मऊ के दो नामचीनों के विमर्श में परत-दर-परत खुला प्राइवेट अस्पतालों में लूट का खेल 

02 Jan 2022

---रविवार विशेष---
-अपने-अपने कार्यक्षेत्र में नामी-गिरामी दोनों दिग्गजों ने धरती के दूसरे भगवान के कृत्य पर जताई चिंता
-अपने बीच हुई चर्चा को फेसबुक पर पोस्ट कर सुधार की बताई जरुरत, नववर्ष में कुछ तो लें नसीहत  

बृजेश यादव
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मऊ :
आधुनिक समाज में धनकमाने की होड़ है, चाहे वह जैसे आये। प्राइवेट अस्पताल व चिकित्सक भी इसमें पीछे नहीं हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जिस मरीज से धन ऐंठा जा रहा है, वह किस परिस्थिति से गुजर रहा है। आभूषण गिरवी रखकर पैसा लाया है या खेत रेहन रखकर, वह अपने सभी चार्ज (दलाल के कमीशन सहित) वसूल करके ही छोड़ते हैं। धन अर्जित करने में मानवता को भी दरकिनार कर चुके प्राइवेट डाक्टरों को भले न फर्क पड़े, लेकिन उन्हें पड़ता है, जिन्हें समाज की चिंता है। जिनकी सोच है कि समाज का अंतिम व्यक्ति भी खुशहाल रहे। किसी को पीड़ा में जान-सुन वह खुद उसके दर्द को महसूस कर कराह उठते हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहने वाले अपने-अपने कार्यक्षेत्र के दो नामचीनों में विमर्श हुआ तो प्राइवेट अस्पतालों में चल रहा लूट का खेल परत-दर-परत सामने आ गया। यह शख्स हैं भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष मुन्ना दूबे व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डा.गंगासागर सिंह।
डेढ़ माह पूर्व हुई वार्ता आज भी मौजूं 
इनके बीच वार्ता का घटनाक्रम डा.गंगासागर सिंह के निवास पर करीब डेढ़ माह पहले का है। इन दोनों दिग्गजों के बीच जो विमर्श हुआ, उसे उन्होंने अपने-अपने फेसबुक वाल पर विस्तार से रेखांकित भी किया। दोनों लोगों ने कभी धरती के दूसरे भगवान की संज्ञा से नवाजे जाने वाले निजी चिकित्सकों के कृत्य पर चिंता जताते हुए सुधार की जरुरत बताई। बुलंद आवाज दोनों विद्वतजनों के फेसबुक वाल पर लिखे लेख को इस अपेक्षा के साथ हुबहू प्रस्तुत कर रहा है कि नूतन वर्ष 2022 में चिकित्सक आत्मचिंतन कर समाज की फिक्र कर कुछ सुधार जरुर करेंगे। खबर में दोनों लोगों के फेसबुक मैटर का स्क्रीनशाट भी सबसे नीचे लगाया गया है।  

मुन्ना दूबे के फेसबुक वाल से....
आइएमए अध्यक्ष डा. गंगासागर सिंह से प्राइवेट नर्सिंग होम और चिकित्सकों के संदर्भ में विस्तार से उनके निवास पर बातचीत हुई। पहले लोग चिकित्सकों को और चिकित्सक मरीजों को भगवान समझते थे। एक-दूसरे के प्रति संवेदना और आत्मीयता थी। आज चिकित्सकों के संदर्भ में जनमानस में काफी क्षोभ और दुख है। मैं नहीं चाहता हूं कि मेरी वाणी, भाषा से किसी को कष्ट हो। मैं चिकित्सकों का बहुत सम्मान करता हूं, परन्तु यह अपेक्षा करता हूं कि वह रोगी के प्रति संवेदनशील और दयाभाव रखें। 
खर्च के बोझ से दब जाता है मरीज 
हर डाक्टर की अलग-अलग फीस है। कुछ डाक्टर सामान्य की बजाय अधिकांश इमरजेंसी देखते हैं। दवाओं में काफी अनियमितता है। अनचाहे आपरेशन, भर्ती और बेड का हाईचार्ज, बार-बार आने जाने का विशेष चार्ज और जरुरत से ज्यादा जांच कराई जाती है। मरीज खर्च के बोझ से इतना दब जाता है कि इलाज के बजाय डिर्स्चाज होकर भागना चाहता है।
मरीज को सामान समझ हो रहा व्यवसाय  
मुन्ना दूबे लिखते हैं कि डा.गंगा सागर सिंह ने उपरोक्त विषयों को स्वीकार करते हुए सुधार की व्यापक आवश्यकता महसूस की। उन्होंने बताया कि चिकित्सा क्षेत्र में काफी गिरावट आई है। उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में सुधार के लिये अनेक प्रकार का सुझाव केंद्र सरकार को भी भेजा है। उन्होंने बड़ी ही साफगोई के साथ कहा कि जनता में बहुत नाराजगी है। प्राइवेट चिकित्सक मरीज को सामान समझकर व्यवसाय करने की बजाय इंसान समझकर सेवा और कम से कम खर्चे में इलाज करने का प्रयास करें। चिकित्सा क्षेत्र में व्यापक गड़बड़ी को ठीक करने का प्रयास जारी रहेगा। 

डा.गंगासागर सिंह के फेसबुक वाल से रिप्लाई....
मुन्ना दूबे जी, आपके कथन सत्य हैं। डाक्टर को पृथ्वीलोक पर दूसरे भगवान का दर्जा प्राप्त था, लेकिन अब नहीं रहा। डाक्टर एवं मरीज और मरीज के अभिभावकों के बीच अविश्वास की खाई खुद गई है। उसकी गहराई भी बढ़ती जा रही है। यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है। इसका समाधान होता बहुत जरुरी है। 
जांच में भी कमीशन लेते हैं डाक्टर 
अधिकांश समस्याओं की जड़ दलाली की कुप्रथा एवं धन कमाने की मृगतृष्णा है। ठेठ भाषा में कहें तो घर से अस्पताल के बीच के सफर में ही मरीज दलालों के येन-केन-प्रकारेण सम्मोहन का शिकार हो जाता है। वही दलाल डाक्टरों के यहां मरीज पहुंचाकर मोटी रकम प्राप्त कर लेता है अर्थात इलाज के लिये बेच देता है। दलील की रकम हजारों में होती है। यहीं से शुरु हो जाता है मरीजों का शोषण। भर्ती मरीज एवं आपरेशन पर कमीशन इतना ज्याद है, जिसकी आप परिकल्पना नहीं कर सकते हैं। इसके बाद पैथालाजी, रेडियो डायग्नोस्टिक सेंटर एवं रेफरल अस्पतालों से डाक्टर कमीशन लेता है। 
कमीशनखोरी घोषित हो गैरजमानती अपराध 
हर सरकारी विभागों एवं सभी बिजनेस में प्रोपराइटर दलाल पाले गये हैं। सभी मिस्त्री वर्ग उन दुकानों से कमीशन लेता है, जहां से मालिक निर्माण कार्य या मरम्मत के लिये सामान खरीदता है। कमीशनखोरी का विकास जहां न जायें रवि, वहां पहुंचे कवि जैसा हो गया है। जीवन के हर क्षेत्र में इसका व्यापक विस्तार हो चुका है। कमीशनखोरी की चेन बन चुकी है। इस चेन को समाजहित में तोड़ना बहुत जरुरी है। इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस कथन से लगा सकते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि नये सरकारी अधिकारी बहुत ज्यादा पैसा कमाने में लगे हैं और उनमें निर्णय लेने की क्षमता का बहुत अभाव है। आप समझ रहे होंगे की निर्णय लेने की क्षमता का अभाव नहीं, बल्कि निर्णय लेने के लिये कमीशनरुपी उत्प्रेरक का इंतजार रहता है। इस समस्या का एक ही समाधान है। कमीशनखोरी को गैरजमानती अपराध घोषित कर कड़े दंड का प्रावधान बनाकर संसद के माध्यम से कानून बना दिया जाय। 



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