरण पेश कर उन्हें तनावमुक्त करती हैं। छात्राओं को खुद की पढ़ाई के समय संसाधन के अभाव व कड़े संघर्ष की दास्तान बताकर आत्मनिर्भर बनने व कैरियर का चयन करने को प्रेरित करती हैं।
पर्यावरण से अटूट प्यार, लगाये हजारों पौधे
डा.नम्रता श्रीवास्तव को मां-बाप, पति, बच्चों, होमियोपैथ व मरीजों की तरह ही पर्यावरण से भी अटूट प्यार है। चिकित्सा पेशा से जुड़े होने के नाते पौधों के महत्व की बेहतर समझ है। वह पौधरोपण पर जोर देती हैं। इसके लिये खुद भी आगे आती रहती हैं। उन्होंने गिरिजा देवी मेमोरियल ट्रस्ट के जरिये अब तक हजारों पौधे लगाए हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिये वह जिला कारागार के महिला अहाता में आम, पीपल, पाकड़, अमरुद, जामुन, पपीता, रुद्राक्ष, आंवला आदि के पचास पौधों को लगा चुकी हैं। उनके इन कार्यों में चिकित्सक पति डा.अरविंद श्रीवास्तव बराबर सहभागिता कर प्रेरणा देते रहते हैं।
आत्मनिर्भर बनाने में पिता का अमूल्य योगदान
कानपुर में जन्मी डा.नम्रता श्रीवास्तव जिस मुकाम पर हैं, उसमें अमूल्य योगदान उनके पिता दिनेश कुमार श्रीवास्तव का है। अस्थिर प्राइवेट जाब के सहारे संघर्ष करते हुए दिनेश श्रीवास्तव ने अपनी संतानों (तीन बेटियों) को आत्मनिर्भर बनाया। सबसे बड़ी बिटिया नम्रता श्रीवास्तव को बीएचएमएस कराकर होमियोपैथिक डाक्टर बनाया। दूसरे नंबर की बेटी मुक्ता श्रीवास्तव को फैशन डिजाइनर की पढ़ाई कराई। तीसरी बेटी डा.श्वेता श्रीवास्तव को एमबीबीएस, एमडी पैथालाजी की उच्च शिक्षा दिलाई। डा.श्वेता झांसी मेडिकल कालेज की गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं। तीनों बेटियां मऊ, मुंबई व कानपुर में अपने पति व बच्चों के साथ सेटल हैं। बेटियों ने भी मां-बाप को बेटे की कमी नहीं अखरने दी। उनके जीवन-यापन का सारा इंतजाम करने के साथ ही दूरभाष के जरिये हर पल उनके साथ बनी रहती हैं।
कानपुर की गलियों में बीता बचपना
डा.नम्रता का बचपन यूपी की औद्योगिक नगरी कानपुर की गलियों में बीता। उनकी कक्षा एक से 12वीं तक की पढ़ाई मरियमपुर सीनियर सेकेंडरी गर्ल्स कालेज कानपुर में हुई। 1998 में इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद नम्रता ने बीएससी में दाखिला लेने के साथ ही सीपीएमटी की तैयारी शुरु की। साल भर की तैयारी के बाद प्रथम प्रयास में ही सीपीएमटी क्वालीफाई कर गईं।
लेना पड़ा बीएचएमएस करने का निर्णय
डा.नम्रता श्रीवास्तव ने बुलंद आवाज से एक सवाल के जवाब में बताया कि सीपीएमटी क्वालीफाई करने के बाद जब वह काउंसिलिंग कराने पहुंची तो उन्हें बीएचएमएस करने का विकल्प मिला। उस समय तो उनका सपना एमबीबीएस करने का था, लेकिन घर की आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए उन्होंने बीएचएमएस करने का निर्णय ले लिया। एक प्रमुख वजह यह भी थी कि उनके साथ ही उनसे एक साल छोटी बहन मुक्ता का सलेक्शन निफ्ट के तहत फैशन डिजाइनर के लिये हो गया था। दोनों बहनों की हास्टल की फीस, मेडिकल की महंगी किताबें और फैशन डिजाइन के कीमती कपड़ों, सबसे छोटी बहन की पढ़ाई, घर-परिवार का खर्च आदि बोझ एक साथ पिता के कंधों पर पड़ता। ऐसे में उन्होंने कर्तव्य पथ पर मैं चली, यह भी सही वह भी सही पंक्ति को आत्मसात कर लिया। उन्हें राजकीय होमियोपैथिक मेडिकल कालेज गाजीपुर मिला। यहीं से उन्होंने साढ़े पांच साल में कोर्स पूरा किया।
पढ़ाई पूरी होते ही ससुराल में प्रैक्टिस
बीएचएमस करने के दौरान ही वर्ष 2004 में डा.अरविंद श्रीवास्तव से उनकी शादी हो गई। उनकी ससुराल बलिया जिले में बिहार के बार्डर पर द्वाबा क्षेत्र में रानीगंज (बैरिया) में है। वर्ष 2006 में उनका बीएचएमएस पूरा हुआ। डिग्री मिलते ही उन्होंने बलिया व बैरिया में अपने जेठ की क्लिनिक पर प्रैक्टिस शुरु की। कुछ समय बाद ही उनकी एनआरएचएम के तहत संविदा पर चिकित्सक के पद पर बैरिया क्षेत्र के ही कोटवा रानीपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर नियुक्ति हो गई।
2009 में मऊ आईं, यहीं की होकर रह गईं
संविदा की नौकरी उन्होंने साल भर तक ही की। इसके बाद मऊ के फातिमा अस्पताल ने डीआरसीएच (डिप्लोमा इन रिप्रोडेक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ) के लिये वैकेंसी निकाली। डा.जूड के थ्रू निकाले गये वांट में पूरे पूर्वांचल में बीएचएमएस चिकित्सक की मात्र एक ही सीट थी। उस पर सलेक्शन के बाद 2009 में डा.जूड के निर्देशन में ट्रेनिंग करने डा.नम्रता आईं तो फिर मऊ की ही होकर रह गईं। उसी वर्ष लोक सेवा आयोग की वैकेंसी के लिए उन्होंने आवेदन किया। वहां भी उनका चयन हो गया। इसके बाद 10 दिसंबर 2010 को उनकी पोस्टिंग मऊ जिला अस्पताल में महिला होमियोपैथिक चिकित्सा अधिकारी के रुप में हुई। तबसे अब तक वह निरंतर कार्यरत हैं। उनके पति डा.अरविंद श्रीवास्तव जिले के ही कोपागंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर वरिष्ठ होमियोपैथिक चिकित्सा अधिकारी के रुप में तैनात हैं। सोशल साइटों को बनाया जागरुकता का माध्यम
चिकित्सा जगत के अलावा सामाजिक सरोकारों से ओत-प्रोत डा.नम्रता मूकबधिर बच्चों के विद्यालय अमरवाणी के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती हैं। वहां निःशुल्क चिकित्सा शिविर का समय-समय पर आयोजन करती हैं। चिकित्सक संगठनों द्वारा आयोजित निःशुल्क चिकित्सा शिविर का भी प्रमुख हिस्सा रहती हैं। वर्तमान परिवेश में एक साथ लाखों-करोड़ों लोगों से जुड़ने का प्लेटफार्म बन चुकी सोशल साइटों को उन्होंने जागरुकता फैलाने का माध्यम बनाया। फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब आदि माध्यमों पर लाइव आकर वह विभिन्न रोगों के घरेलू उपचार व स्वस्थ्य रहने के उपायों पर अपने टिप्स देती रहती हैं। कोरोना काल में सोशल साइटों के जरिये उनके सजगता और बचाव के टिप्स काफी लोकप्रिय और लोगों के काम के साबित हुए थे।
यूपी सरकार ने भी सम्मान दे बढ़ाया हौसला
नारी सशक्तिकरण व सामाजिक सरोकारों में बढ़-चढ़कर भागीदारी दर्ज कराने वाली डा.नम्रता का हौसला बढ़ाये रखने के लिये समय-समय पर कई सम्मान दिया गया। 2016 में यूपी सरकार द्वारा अमर उजाला फाउंडेशन के सौजन्य से सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हेतु नारी शक्ति सम्मान दिया गया। यह सम्मान उन्हें आजमगढ़ के तत्कालीन मंडलायुक्त ने प्रदान किया। इसके अलावा दैनिक जागरण की तरफ से उन्हें बेस्ट डाक्टर अवार्ड, कोरोना योद्धा सम्मान प्रदान किया जा चुका है। मिशन शक्ति के तहत मऊ के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा तीन बार सम्मानित हो चुकी हैं।