भय भी देता है भ्रष्टाचार को जन्म
14 Nov 2021
-भयमुक्त समाज की परिकल्पना साकार कर हो सकता है समाज सुधार
डा. गंगासागर सिंह
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मऊ : भय, भ्रष्टाचार की जननी है। आम जनमानस भय के कारण ही अपने हितों की रक्षा के लिए भ्रष्टाचारियों के हाथों ब्लैकमेल होता रहता है। जैसे एक हाथ से ताली नहीं बजती, वैसे ही घूसखोरी हमेशा द्विपक्षीय होती है। घूस लेने वाला धन कमाने की मृगतृष्णा का शिकार होता है। वहीं घूस देने वाला बहुधा भयाक्रांत होकर मजबूरी में इस घिनौने कृत्य का सहयोगी बनता है। भयमुक्त समाज की परिकल्पना के साकार होने पर ही समाज में सुधार हो सकता है।
अनहोनी के प्रति सचेत करता है डर
भय एक संचेतना है, जिसे पृथ्वीलोक पर रहने वाले हर जीव को परिस्थिति अनुसार महसूस होता है। भय एक शारीरिक एलार्म सिस्टम है, जो हर जीव को किसी भी अनहोनी के प्रति सचेत करता है। हर जीव को मृत्यु का सबसे ज्यादा भय होता है। मानव योनि इससे अछूती नहीं है, लेकिन मनुष्य को समाज में क्रान्तिकारी सुधार लाने के लिए उसे मृत्यु को गले लगाकर शहीद होने के लिए सिर पर कफन बांधकर हमेशा तैयार रहना पड़ता है।
नेताओं से पूछें यह सवाल
इतिहास में झांककर देखें तो पूरे विश्व में लाखों लोगों ने इस पथ पर चलकर करोड़ों लोगों में त्याग की भावना का संचार किया। अनादिकाल में भारत माता के सपूतों ने इस भावना के लिए अपना परचम विश्व पटल पर लहराकर विश्व गुरू, विश्व बन्धुत्व की भावना से ओतप्रोत एवं सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश के रूप में अपने को स्थापित किये रखा। यह भी सच है कि एक हजार बर्षों की गुलामी ने हमें बहुत पीछे ढकेल दिया। 75 बर्षों की आजादी के बाद अमृत महोत्सव मनाते देश के हर नागरिक का हक है कि अब तक शासन करने वाली राजनीतिक पार्टियों से पूछें कि भ्रष्टाचारों की श्रृंखला एवं बहुत मंद गति से हुए विकास के लिए कौन जिम्मेदार है? हमारे राजनेताओं ने अपना एवं अपने कुनबों का बहुत तेजी से विकास किया।
अंग्रेजों के काल से भी बदतर स्थिति
आजादी के 75 वें बर्ष में भी हम भयमुक्त समाज के निर्माण में असफल रहे। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस मामले में अंग्रेजों के शासन काल से बदतर स्थिति में हैं। अंग्रेजी शासनकाल का कोई अनुभव मुझे नहीं हैं, लेकिन बचपन में बुजुर्गों से सुना था कि उस समय एक मर्डर होने पर पूरा इलाका घुड़सवार पुलिस से थर्रा जाता था। आज मर्डर आम बात हो गयी है और पुलिस से आमजन बिल्कुल नहीं भय खाते। वजह साफ है कि पुलिस बिकाऊ है। समाज सुधार के लिए अतिआवश्यक है कि कानून का भय, गुंडे-बदमाश, भ्रष्टाचारी, व्याभिचारी, ढोंगी, ठग, कामचोरों, झूट्ठों, चोर-डकैतों एवं अन्य गैरकानूनी कृत्यों में लिप्त असामाजिक तत्वों में निष्पक्ष भाव उत्पन्न किया जाए।
भय बिन होत न प्रीति है गुरुमंत्र
भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी भी ने कहा था भय बिन होत न प्रीति। यह सिद्धांत समाज सुधार का गुरूमंत्र है। जैसे साइंस एवं मैथ में एक ही फार्मूला हर जगह लागू नहीं होता है, वैसे ही भयाक्रांत समाज में दब्बूपन का विकास होता है, जो सामाजिक शोषण का मूल कारण है। भयमुक्त समाज के निर्माण के लिए आम जन में आत्मविश्वास पैदा कर निडर होना अतिआवश्यक है लेकिन कानून को अपने हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं है। अतः मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच रहा हूं कि भय एक दुधारू तलवार है जो आतताइयों एवं सीधे-साधे आम जनमानस को परिस्थिति के अनुसार प्रभावित करने का अस्त्र शस्त्र है। बुद्धिमता से इसका उपयोग कर समाज सुधार किया जा सकता है।
आप सब लगें तो हो समाज सुधार
वर्तमान परिस्थतियों में एक सर्वांगीण समाज सुधार अभियान अतिआवश्यक है। इसके लिए समाज के हर धर्म, जाति, वर्ग, पंथ, संगठन, एनजीओ, धार्मिक गुरुओं, महंथों, मंदिरों के पुजारीगण, रिटायर्ड कर्मचारी गण, छात्रसंघ, शिक्षक, अभिभावक, डाक्टर , इंजीनियर, शासन, प्रशासन, न्यायपालिका के न्यायाधीश एवं अधिवक्तागण, सभी प्रोफेशनल्स, फिल्म इन्डस्ट्री एवं अन्य सभी इन्डस्ट्री, सभी व्यापारीगण एवं समस्त विश्व जनमानस की संलग्नता जरुरी है। (यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक आइएमए मऊ के अध्यक्ष हैं। )