मुसीबत के मारों के मसीहा हैं राजीव राय

06 Sep 2022

---जन्मदिन पर विशेष---
-बलिया के सुरही के लाल पर चंद्रशेखर और छोटे लोहिया की अमिट छाप
-समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व प्रवक्ता की राष्ट्रीय फलक पर पहचान
-टीवी चैनलों पर निर्भीकता से गिनाते हैं मोदी-योगी सरकार की नाकामियां
-खांटी समाजवादी को डराने के लिए डलवाई गयी आईटी रेड भी हुई नाकाम

बृजेश यादव

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मऊ : पूर्वी उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर बिहार बार्डर पर बसे गांव सुरही के लाल राजीव राय मुसीबत के मारों के मसीहा हैं। बलिया के स्वर्गीय राजनारायण राय के इस लाल की पहचान राष्ट्रीय फलक पर है। अपने जीवनकाल में बलिया से उठकर दक्षिण भारत में बैंगलोर तक पड़ाव बनाने वाले राजीव राय पर छोटे लोहिया स्व. जनेश्वर मिश्र व पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर सिंह की अमिट छाप है। समाजवाद के दोनों पुरोधाओं की गोद में बैठकर खेलने का उन्हें सौभाग्य भी प्राप्त है। उनके रोएं-रोएं में समाजवाद कूट-कूटकर भरा है। टीवी चैनलों पर डिबेट में समाजवादी पार्टी का अकाट्य पक्ष रखते हैं। सत्तारुढ़ दल भाजपा व विपक्षी दलों के प्रवक्ताओं को तार्किक ढंग से मुंहतोड़ जवाब देते हैं। निर्भीकता के साथ मोदी-योगी सरकार की नाकामियां गिनाने वाले राजीव राय के घर व प्रतिष्ठानों पर कुछ माह पहले इनकम टैक्स विभाग की रेड डाली गई। यह रेड सरकार के इशारे पर डाले जाने की समाजवादियों द्वारा संभावना व्यक्त की गई। इस रेड में कोई कमी न मिलने के चलते उन्हें डराने की मंशा नाकाम साबित हुई।

1971 में हुआ जन्म
 
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव/प्रवक्ता व घोसी लोकसभा के पूर्व प्रत्याशी राजीव राय मंगलवार को उम्र के 52वें वर्ष में प्रवेश कर गये। उनका जन्म छह सितंबर 1971 को सुरही गांव में हुआ। वह स्व. राजनारायण राय के दो पुत्रों राजीव राय व रजनीश राय में बड़े हैं। उनके जन्मदिन पर शुभचिंतकों ने जगह-जगह केक काटा तो सैकड़ों समर्थकों ने दीर्घायु होने की कामना के साथ बधाई दी।

गांव में ही प्रारंभिक शिक्षा
 
गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय से पढ़ाई की शुरुआत करने वाले राजीव राय ने शिक्षा के लिये यूएसए (यूनाइटेड स्टेट आफ अमेरिका) तक का सफर तय किया। उन्होंने कक्षा एक से पांच तक की शिक्षा अपने गांव सुरही के प्राथमिक स्कूल से ग्रहण की। कक्षा छह से 12वीं तक की पढ़ाई उन्होंने राजकीय इंटर कालेज बलिया से की। इसके बाद वह वाराणसी के यूपी कालेज गये। वहां से स्नातक किया। स्नातकोत्तर करने वह बैंगलोर यूनिवर्सिटी गये। यूएसए से पीएचडी किया। पीएचडी पूरी करने के बाद उन्होंने बैंगलोर को ही कार्यक्षेत्र बना लिया। वहीं से राष्ट्रीय फलक पर पहचान बनी। वहां वह दर्जनों शैक्षणिक संस्थाओं का सफलतापूर्वक संचालन करते हैं।

समाजवादी पुरोधाओं का परस्पर आशीर्वाद 

राजनीति व समाजवाद राजीव राय के ब्लड में समाहित है। छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जब तक जिंदा रहे, तब तक उनका आशीर्वाद परस्पर राजीव राय को मिलता रहा। इसकी वजह यह है कि राजीव राय के पिताजी स्व. राजनारायण राय व जनेश्वर मिश्रा दोनों लोग एक ही समाजवादी पुरोधा के शिष्य थे। समाजवादी व क्रांतिकारी नेता लोकबंधु स्व. राजनारायण उन दोनों लोगों के राजनैतिक गुरु थे। इससे दोनों लोगों में काफी घनिष्ठता थी। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर राजीव राय के पिताजी के परम मित्रों में एक थे। इसलिये दोनों समाजवादी नेताओं के यहां राजीव राय का बेरोक-टोक आना जाना रहा। दोनों लोग उन्हें अपने बेटे जैसा ही सम्मान देते थे। उन्होंने राजीव राय के अन्दर छिपे समाजवादी नेतृत्व को पहचान भी लिया था।

दल बदला न दिल 
 
वर्तमान समय की राजनीति में पद व सत्ता के लिये तमाम बड़े नेताओं के विचारधारा व दल बदलने के देश में अनेक उदाहरण हैं। ऐसा परिवर्तनशील समय भी राजीव राय के समाजवादी तेवर को डिगा नहीं सका। वह बचपन से ही समाजवादी विचारधारा व समाजवादी पार्टी को अपनाये जो आज तक बरकरार है। राजीव राय केवल बलिया व मऊ में ही समाजवादी पार्टी को मजबूत करने में नहीं जुटे हैं, उन्होंने पार्टी का संगठन दक्षिण भारत के उन जिलों तक खड़ा कर दिया, जहां पहुंच नहीं थी। श्री राय के करीबी बताते हैं कि कर्नाटक में उन्होंने समाजवादी पार्टी का विधायक निर्वाचित कराने में अहम रोल अदा किया। उनकी सक्रियता से सभी जिलों व विधानसभा क्षेत्रों में सपा के जिलाध्यक्ष से लेकर बूथ स्तर तक का सक्रिय संगठन है। कर्नाटक में पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में वह समाजवादी पार्टी के कई जिला पंचायत सदस्यों को जितवाने में सफल रहे।

नहीं करते जाति-धर्म का भेद
 
सपा सचिव राजीव राय मुसीबत में फंसे लोगों को उबारने के लिये सदैव तत्पर रहते हैं। मलेशिया में फंसे मऊ जिले के दर्जन भर से अधिक युवाओं की हमवतन वापसी कराने में उन्होंने अर्थ से लेकर हर स्तर तक की मदद की। लॉकडाउन में मऊ के लोगों के लिए भोजन से लेकर इलाज तक की मदद में अग्रणी भूमिका निभाई। मधुबन के लाल हिमांशु यादव का वाराणसी के पापुलर हास्पिटल में इलाज का पूरा जिम्मा अपने कंधों पर लिया तो हिमांशु का परिवार उनका मुरीद है। अपने अभिभावकों को असमय खोने वाले सैकड़ों बच्चों की शिक्षा का जिम्मा अपने कंधों पर उठाकर वह उन बच्चों के धर्म के पिता का दायित्व निभा रहे हैं। उनके मददगार बनने की लंबी फेहरिस्त है। सबसे बड़ी बात यह कि राजीव राय जिसके भी मददगार बने, उनका जाति-धर्म नहीं पूछा। वह मानवसेवा और परोपकार को ही अपना धर्म समझते हैं।

माटी से बेहद लगाव
 
बहुतेरे ऊंचा मुकाम पाने के बाद अपनी जन्मभूमि को ही भूल जाते हैं, लेकिन राजीव राय में ऐसा नहीं है। पूरब का प्रेम उनको निरंतर खींच लाता है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के मित्रों में एक राजीव राय को पूरब की माटी के प्रति लगाव ही मऊ और बलिया ले आता है। वर्ष 2014 में वह समाजवादी पार्टी से घोसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़े। सफलता तो नहीं मिली, लेकिन उसके बाद लोगों को राजीव राय के पद, कद व इमोशनल व्यक्तित्व का पता चला। चुनाव के बाद अपनी माटी से जुड़ाव इस कदर हुआ कि कोई ही ऐसा महीना बीता होगा, जिसमें उनकी मौजूदगी मऊ और बलिया में नहीं रही होगी। वह दोनों जिलों के लोगों के दुःख-सुख में जरुर शामिल होते हैं।



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