अखिलेश जी, नीम तले से आपका विधायक नदारद

17 Sep 2023

- जितब चाहे हारब, घोसी में मिलब निबिये के नीचे का मंच से भरे थे दंभ
- तीन दिन से अपनी समस्या लेकर जा रही जनता निराश होकर लौट रही बैरंग
- गहरी आशंका, कहीं फिर पहले की तरह बीमार होकर लखनऊ में न रहने लगें

बृजेश यादव

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मऊ :  यह पत्र घोसी की जनता का समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के नाम है। वही अखिलेश यादव के नाम जिनकी एक अपील पर उनके ही दल को बदलकर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से मैदान में कूदे दारा सिंह चौहान को जनता ने मात दिया। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद अखिलेश यादव की बातों पर भरोसा कर विपक्ष का विधायक चुनने वालों को अब निराशा हाथ लगने लगी है। अखिलेश यादव के मंच से जितब चाहे हारब, 24 घंटा मिलब घोसी में निबिया के नीचे का दंभ भरने वाला उनका विधायक जीत दर्ज करने के बाद पिछले तीन दिन से लापता है। अपनी अनुपस्थिति में अपने उत्तराधिकारी बेटे पूर्व प्रमुख सुजीत सिंह को भी कार्यालय पर पब्लिक की बात सुनने के लिए छोड़ना मुनासिब नहीं समझा। ऐसे में अपनी समस्या लेकर जा रही जनता आक्रोशित हो वापस हो रही है।

जनता को याद आने लगा पुराना कार्यकाल

अखिलेश जी, घोसी उपचुनाव में आपकी पार्टी से जीत दर्ज करने वाले सुधाकर सिंह का पिछला कार्यकाल जनता को याद आने लगा है। 2012 में इसी घोसी से समाजवादी पार्टी के विधायक बने सुधाकर सिंह अपने पूरे कार्यकाल में गिनती के दिन ही घोसी में नजर आए। वह खुद को बीमार होने का हवाला देकर ज्यादातर समय राजधानी लखनऊ में ही बिताए। 2017 में हारने के बाद घोसी में नीम तले जरूर मिलने वाले सुधाकर सिंह उप चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद पिछले तीन दिन से फिर लापता हो गए हैं। पेंशन, आवास समेत तहसील व ब्लाक स्तरीय मामलों को लेकर घोसी में नीम तले जाने वाली जनता अपनी समस्याओं को जस का तस लेकर बैरंग वापस हो रही है। लोग अब यह कहते सुने जा रहे हैं कि सुधाकर सिंह अब फिर बीमारी का बहाना बनाकर ज्यादातर समय लखनऊ में ही बिताएंगे।

फेसबुक पर दिखा रहे सैफई का फोटो

जनता की समस्या सुनने को नीम तले कोई जिम्मेदार नहीं है। एक-दो लड़के जो वहां लोगों से मिल रहे हैं, वह यही बता रहे हैं कि विधायक जी अखिलेश यादव, शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव से मिलने लखनऊ से लेकर सैफई तक गए हैं। फेसबुक पर उनकी तस्वीरों को दिखाकर वह आम जनता को अपनी बात में दम होने को प्रमाणित कर रहे हैं। सवाल यहां यह है कि जनता साइकिल से, सवारी गाड़ी से अपना समय व किराया, तेल आदि खर्च कर विधायक के कार्यालय पहुंचे और वहां पर कोई जिम्मेदार के मिलने की बजाय यह बताया जाए कि विधायक जी पार्टी मुखिया से मिलने गए हैं क्या यह उचित है? कम से कम कोई एक जिम्मेदार तो होना चाहिए जो जनता की समस्याओं को डायरी पर नोट करे और विधायक की वापसी के बाद उन्हें बुलवाकर समस्या के निदान का भरोसा दिलाये लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।

फिर बाहरी और स्थानीय में अंतर क्या

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपनी जनसभा में भले ही घोसी के उपचुनाव को इंडिया गठबंधन बनाम एनडीए गठबंधन का लोकसभा से पहले का पहला चुनाव बताया हो लेकिन उनके प्रत्याशी सुधाकर सिंह अंत तक इस चुनाव को बाहरी बनाम स्थानीय बताकर लड़ते रहे। आजमगढ़ के रहने वाले दारा सिंह चौहान को वह बाहरी और खुद को घोसी का स्थानीय होने का अंत तक बयान देते रहे। स्थानीय विधायक निर्वाचित होने के बाद भी अपने कार्यालय से नदारद होने को लेकर आम लोगों का कहना है कि अगर यही हाल होना था तो फिर बाहरी और स्थानीय में क्या अंतर है? स्थानीय के सवाल पर वोट देने वाली जनता अब खुद को  ठगा महसूस करने लगी है। 

कोई भी होता प्रत्याशी जीतता चुनाव

समाजवादी पार्टी घोसी के उपचुनाव को चाहे जिस रूप में भुनाए लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सच्चाई यही है कि दारा सिंह चौहान के खिलाफ सपा का जो भी उम्मीदवार रहता, वह चुनाव जरूर जीतता। इसके पीछे उनका तर्क है कि दारा सिंह चौहान के हर चुनाव के पहले या बाद में दल बदलने की शुरू की गई परंपरा से जनता जबरदस्त आक्रोशित हो गई थी। उनके सजातीय मतदाताओं को छोड़ अन्य सभी वर्गों में कम चाहे बेसी इस बार दारा को हराने की सहमति बन चुकी थी। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। ऐसे में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का जो भी उम्मीदवार होता चाहे वह किसी वर्ग का चुनाव जरूर जीतता।

सपा मुखिया से जनता की यह है मांग

घोसी विधानसभा क्षेत्र के रमाकांत यादव, आदर्श मौर्य, रामप्रभाव निषाद, इफ्तेखार अहमद, राम बचन गोंड, दिनेश कनौजिया आदि का अखिलेश यादव से कहना है कि उन्होंने रिस्क लेकर  विपक्षी दल का विधायक चुना। अखिलेश यादव के मंच से वादा करने के बाद भी जनता की समस्या सुनने से नदारद विधायक को जनता की सेवा के लिए उनके वादे के मुताबिक नीम तले ही बैठकर समस्याओं का निदान करने का निर्देश दिया जाए। सदन चलने के समय उनकी अनुपस्थिति में किसी जिम्मेदार और जवाबदेह को कार्यालय का प्रभार जरूर दिया जाए।

 



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