मोह की अति भी समाज सुधार में बाधक
10 Nov 2021
-लोकतांत्रिक व्यवस्था के वाहक पुत्रमोह में वास्तविक पात्र का कर दिया जाता है तिरस्कार
-मोह के चलते आये दिन महाभारत, जिम्मेदार व्यक्तित्व को नहीं दिखता अपनों का अवगुण
डा. गंगासागर सिंह
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मऊ : मोह एक भावनात्मक लगाव होता है। यह मनुष्य के सामाजिक प्राणी होने का प्रमाण है। मोह निर्जीव एवं सजीव दोनों के प्रति उत्पन्न होता है। मनुष्य का अपनी हर जीच के प्रति मोह (लगाव) होना एक गुण है, लेकिन अति सर्वत्र वर्जयेत के अनुसार एक सीमा के बाद अति मोह धनोपार्जन की मृगतृष्णा को जन्म देता है। इसके बाद सामाजिक बुराइयों की उत्पत्ति हो जाती है। हमारे देश के लोकतांत्रिक देश के वाहक राजनेता पुत्रमोह, अपनों से मोह में टिकट बंटवारे के समय वास्तविक हकदार का तिरस्कार कर देते हैं। अतिमोह भी देश की दुर्दशा का जिम्मेदार और समाज सुधार में बाधक है। जिम्मेदार व्यक्तित्व को मोह के चलते ही अपनों का अवगुण भी नहीं दिखाई देता। इसकी वजह से ही आए दिन परिवारों में महाभारत का दृश्य भी देखने को मिलता है।
सभी जीवों में होता है मोह
मोह एक मानवीय चेतना है, जो किसी भी सांसारिक रचना के प्रति कुछ समय संसर्ग में रहने से पैदा होती है। हम इसे लगाव या प्रेम भी कह सकते हैं। मोह केवल मनुष्य ही नहीं इस पृथ्वीलोक पर रहने वाले सभी जीवों में पाया जाता है। मोह ही है जिससे हर प्राणी अपनी संतानों का लालन-पालन करता है। मोह नामक चेतना जिस दिन इस पृथ्वीलोक से समाप्त हो जाएगी उस दिन सम्पूर्ण सृष्टी का अन्त हो जाएगा।
लगाव न होने पर नहीं होती प्रतिक्रिया
जिस चीज से आप को मोह नहीं होगा उसके रहने या न रहने पर आप कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। उदाहरण के तौर पर जब एक इंसान स्वर्गलोक को चला जाता है तब उसके परिजन व्यथित होकर रोते- चिल्लाते हैं। उस समय उस स्थान से गुजरने वाले परदेशी पथिक पर उनके विलाप का कोई असर नहीं होता है।
मनुष्य का गुण व अवगुण दोनों है मोह
मोह मनुष्य का गुण तथा अवगुण दोनों है। मोह में अपनों का ध्यान रखना गुण एवं अति मोह में सात पुश्तों के लिए येन केन प्रकारेण धन इकट्ठा करना मोह के उत्पन्न दुर्गुण हैं। मोह एक ऐसा भ्रमजाल है जिसके अति के कारण अपने परिजनों में दुर्गुण के प्रति मनुष्य अंधा हो जाता है तथा हर जगह महाभारत युद्ध जैसा माहौल पैदा हो जाता है।
नैतिक जिम्मेदारी रख दी जाती है ताक पर
आज हमारे देश में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है। पुत्रमोह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। टिकट बंटवारे के समय पुत्रमोह के कारण नैतिक जिम्मेदारियों को ताक पर रखकर कर्मठ एवं ईमानदार पार्टी कार्यकर्ताओं की अवहेलना कर दी जाती है। यह देश की प्रगति पर आजादी के 74 साल को प्रभावित करता रहा है। आगे भी भविष्य में प्रभावित करता रहेगा। अतः अति मोह से मुक्त जीवन जीना ही समाज सुधार की एक कड़ी है। (यह लेखक के निजी विचार हैं। लेकख आइएमए मऊ के अध्यक्ष हैं।)