मऊ के लाल : गोवंश अभियान को समूचे देश में कोआर्डिनेट कर रहे डा. उमेश सिंह 

09 Jan 2022

---बुलंद आवाज विशेष---
-गोवंश आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग मेरठ के हेड आफ डिपार्टपेंट के रुप में फैला रहे ख्याति
-देशी गायों की नस्ल सुधार एक गाय से प्रतिदिन 20 लीटर दूध उत्पादन को कर चुके हैं चरितार्थ
-11 राज्यों के अनुसूचित जाति के पालकों को कर रहे प्रशिक्षित, पशुपालन को मानते बेहतर रोजगार 

बृजेश यादव 
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मऊ :
अपने साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं प्रिंसिपल साइंटिस्ट (प्रधान वैज्ञानिक) डा.उमेश सिंह से। डा.सिंह वह शख्सियत हैं, जिन्हें भारत सरकार ने गोवंश अभियान के लिये समूचे देश के कोआर्डिनेटर की जिम्मेदार दे रखी है। केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान मेरठ में गोवंश आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग के हेड आफ डिपार्टमेंट डा.सिंह ने गायों की नस्ल सुधार के बहुत सारे शोध कर चुके हैं। वह पशुओं के संरक्षण से लेकर व्यवसाय की दृष्टि से इनकी उपयोगिता के संबंध में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 130 लेख व 10 किताबें लिख चुके हैं। देशी गायों की नस्ल सुधार कर गुजरात व पंजाब में एक गाय से प्रतिदिन 20 लीटर दूध उत्पादन कराने का श्रेय भी इनके नाम है। वर्तमान समय में केन्द्रीय गोवंश अनुसन्धान संस्थान मेरठ  में 11 राज्यों के अनुसूचित जाति के युवाओं को बेहतर टिप्स देकर व्यवस्थित ढंग से पशुपालन के लिये प्रशिक्षित किया जा रहा है। डा.सिंह का मानना है कि पशुपालन बेहतर रोजगार भी है। 
आल इंडिया कोआर्डिनेटर की जिम्मेदारी 
डा. सिंह को विभागाध्यक्ष के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा संचालित गोवंश कार्यक्रम का कोआर्डिनेटर बनाया गया है। वह देश भर में देशी दुधारु पशुओं की नस्लों में सुधार व दुग्ध उत्पादन क्षमता वृद्धि के लिये होने वाले कार्यों की मानीटरिंग करते हैं। शाहीवाल, गीर और कान्क्रेस नस्ल के पशुओं पर कार्य कर रहे हैं। नस्ल सुधार के बेहतर परिणाम भी मिले हैं। गुजरात व पंजाब में देशी गायों को उच्चकोटि के सीमेन चढ़ाकर जन्म लेने वाली बछिया से एक दिन 20 लीटर तक दूध प्राप्त किया जा रहा है। 
यूपी सरकार को भेजा है सुझाव 
गोवंश संरक्षण के लिये यूपी सरकार की योजना के बाद भी सड़कों व खेत-खलिहानों में दिख रहे छुट्टा पशुओं से कैसे निजात मिले, इस पर प्रदेश सरकार को अपना सुझाव भी भेजा है। उनका कहना है कि गांवों में देशी गायों को अभी तक जो सीमेन दिये जा रहे हैं, वह क्रास सीमेन हैं। उसकी जगह उच्चकोटि के शाहीवाल का सीमेन डाला जाना चाहिए। एक फोन काल पर डोर-टू-डोर सीमेन उपलब्ध कराने की जिम्मेदार का निर्वहन सरकार को करना होगा। इससे फायदा यह होगाा कि नस्ल सुधार होगा और दूध उत्पादन बढ़ जाएगा। ऐसे में दो-तीन लीटर दूध देने वाली देशी गाय के चारा, रख-रखाव आदि पर होने वाले खर्च को घाटे का सौदा मानकर छुट्टा छोड़ देने वाले पशुपालक दुग्धवृद्धि होने पर लाभ पाएंगे तो छोड़ने की बजाय उन्हें पालेंगे। 
पशुपालन से सुधर सकती है आर्थिक दशा 
डा.उमेश सिंह ने बुलंद आवाज से बताया कि पशुपालन आय का बेहतर स्रोत भी है। शुरु के एक-दो साल तक परेशानी आ सकती है, लेकिन मार्केट बनने के बाद उत्पाद का अच्छा रेट मिलने लगेगा। उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश में दूध का उपयुक्त बाजार न होने पर चिंता भी जताई। कहा कि 30-35 रुपये लीटर दूध बिकने से फायदा नहीं होगा। दूध की कीमत कम से 45 से 50 रुपये प्रति लीटर होनी चाहिये। उन्होंने बताया कि यदि दूध का उचित रेट न मिलता हो तो पशुपालकों को चाहिये की उसका घी निकालें। घी वर्तमान समय में 14-15 सौ रुपये किलोग्राम बिक रहा है। साथ ही पशुपालक मट्ठा भी बेच सकते हैं। पनीर भी बेहतर विकल्प है। 
गुजरात की फर्म बनारस में खोल रही शाखा
डा.उमेश सिंह ने बताया कि 10 से 15 लोग अपना ग्रुप बनाकर कंपनी का स्वरुप देकर भी बेहतर मार्केट तलाश कर अच्छा रेट पा सकते हैं। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे सहित फोरलेन सड़कें पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के लिये दुग्ध प्रोडेक्ट को लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर से लगायत दिल्ली तक पहुंचाने का प्रमुख माध्यम बन गई हैं। उन्होंने कहा कि गुजरात में प्रतिदिन 50 लाख लीटर दूध लेने की क्षमता वाली एक फर्म अपनी शाखा वाराणसी में भी खोल रही है। वह दूध का अच्छा रेट भी देती है। उस शाखा के संचालित होते ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के पशुपालकों के लिये बेहतर मार्केट की रह खुल जाएगी।   
गोबर से भी इनकम 
उन्होंने बताया कि पशुओं के दूध के उत्पाद से आय होने के साथ ही उनका गोबर भी इनकम बढ़ाता है। व्यवस्थित तरीके से केचुए के जरिये वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार की जाने लगे तो यह सामान्यता घूरा बनाकर इकट्ठा किये जाने वाले गोबर से चार गुना फायदेमंद होगी। शहरों में अपने घरों में बागवानी करने वाले लोग भी इसे खरीदकर ले जाते हैं। यह लखनऊ-दिल्ली जैसे शहरों में 10 रुपये किलो बिकती है। गांव-देहात के लोगों को जब तक उचित मार्केट नहीं मिलती है, तब तक वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार कर अपने खेत की उर्वरा शक्ति व फसलों का उत्पादन बढ़ा सकते हैं। 
पा चुके हैं कई फेलोशिप अवार्ड 
पशुपालन के क्षेत्र में नस्लीय सुधार करने वाले डा.उमेश सिंह कई फेलोशिप अवार्ड से सम्मानित भी हैं। हरियाणा की साकडैव सोसाइटी करनाल ने उन्हें वर्ष 2021 का फेलोशिप अवार्ड दिया। अक्टूबर 2021 में नई दिल्ली की रासा सोसाइटी व 2018 में मद्रास के नोनी फाउंडेशन फेलोशिप अवार्ड उन्हें नवाज चुका है। इसके अलावा भी उन्हें कई अवार्ड मिल चुके हैं। 
बगली गांव के सियासी परिवार में लिया जन्म 
डा. उमेश सिंह का जन्म छह मार्च 1965 को परदहां ब्लाक क्षेत्र के बगली गांव में हुआ। इनके पिता स्व. विश्वनाथ सिंह मिलिट्री में सूबेदार मेजर रहे। विश्वनाथ सिंह मिलिट्री से रिटायर्ड होने के बाद अपने गांव के दो बार निर्वाचित ग्रामप्रधान रहे। विश्वनाथ सिंह के पिताजी भी अपने गांव के कई बार प्रधान रहे। वर्ष 1995 में इस परिवार ने प्रधानी की राजनीति छोड़ दी। वजह बनी विश्वनाथ सिंह के दो बेटों में एक के मुंबई में जा बसना और दूसरे डा.उमेश सिंह का कृषि वैज्ञानिक बन जाना। 
झोला-पटरी से शुरु हुई पढ़ाई 
डा.उमेश सिंह की शिक्षा की शुरुआत झोला-पटरी से हुई। पड़ोसी गांव नवपुरा के सरकारी प्राथमिक स्कूल में कक्षा पांच तक पढ़े। छह से आठ तक की शिक्षा जूनियर हाईस्कूल बगली पिजड़ा से अर्जित की। हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की पढ़ाई उन्होंने रानीपुर ब्लाक मुख्यालय पर स्थित जनता इंटर कालेज से की। 
इंटरमीडिएट में स्कूल के रहे टापर 
डा.सिंह की गिनती मेधावी छात्रों में की जाती थी। प्रतिभाशाली उमेश सिंह ने इंटरमीडिएट की बोर्ड परीक्षा में अपने स्कूल को टाप कर ख्याति प्राप्त की। वर्ष 1983 में वह जनता इंटर कालेज में इंटर में 73.4 प्रतिशत अंक पाकर कालेज के टापर रहे। उनकी इस उपलब्धि पर गुरुजनों, गांव से लेकर क्षेत्र के प्रबुद्धजनों ने बधाई दी। लोगों ने उसी समय कहा था कि यह प्रतिभा बेहतर मुकाम तक जाएगी। साइंस साइड से हाईस्कूल करने वाले उमेश ने इंटर एग्रीकल्चर से किया। 
बीएससी करने पहुंचे आचार्य नरेंद्र देव विश्वविद्यालय 
इंटर उत्तीर्ण करने के बाद उमेश सिंह ने उच्चशिक्षा भी एग्रीकल्चर से करने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी मंशा परिवार में रखी तो  पिताजी ने बेहिचक स्वीकृति दे दी। इसके बाद बीएससी में इनका दाखिल आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय फैजाबाद (अब अयोध्या) में हुआ। वहां से उन्होंने एग्रीकल्चर से बीएससी करने के बाद पशुपालन विषय से स्नातकोत्तर किया। इसके बाद इन्होंने हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर से पीएचडी की। वर्ष 1993 में पीएचडी कंपलीट हुई। 
असिस्टेंट प्रोफेसर से कैरियर की शुरुआत 
पीएचडी करने के उपरांत आल इंडिया स्तर पर हुए इंटरव्यू में इनका सलेक्शन असिस्टेंट प्रोफेसर के रुप में हो गया। इन्होंने 1994 में छत्तीसगढ़ के रायपुर में स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफसर नौकरी की शुरुआत की। अपने स्टूडेंटों को पशुपालन से संबंधित ज्ञान बांटने लगे। 
छह साल बाद वरिष्ठ वैज्ञानिक का दर्जा 
डा.उमेश सिंह को असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी करते हुए छह साल बाद वर्ष 2000 में वरिष्ठ वैज्ञानिक का दर्जा मिल गया। इनका स्थानांतरण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सीएसडब्ल्यूआरआइ इंस्टीट्यूट जयपुर राजस्थान के लिये हो गया। हालांकि उन्होंने ज्वाइनिंग परिषद के ही केंद्र नार्थ टेम्परैट रिजनल स्टेशन गडसा कुल्लू हिमाचल प्रदेश में की। 
तीन साल बाद आ गए मेरठ 
हिमाचल प्रदेश में तीन साल की सेवा देने के बाद इनका स्थानांतरण वर्ष 2003 में केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान मेरठ के लिये हो गया। तबसे वह यहीं कार्यरत हैं। यहां सेवा देते हुए उन्हें वर्ष 2008 में प्रिंसिपल साइंटिस्ट (प्रधान वैज्ञानिक) का दर्जा मिला। इसके बाद वह गोवंश आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष बन गये। इसी पद पर वर्तमान समय में कार्यरत हैं। 

 



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