लोभ है भ्रष्टाचार की जड़, समाज सुधारने को रोकें फिजूलखर्ची
09 Nov 2021
-जनता के टैक्स से होना होता है जनता का ही विकास, बीच में रोड़ा है भ्रष्टाचार
-गरीबी, भुखमरी, बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी भी देश सुधार में बड़े अवरोधक
डा. गंगासागर सिंह
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मऊ : मानव मन में किसी भी वस्तु को प्राप्त करने का पैदा होने वाला लोभ भ्रष्टाचार की जननी व जड़ है। जनता के टैक्स से लोकतांत्रिक सरकार को होने वाली आय से जनता का ही विकास करना होता है, लेकिन बीच में भ्रष्टाचार रोड़ा बन जाता है। गरीबी, भुखमरी, बढ़ती महंगाई एवं बेरोजगारी समाज सुधार के लिए बहुत बड़े अवरोधक हैं। मध्यम वर्ग व उच्च वर्ग अर्थ को अनावश्यक खर्च करने में भी परहेज नहीं बरतता, यह भी उचित नहीं है। समाज सुधारने को लोगों को फिजूलखर्ची करने से बाज आना चाहिये।
आर्थिक हालत के अनुसार लिखी जाती है गाथा
अबोध बालक जन्म से ही परिवार की आर्थिक हालत के अनुसार भाग्य में अपनी जीवन गाथा लिख कर पैदा होता है। यदा-कदा वह बालक अपने कर्मों से गरीबी की बेड़ियों से मुक्त हो पाता है। दूसरी तरफ धनवान का बेटा भी अपने कर्मों से बहुतायत अपने जीवन को बर्बाद कर देता है।
करों से ही मजबूत होता है किसी भी देश का आर्थिक तंत्र
किसी भी देश का आर्थिक तंत्र केवल जनता के करों से मजबूत होता है। इसमें अमीर-गरीब सबका खरीदारी के अनुरूप योगदान होता है। यह भी सत्य है कि हर व्यक्ति अपनी आर्थिक क्षमता के अनुरूप ही खरीदारी करता है। लोकतंत्र में आम जनता द्वारा चुनी गई सरकार को अधिकार प्राप्त है कि उस धन को पुनः आम जनता के भलाई के कार्यों में ईमानदारी से खर्च करे। कहा जा सकता है कि आम जनता से एक हाथ से लेना तथा दूसरे हाथ से देना का अधिकार सरकार को लोकतंत्र ने प्रदान किया है। यह अलग बात है कि भ्रष्टाचारी शासन-प्रशासन उस धन से अपना पेट व घर भरने लगता है।
निवेश व खर्च में नहीं दिखाई देता है सामंजस्य
आम जनता के हाय महंगाई, हाय महंगाई चिल्लाने एवं प्रत्यक्ष दिख रहे निवेश/खर्च में कोई सामंजस्य नहीं दिखाई देता है। अति गरीब वर्ग को छोड़कर सब खर्च में कोई कटौती नहीं करते हैं। ऊदाहरण के तौर पर छोटे-छोटे शहरों /कस्बों में आजकल लग रहा अभूतपूर्व ट्रैफिक जाम पेट्रोल/डीजल के दामों में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी से कोई असर नहीं होने का संकेत दे रहा है। साथ ही देश पर विदेशी मुद्रा का भार बढ़ा रहा है। अतः देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास, अति गरीब वर्ग का विकास एवं देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए टैक्स देना हम भारतीयों की जिम्मेदारी है। टैक्स के लिए किसी भी सरकार को कोसना बेमानी है। देश के अर्थतंत्र का समाज सुधार में बहुत बड़ा योगदान हमेशा रहा है और आगे भी रहेगा।
मानव जीवन को प्रभावित करती है लालच
मानवीय मूल प्रकृति में लोभ मानव जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। ज्ञानेन्द्रियों के सम्पर्क में आने वाली हर चीज जिसे मन पसंद कर लेता है, उसे प्राप्त करने की इच्छा ही लोभ है। लोभ पर नियंत्रण करना मुश्किल तो जरूर है लेकिन असम्भव नहीं। लोभ मनुष्य में पाये जाने वाले अवगुणों की जननी है एवं भ्रष्टाचार की जड़ है। लोभी व्यक्ति अपने स्वार्थपूर्ति के लिए अपने किसी भी रिश्ते को ठोकर मार देता है।
लोभ इंसान को बना देता है हैवान
लोभ की मृगतृष्णा मनुष्य को इंसान से हैवान बना देती है।इस मानवीय अवगुण के कारण हत्या, व्याभिचार, भ्रष्टाचार एवं अन्य अनैतिक कार्यों की ओर मनुष्य न चाहते हुए भी बरबस आकर्षित होता चला जाता है। ऐसा नहीं है कि लोभ की प्रवृत्ति पर काबू नहीं पाया जा सकता है। संतोष की प्रवृत्ति उत्पन्न होने पर लोभ घट जाता है। सांसारिक वस्तुओं से लगाव जैसे जैसे घटता जायेगा लोभ उसी अनुपात में कम होता चला जाएगा।
भजन-कीर्तन भी सुधार के माध्यम
एक कहावत है भूखे भजन न होहि गोपाला। भजन -कीर्तन भी समाज सुधार के माध्यम हैं। अच्छे कर्मों के लिए चेतना का संचार होता है। समाज सुधार के लिए अतिआवश्यक है कि चिन्तन-मनन, सत्संग, योग, ध्यान, पूजा-पाठ, संगीत एवं आध्यात्मिक विचारों की पुस्तक पढ़कर लोभ से मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास हर इंसान करे तो समाज में सुधार निश्चित आयेगा। अतः समाज के अंतिम व्यक्ति तक आर्थिक सुधार की ज्योति पहुंचाकर समाज सुधार को गति प्रदान की जा सकती है। (यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक आइएमए मऊ के अध्यक्ष हैं।)