मऊ के लाल : बिरहा जगत की जान हैं संवरु मास्टर 

03 Apr 2022

---बुलंद आवाज विशेष---
-वीर रस, करुण रस व श्रृंगार रस में खुद की लिखे घटनाक्रमों को हैं गाते
-सरकारी अध्यापक की नौकरी व गायकी दोनों में समय के सदैव रहे पाबंद
-सुभाष चंद बोस की वीरगाथा सुनने को आजमगढ़ में भिड़ गये घराती-बराती
-मऊ के इमराना-सेराज कांड बिरहा से हुए लोकप्रिय, खतरे में पड़ गई थी जान 

बृजेश यादव 
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मऊ :
अपने साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं संवरु राजभर से। जूनियर हाईस्कूल के अध्यापक से सेवानिवृत्त लगभग 78 वर्षीय संवरु मास्टर बिरहा जगत की शान व जान हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि भोजपुरी लोकगीत हो या बिरहा, वह खुद का लिखा ही गाते हैं। सरकारी अध्यापक व बिरहा गायकी के रुप में ख्याति पाने वाले संवरु मास्टर दोनों पेशे में समय के पाबंद रहे। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की वीरगाथा पर उनका बिरहा सुनने के लिये रेला उमड़ता था। आजमगढ़ में बैठने की जगह बनाने को लेकर घराती और बारातियों में भिड़ंत इस कदर हुई कि दो लोगों की जान चली गयी। मऊ के इमराना-सेराज कांड ने देश-दुनिया में बिरहा प्रेमियों के बीच उन्हें लोकप्रिय किया। यह अलग बात है कि इस कांड को गाने के बाद उनकी जान भी खतरे में पड़ गई थी। तत्कालीन डीएम ने इस बिरहा कांड की कैसेट पर ही प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि बाद में काशीनाथ यादव समेत कुछ बिरहा कलाकारों ने इस कांड को गाया। गोरखपुर, देवरिया व बलिया में आज भी संवरु राजभर के बिरहा की काफी डिमांड है। 
आल इंडिया रेडियो पर 12 साल दी प्रस्तुति 
संवरु मास्टर के लोकगीत व बिरहा की प्रस्तुति वर्ष 1965 से आल इंडिया रेडियो पर गोरखपुर स्टेशन से 12 साल तक हुई। पहली बार रजिस्ट्रेशन कराकर ढोलकिया, हारमोनियम वादक व टेरिहों के साथ 10 साल तक प्रस्तुति दी। इसके बाद टीम बिखर गई तो दोबारा रजिस्ट्रेशन कराकर दो साल तक प्रस्तुति दी। संवरु मास्टर की टीम को आल इंडिया रेडियो पर अपनी गायकी के एवज में पहला पारिश्रमिक पांच सौ रुपये के चेक के रुप में मिला। 12वें साल तक उन्हें अधिकतम आठ हजार का चेक मिला, तब उतनी ही रकम आज के 80 हजार से भी अधिक थी। आल इंडिया रेडियो पर प्रस्तुति का ही असर रहा कि उनकी लोकगीत व बिरहा की गोरखपुर क्षेत्र में छाप पड़ी और उन्हें गोरखपुर, देवरिया, बलिया, आजमगढ़ व मऊ में बिरहा गवाने को लोग कार्यक्रम मांगने लगे। 
बैठने को लेकर भिड़ गये सुनवईया 
बिरहा गायन के दौरान कोई चर्चित घटना के बाबत बुलंद आवाज पूछने पर संवरु मास्टर ने बताया कि वैसे तो उन्होंने अनगिनत चर्चित बिरहा गाया। उन्होंने याद करते हुए एक-दो घटना का जिक्र किया। पहले घटनाक्रम को याद करते हुए कहा कि उन्होंने देश की आजादी के नायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की वीरगाथा पर बिरहा लिखा था। उसे कुछ जगहों पर गाया तो सुनने को भीड़ उमड़ने लगी। हर जगह उसी बिरहा को गाने की मांग होने लगी। आजमगढ़ के ब्रह्मस्थान पर एक मांगलिक कार्यक्रम में इसी बिरहे को गाने के लिये उनका कार्यक्रम लगा था। बिरहा के दौरान बैठकर सुनने के लिये जगह बनाने को लेकर सुनवाईया ही भिड़ गये। मामला इतना बिगड़ गया कि मारपीट में दो लोगों की जान चली गयी। मरने वालों में एक घराती और एक बाराती था। 
सेराज कांड से छा गये दुनिया में 
पूर्वांचल के चार-पांच जिलों में ही बिरहा जगत में ख्यातिप्राप्त संवरु मास्टर मऊ में इमराना से प्रेम में नौकर सेराज के हत्याकांड को गाकर पूरी दुनिया में बिरहाप्रेमियों में छा गये। संवरु बताते हैं कि इमराना मऊ के एक धन्ना सेठ की लड़की थी। यह बिरहा तो आमलोगों में काफी लोकप्रिय हुआ, लेकिन धन्ना सेठ व उनके लोग इतने आवेश में थे कि यदि वह मिल जाते तो उनकी जान भी जाने की संभावना बन गई थी। उनके गांव के कुछ लोग मऊ में हैंडलूम पावर कारपोरेशन में काम करने जाते थे। वहां से आने के बाद वह बताते कि आपने जिस परिवार की लड़की के प्रेमी की हत्याकांड पर बिरहा गाया है, उनके लोग आपके बारे में निरंतर टोह ले रहे हैं। अगर आप मऊ में मिल गये तो संभव है वापस घर न आ पाएं। उनके इस बिरहा की आडियो रिकार्डिंग की कैसेट की बिक्री ने पूरी दुनिया में धूम मचा दी थी। कुछ समय बाद धन्ना सेठ व उनके समर्थकों ने तत्कालीन जिलाधिकारी से मिलकर इस बिरहा पर रोक लगाने की मांग की तो कैसेट की रिकार्डिंग पर रोक भी लगा दी गई। 
ग्रामोफोन पर एचएमवी ने की रिकार्डिंग 
संवरु मास्टर की खुद की लिखी गीतों व बिरहा की रिकार्डिंग ग्रामोफोन के जरिये होती थी। बनारस में हुई रिकार्डिंग को डमडम कलकत्ता स्थित एचएमवी के हेड क्वार्टर भेजा जाता था। वहां से सलेक्शन होने के बाद कैसेट बनती थी। एचएमवी ने संवरु मास्टर की सत्यनरायन कथा, हनुमान चालीसा भक्ति गीतों के अलावा कांग्रेस के पक्ष व विपक्ष में गाई गीतों को सलेक्ट किया। इनमें बैला कांग्रेसी बुढ़ाला ना, खिंचाला हरवा ना गीत काफी धूम मचाई थी। वह बताते हैं कि सलेक्टेड गीतों की जितनी आडियो कैसेट बिकती थी, उसकी कीमत की पांच प्रतिशत रकम उन्हें रायल्टी के तौर पर साल में एक बार दे दी जाती थी। वर्तमान समय में उनकी माता का दूध गीत यूट्यूब पर भी उपलब्ध है।
करपिया में 15 जुलाई 1944 को हुआ जन्म 
संवरु राजभर का जन्म 15 जुलाई 1944 को रानीपुर ब्लाक क्षेत्र के करपिया गांव में हुआ। उनके पिता स्व.शिवधर राजभर सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते थे। संवरु अपने तीन भाइयों में दूसरे नंबर पर हैं। उनके बड़े भाई नन्हक राजभर परलोक सिधार चुके हैं। सबसे छोटे सुंदर राजभर हैं। प्राइमरी पाठशाला करपिया से इन्होंने कक्षा एक से 5वीं तक की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद कक्षा छह से 12वीं तक की पढ़ाई जनता इंटर कालेज रानीपुर से की। 
बीड़ी कारोबार के दौरान मिली नौकरी
इंटरमीडिएट करने के बाद कमाकर कुछ घर देने की जिम्मेदारी का बोध होने लगा। उन्होंने बेसिक शिक्षा परिषद में नौकरी के लिये आवेदन किया। इसके बाद कुछ अर्थ अर्जित करने के लिये मऊ में बीड़ी बनाना सीखे। साल भर तक उन्होंने बीड़ी का कारोबार किया। इस कारोबार के दौरान उन्होंने अगरबत्ती बनाने का भी गुर सीख लिया। इसी दौरान 1962 के शुरुआती महीने में मास्टरी के नौकरी के लिये इंटरव्यूह कार्ड आया। आजमगढ़ नार्मल स्कूल (अब डायट) में हुए इंटरव्यूह के कुछ समय ही समय बाद उनका अध्यापक के रुप में चयन होने का लेटर आ गया। दो साल तक उन्होंने मुहम्मदाबाद गोहना नार्मल स्कूल में प्रशिक्षण लिया। 
सोनिसा में हुई पहली पोस्टिंग 
प्रशिक्षण पूरा होने के बाद संवरु मास्टर की सहायक अध्यापक के रुप में वर्ष 1964 में पहली पोस्टिंग समीपवर्ती प्राथमिक विद्यालय सोनिसा पर हुई। इसके बाद इन्होंने प्राथमिक विद्यालय मखुनी, मड़हा मोहिउद्दीनपुर, सुरहुपुर, बरडीहा और अरैला में सहायक अध्यापक के रुप में प्रतिभाओं को संवारा। अरैला में तैनाती के दौरान उनकी प्रोन्नति हेडमास्टर के रुप में हो गई। उन्हें प्राथमिक विद्यालय बड़ार का हेडमास्टर बना दिया गया। कुछ वर्ष बाद पदोन्नति पाकर वह जूनियर हाईस्कूल के सहायक अध्यापक बने। जूनियर हाईस्कूल गालिबपुर में कुछ समय तक सेवा देने के बाद 1991 में उनका तबादला जूनियर हाईस्कूल खुरहट में हो गया। जुलाई 2007 में यहीं से वह सहायक अध्यापक पद से सेवानिवृत्त हुए। बुलंद आवाज के एक सवाल के जवाब में संवरु मास्टर ने बताया कि स्कूल में पढ़ाने का काम दिन में होता था और बिरहा के प्रोग्राम रात में लगते थे। इसलिए उन्हें दोनों की टाइमिंग को लेकर कभी कोई दिक्कत नहीं आई। वह देवरिया, गोरखपुर, बलिया में भी बिरहा गाकर भोर में चलते तो स्कूल टाइमिंग पर पहुंचकर अध्यापक का दायित्व संभाल लेते। 
चाचा बने प्रेरणास्रोत, बालसभा से मिली सराहना 
संवरु मास्टर में बिरहा के प्रति झुकाव व लगाव के प्रेरणास्रोत उनकी पट्टीदारी के चाचा स्व.शिवनाथ राजभर थे। बात वर्ष 1954 की है, तब संवरु रानीपुर में कक्षा छह में पढ़ते थे। चाचा शिवनाथ राजभर बिरहा गायक थे। घर पर वह गायकी का रिहर्सल करते तो संवरु भी उनकी पार्टी के साथ बैठकर टेरी भरते थे। कुछ समय बाद गीत-गवनई उन्हें भाने लगी। उन्हें ऐसी प्रेरणा मिली कि वह दो-चार मिनट की गीत लिखने का अभ्यास करने लगे। खुद की लिखी गीत को वह जनता इंटर कालेज में हर हफ्ते होने वाली बालसभा में लयबद्ध ढंग से गाने लगे। अध्यापक से लेकर सहपाठी व सीनियर छात्र सराहना करते तो उन्हें काफी अच्छा लगता। उनकी गायकी से गुरुजन इतने प्रभावित हुए कि उनकी फीस माफ कर दी गई। कला से फीसमाफी ने उनमें और जज्बा भर दिया। 
नौकरी मिलने के बाद सज गया साज-बाज 
वैसे तो इंटरमीडिएट करने के बाद ही संवरु मास्टर अक्सर कोई न कोई बिरहा व लोकगीत जरुर लिखते, लेकिन पहचान व ढोलक, हारमोनियम बजाने वाली पार्टी के अभाव में उसे कहीं गा नहीं पाते। 1964 में अध्यापक की नौकरी मिलने के बाद जब तनख्वाह मिलने लगी तो इन्हें साज-बाज व टीम सजाने का अर्थाभाव दूर हो गया। पड़ोसी गांव पलिया के लालू राम ढोलकवादक, उसी गांव के रामनाथ शर्मा हारमोनियम वादक, टेरिहा के रुप में अकटही के छोटू राजभर, ताहिरपुर के मुक्खू राम की टीम सजाई। इसके बाद शुरु हो गया जगह-जगह गायकी का दौर। इसी टीम के साथ उन्होंने 10 साल तक आल इंडिया रेडियो गोरखपुर में गायकी की। समय के चक्र के साथ टीम टूटी भी। टेरिहा मुक्खू राम का बिजली करेंट की चपेट में आकर निधन हो गया। रामनाथ शर्मा भी दिवंगत हो चुके हैं। लालू राम परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते ढोलक बजाना छोड़ कमाने दिल्ली चले गये। बाद में संवरू ने दूसरी टीम सजाकर आल इंडिया रेडियो के लिये दो साल तक और गायकी की। 
अब नई टीम भरती है टेरी 
संवरु मास्टर आज लगभग 78 वर्ष के भले हो चुके हैं, लेकिन उनके अंदर का गायक आज भी जवां है। नौजवानों की नई टीम भी आज उनके साथ टेरी भरती है। उनकी वर्तमान टीम में धर्मसीपुर गांव के गनेश राम ढोलकवादक हैं। इसी गांव के अरविंद राम हारमोनियम वादक तो रमेश राम व रामजन्म राम टेरी भरते हैं। इनके अलावा भरथीपुर के रामव्रत यादव पहलवान पान वाले और खुरहट के रामबली बांसफोर भी टेरी भरने का काम करते हैं। समाज और सामाजिक गतिविधियों से हमेशा अपडेट रहने वाले संवरु मास्टर लोगों के बीच बने रहने के लिये खुरहट क्षेत्र स्थित देईया माई धाम पर जनरल स्टोर की दुकान खोल रखे हैं। वहां पर गायन क्षेत्र में कैरियर बनाने को प्रयासरत तमाम युवा उनसे आशीर्वाद लेने और कुछ सीखने आते रहते हैं। 
 



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