मऊ में पोस्टआफिस व बैंक के खेल में लुट रहे उपभोक्ता

23 May 2022

-पोस्टमास्टर द्वारा जारी चेक यूबीआइ में नहीं हो रहा क्लियर
-चेक वापसी के नाम पर उपभोक्ता के खाते से कट गये रुपये
-बैंक पोस्टआफिस की व पोस्टमास्टर बैंक की बता रहे कमी
-खुद के रुपये पाने को ठगी के शिकार बन जा रहे उपभोक्ता
-पत्नी समेत आइएमए अध्यक्ष भी हो चुके चीटिंग के शिकार 

बृजेश यादव 
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मऊ :
जिले में पिछले दो साल से पोस्टआफिस व बैंक के खेल में उपभोक्ता लुट रहे हैं। पोस्टआफिस में जमा रकम की समयावधि पूरी होने पर पोस्टमास्टर द्वारा जारी किया गया चेक यूनियन बैंक आफ इंडिया की शाखा में क्लियर नहीं हो रहा है। बैंक चेक जारी करने वाले पोस्टमास्टर की कमी बताकर वापस कर दे रहा है तो पोस्टमास्टर बैंक की कमी बता रहे हैं। इतना ही नहीं चेक वापस करने के एवज में भी बैंक उपभोक्ता के खाते में पहले से जमा रकम में से प्रति चेक 295 रुपये काट भी ले रहा है। दोनों के आरोप-प्रत्यारोप के बीच अपना ही पैसा पाने के लिये पिस रहे उपभोक्ता का समय बर्बाद हो रहा है। रकम भी नहीं मिल रही, ऊपर से चीटिंग का शिकार भी होना पड़ रहा है। इस समस्या से जिले के हजारों उपभोक्ता दो-चार हैं। चीटिंग के शिकार होने वालों में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डा.गंगासागर सिंह व उनकी पत्नी भी शामिल हैं। पोस्टमास्टर द्वारा चेक काटने व बैंक द्वारा भुगतान न कर उपभोक्ताओं को चूना लगाने के पीछे बहुत बड़ा खेल होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। 
लाकडाउन से शुरु हुई समस्या 
मेहनत से कमाई गई गाढ़ी रकम का कुछ हिस्सा बचाकर जिले के हजारों लोग पोस्टआफिस में आरडी चलाते हैं। इसमें एजेंट के  माध्यम से हर महीने निर्धारित रकम जमा करते हैं। कुछ सालों में समयावधि पूरी होने पर पोस्टआफिस द्वारा ब्याज के साथ उनकी रकम का भुगतान किया जाता है। बैंकों की तुलना में लोगों का अपनी पूंजी सुरक्षित रहने का पोस्टआफिस पर बड़ा भरोसा रहता है। पोस्टआफिस द्वारा पहले समयावधि पूरी होने पर अपने यहां से नकद भुगतान किया जाता था। कोरोना काल में पहली बार लाकडाउन लगने के साथ ही 20 हजार से अधिक की धनराशि के भुगतान के लिये चेक काटा जाने लगा। अप्रैल 2022 से चेक कटने के नियम के बाद से ही उपभोक्ता समस्या व आर्थिक दोहन का शिकार हो रहे हैं। 
रिटर्न चेक दोबारा जमा करने पर हो गया क्लियर 
आइएमए अध्यक्ष डा. गंगासागर सिंह प्रधान डाकघर में खुद व अपनी पत्नी के नाम से आरडी चलाते थे। वह एजेंट माधुरी गुप्ता के जरिये हर माह निर्धारित रकम जमा करते रहे। इसके अलावा डा.सिंह के पत्नी के नाम से एनएससी (राष्ट्रीय बचत पत्र) में भी रकम इन्वेस्ट की गई थी। कुछ समय पहले डा.गंगासागर सिंह के आरडी की समयावधि पूरी हुई तो एजेंट ने उन्हें पोस्टमास्टर द्वारा जारी स्टेट बैंक का चेक लाकर दिया। डा.सिंह ने अपने नाम का चेक यूनियन बैंक में अपने खाते में लगाया तो काफी समय तक वह क्लियर नहीं हुआ, जबकि जिस समय उन्होंने चेक लगाया, उस समय उन्हें रुपयों की बहुत जरुरत थी। रकम तो उन्हें समय पर मिली नहीं, कुछ दिन बाद रिफर टू ड्रावर (चेक काटने वाले की कमी) लिखकर चेक को वापस कर दिया गया। चेक वापस करते समय डा.सिंह के खाते से कोई चार्ज तो नहीं कटा, लेकिन उन्हें मानसिक व समय गंवाने की परेशानी झेलनी पड़ी। पोस्टमास्टर ने बैंक की कमी बताकर पल्ला झाड़ लिया। इसके बाद लौटाये गये चेक को ही डा.गंगासागर सिंह ने दोबारा अपने खाते में लगाया तो वही चेक क्लियर हो गया और उनके खाते में रकम भी आ गई। 
चेक भंजा नहीं, लग गयी चपत 
पिछले महीने डा.सिंह की पत्नी के नाम की आरडी व एनएससी की भी समयावधि पूरी हो गई। एजेंट माधुरी गुप्ता ने पोस्टआफिस से उनकी पत्नी के नाम दो चेक लाकर दिया। इस चेक को यूनियन बैंक के उनके खाते में लगाया गया तो रिफर टू ड्रावर लिखकर रिर्टन किया गया। साथ ही 13 मई 2022 को पहले चेक को लौटाने के एवज में बैंक ने श्रीमती सिंह के खाते से 295 रुपये काट लिया। इसी तरह 20 मई 2022 को दूसरे चेक को वापस करने के नाम भी उतनी ही धनराशि काट ली गई। पोस्टआफिस व बैंक के बीच चल रहे खेल में चीटिंग के शिकार हुए पति-पत्नी हैरान व परेशान हैं। रुपये मिले ही नहीं और चेक भंजाने के चक्कर में प्रति चेक 295 रुपये चले जाने के शिकार अकेले डा.गंगासागर सिंह की पत्नी ही नहीं हैं, पिछले दो साल में हजारों लोग इस खेल के शिकार हुए हैं। डा.गंगासागर सिंह ने साक्ष्य के तौर पर बुलंद आवाज को अपनी पत्नी के बैंक खाते के पासबुक की छायाप्रति भी उपलब्ध कराई है, जिसमें साफ-साफ चेक वापसी के नाम पर 295 रुपये काटा जाना दर्शाया गया है। 
पोस्टमास्टर ने बैंक पर मढ़ी तोहमत 
इस संबंध में बुलंद आवाज ने प्रधान डाकघर के पोस्टमास्टर प्रमोद कुमार सिंह से संपर्क साधा तो उन्होंने बताया कि तीन-चार दिन पहले उनका तबादला दोहरीघाट डाकघर के लिये हो गया है। चूंकि यह सब खेल उनके प्रधान डाकघर में रहते हुआ, इस सवाल पर उन्होंने स्वीकार किया कि सिर्फ यूनियन बैंक में ऐसा हो रहा है। उन्होंने कहा कि उनके डाकघर का खाता सहादतपुरा स्थित स्टेट बैंक आफ इंडिया की मुख्य ब्रांच में है। उन्होंने डा.गंगासागर सिंह, उनकी पत्नी व कुछ अन्य उपभोक्ताओं का जिक्र करते हुए कहा कि चेक क्लियर करने की जिम्मेदारी स्टेट बैंक की भी है। बैंक ऐसा क्यों कर रहे हैं, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा है। उन्होंने अपने स्तर से बैंक के अफसरों से उपभोक्ताओं की समस्याओं के निदान के लिये लिखा-पढ़ी भी की है। उन्होंने एक दलील दिया कि यदि उनके स्तर से कोई कमी रहती तो डा.गंगासागर सिंह का उनकी कमी बताकर लौटाया गया चेक दोबारा लगा तो वह क्लियर कैसे हो गया। उन्होंने कहा कि व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में उनके उपभोक्ताओं को परेशान कर व आर्थिक क्षति कराकर पोस्टआफिस से तोड़कर बैंक द्वारा खुद के यहां जोड़ने की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। 
एसबीआइ मैनेजर का ब्रांच की भूमिका से इन्कार 
एसबीआइ की मुख्य ब्रांच के शाखा प्रबंधक से बुलंद आवाज ने इस बाबत सवाल किया तो उन्होंने चेक क्लियरिंग में ब्रांच की भूमिका होने को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि पहले मैनुअल क्लियरिंग होती थी तो ब्रांच का रोल होता था। उन्होंने कहा कि अब इलेक्ट्रानिक सिस्टम से चेक क्लियर होता है। चेक का ग्रेड स्केन होता है। एसबीआइ के क्लियरिंग हाउस से यूबीआइ के क्लियरिंग हाउस का आटोमेटिक आदान-प्रदान होता है। उन्होंने कहा कि प्रधान डाकघर का खाता उनके ब्रांच में है। उनके द्वारा जारी चेक को किसी अन्य बैंक द्वारा किस वजह से चेक काटने वाले की कमी बताकर वापस किया जा रहा है, इस संबंध में वह कुछ नहीं बता सकते। उन्होंने कहा कि हर बैंकों के अपने-अपने नियम हैं। चेक वापसी के नाम पर रकम क्यों काटी जा रही है, इसे संबंधित बैंक से स्टेटमेंट निकलवाकर देखा जा सकता है। 
कब तक लुटेगा उपभोक्ता 
चेक जारी करने वाले पोस्टमास्टर अपनी गलती नहीं बता रहे। वह बैंक पर तोहमत मढ़ रहे हैं। यूनियन बैंक आफ इंडिया की शाखा चेक काटने वाले की कमी बताकर वापसी के नाम पर प्रति चेक 295 रुपये काट ले रहा है। जिस स्टेंट बैंक में डाकघर का खाता है, उस बैंक के प्रबंधक अपनी कोई कमी नहीं बता रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि कमी किसकी है। उस उपभोक्ता का क्या दोष है जो अपनी गाढ़ी कमाई से बचत की गई रकम को पाने के लिये मानसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति भी उठा रहा है। उसे जरुरत के समय पैसा भी नहीं मिल पा रहा है। पोस्टआफिस व बैंकों के आला अफसर मिल-बैठकर कोई टेक्निकल फाल्ट होगा तो उसे दूर करेंगे या उपभोक्ता ऐसे ही लुटता रहेगा।  
 



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