मऊ के लाल : आइपीएस अशोक राय के समक्ष बाहुबली अतीक ने टेका घुटना   

19 Jun 2022

---बुलंद आवाज विशेष---
-सपा की सरकार में राजनैतिक वरदहस्त प्राप्त पूर्व सांसद की गिरफ्तारी थी बड़ी चुनौती
-फरवरी 2017 में एएसपी यमुनापार रहते भेजा जेल, तबसे बाहर नहीं आ सका माफिया
-कुशीनगर में सीओ रहते अपने नेतृत्व में जंगल पार्टी व भागड़ गिरोह की उखाड़ दी जड़
-बिहार के शातिरों को ठिकाने लगाने को उनके दुश्मनों से हाथ मिलाने में नहीं किया गुरेज
-नेपाल-बिहार में मांद में घुसकर दर्जन भर खूंखार बदमाशों को दबोच लाने का है रिकार्ड

बृजेश यादव 
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मऊ : बुलंद आवाज
के साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं आइपीएस अशोक राय से। अशोक राय वह शख्सियत हैं, जिनके सामने प्रयागराज के पूर्व सांसद व तीन-चार बार के विधायक रहे बाहुबली अतीक अहमद ने घुटना टेक दिया। घर से खींच लाने की सख्त हिदायत भरी उनकी एक काल पर वह सीओ दफ्तर पहुंचा और समर्पण कर दिया। अशोक राय ने यह कारनामा तब कर दिखाया जब सूबे में सपा की सरकार में राजनैतिक वरदहस्त प्राप्त अतीक को गिरफ्तार करना आसान नहीं था। उनके द्वारा ही 11 फरवरी 2017 को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया माफिया अब तक बाहर नहीं आ पाया। इसके पूर्व राय ने कुशीनगर में आतंक के पर्याय बिहार के भागड़ गिरोह की जड़ उखाड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कुशीनगर में सीओ रहते उन्होंने अपने नेतृत्व में कई ऑपरेशन चलाकर जंगल पार्टी के तमाम डकैतों का काम तमाम कर दिया। उनके नाम यूपी के सीमावर्ती जिलों में अपराध कर बिहार व नेपाल में जाकर छिपने वाले खूंखार बदमाशों को उनकी मांद से खोज लाने का भी रिकार्ड है। साहसी अशोक राय ने बिहार के अपराधियों को ठिकाने लगाने के लिये उनके दुश्मन गिरोहों से भी हाथ मिलाने में गुरेज नहीं किया। ट्रेजरी आफिसर से कॅरियर की शुरुआत करने वाले राय का पीपीएस क्वालीफाई कर खाकी धारण करने का ख्वाब पूरा हुआ तो उन्होंने नौकरी छोड़ने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। इसके बाद वाणिज्य कर व एआरटीओ विभाग में भी अफसर की नौकरी मिली, लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं किया। 
हाईकोर्ट में होती ती अफसरों की पेशी 
अतीक अहमद ने एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी नैनी के प्रोफेसरों को एक छात्र का निलंबन वापस कराने के लिये 14 दिसंबर 2016 को पीट दिया था। इस मामले में एफआइआर दर्ज होने के बाद भी पुलिस गिरफ्तार नहीं कर रही थी। गुंडई व गैरकानूनी कृत्य से आहत सभी प्रोफेसर हड़ताल पर चले गये। उन्होंने हाईकोर्ट में रिट दाखिल कर पुलिस पर तत्कालीन सपा सरकार के दबाव में अतीक को गिरफ्तार न करने का आरोप लगाया। चीफ जस्टिस डीएस भोसले व यशवंत वर्मा की डबल बेंच में सुनवाई के दौरान अक्सर पुलिस अफसरों की पेशी होने लगी। पुलिस अधीक्षक यमुनापार होने के चलते एएसपी अशोक राय को भी कोर्ट से फटकार लगी तो उन्होंने बाहुबली अतीक को शिकंजे में लेने का निर्णय ले लिया। 
दिखाया तेवर तो माफिया ने किया सरेंडर 
हाईकोर्ट में पेश होकर अतीक को गिरफ्तार न कर पाने का अफसरों को जवाब देना दुश्वार होता जा रहा था। पुलिस के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि अतीक की गिरफ्तारी के बाद उसके समर्थकों द्वारा चक्काजाम, आगजनी जैसे प्रदर्शन की आशंका थी। इस दौरान अशोक राय को वर्दीधारण करते समय ली गई शपथ याद आई तो उन्होंने रणनीति के तहत काम किया। राय ने अतीक अहमद को सीधे काल किया। पुलिसिया तेवर में बात करते हुए कहा कि अब पानी नाक से ऊपर जा रहा है। अब सिर्फ दो ही रास्ते बचे हैं, या तो हम काफी संख्या में फोर्स लेकर तुम्हे तुम्हारे घर से दबोच लाएं या फिर तुम सरेंडर कर दो। अशोक राय का तेवर देख माफिया सहम गया और सीओ दफ्तर में आकर सरेंडर कर दिया। उसे और उसके साथियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने उसके पूर्व के आठ-दस हत्या के मुकदमों की जमानत निरस्त कराई। तबसे अब तक वह सलाखों के पीछे ही है। यह अलग बात रही कि उसकी गिरफ्तारी का खामियाजा कुछ ही दिन बाद राय को तबादले के रूप में भुगतना पड़ा। 
ट्रेनिंग के दौरान ही डकैतों से पड़ा पाला 
खाकी वर्दी धारण कर सीओ की ट्रेनिंग के दौरान ही अशोक राय का डकैतों से पाला पड़ गया। दो साल की ट्रेनिंग के दौरान छह माह तक जिलों में पोस्टिंग दी जाती है। बात वर्ष 1995 की है। उन्हें छह माह के लिये इटावा में पोस्ट किया गया। 32 साल की अवस्था में अशोक राय जब इटावा पहुंचे तो वहां अपराधियों का आतंक देख दंग रह गये। कानून-व्यवस्था की स्थिति वहां इतनी खराब थी कि डकैत गिरोह दिनदहाड़े अपहरण कर ले जाते थे और फिरौती वसूलने के बाद छोड़ते थे। यहां डकैतों से पुलिस की लंबी मुठभेड़ चलती थी। दोनों तरफ से घंटों गोलियां चलती थीं। लाशें दोनों तरफ से गिरती थीं। एक-दो ऑपरेशन का हिस्सा वह भी बने, लेकिन प्रशिक्षणरत रहने के चलते ऑपरेशन का नेतृत्व उन्हें नहीं दिया गया। 
कुशीनगर में बुद्धि व बल का किया उपयोग 
ट्रेनिंग पूरी होने के बाद तीन साल तक रायबरेली में सीओ रहे। इसके बाद 1999 में उनका तबादला कुशीनगर के लिये हो गया। यहां पर यूपी-बिहार के बार्डर पर बेतिया वाले इलाके में जंगल पार्टी डकैतों का तांडव चरम पर था। बिहार का भागड़ गैंग, अजय राय गैंग व आशुतोष गैंग भी सक्रिय था। कानून की रक्षा करने की सौगंध खाकर खाकी धारण करने वाले अशोक राय को दावा शेरपा जैसे पुलिस अधीक्षक का मार्गदर्शन व सकारात्मक सहयोग मिला तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ हाथ खोल दिया। पुलिस के बल व बुद्धि का प्रयोग कर एक के बाद एक खूंखार अपराधी को ठिकाने लगाना शुरु कर दिया। 
दुश्मन के दुश्मन से हाथ मिलाने पहुंचे बिहार 
कुशीनगर में अपराध का पर्याप बन चुके बिहार के भागड़ गिरोह की जड़ उखाड़ना पुलिस के लिये काफी चुनौती थी। पुलिस कप्तान ने अशोक राय को अपने नेतृत्व में आपरेशन चलाने की जिम्मेदारी सौंपी। जब जहां आवश्यकता महसूस हो 20-25 गाड़ी फोर्स व असलहा का उपयोग करने की छूट दी गई। अशोक राय ने भागड़ गिरोह के खात्मे के लिये बुद्धिमानी भरी रणनीति बनाई। वह सादे वेश में गोपालगंज में भागड़ गिरोह के दुश्मन गिरोह के सरगना के पास उसके ठिकाने पर पहुंचे। उन्होंने भागड़ गिरोह के खात्मे के लिये उसका सहयोग मांगा तो वह कुछ शर्तों के साथ तैयार हो गया। इसके बाद क्या था, उस गिरोह की मदद से एक-एक कर बिहार व नेपाल में छिपे भागड़ गिरोह के 15 खूंखार अपराधियों को पकड़कर यूपी लाया गया। पुलिस के चंगुल से भागने के प्रयास में उनमें से दर्जन भर मार गिराये गये। इन घटनाक्रमों के बाद उस गिरोह का अपराध थमा और अशोक राय की इनकाउंटर स्पेशलिस्ट के रुप में पहचान बन गई। अपराधी उनके नाम से भय खाने लगे। 
2018 में प्रोन्नति पाकर बने आइपीएस 
पीपीएस के रुप में 1994 में सलेक्शन होने के बाद अशोक राय ने दो साल ट्रेनिंग पूरी की। इसके बाद उनकी पहली पोस्टिंग रायबरेली में हुई। वहां तीन साल तक तैनाती के बाद उनका तबादला कुशीनगर के लिये हो गया। यहां भी उतने ही समय तक रहने के बाद कानपुर नगर, सिद्धार्थनगर, वाराणसी, बांदा में सीओ रहे। वाराणसी में दोबारा भी पोस्टिंग हुई। वह मिर्जापुर में तैनात थे, उसी दौरान पदोन्नति पाकर एएसपी बन गये। एएसपी के रुप में मथुरा, आगरा, इलाहाबाद, लखनऊ व अंबेडकर नगर में तैनात रहे। अंबेडकरनगर में तैनाती के दौरान वर्ष 2018 में वह पदोन्नति पाकर आइपीएस बन गये। 
सिद्धार्थनगर व मैनपुरी के रहे एसपी 
आइपीएस बनने के बाद अशोक राय डेढ़ साल तक पीएसी के कमांडेंट रहे। इसके बाद उन्हें सिद्धार्थनगर में पुलिस अधीक्षक बनाकर भेजा गया। चूंकि पूर्व में सीओ के रूप में वह सिद्धार्थनगर में रह चुके थे, इसलिए वहां के बार्डर पर होने वाली आपराधिक गतिविधियों की उन्हें जानकारी थी। उन्होंने मातहतों से अपना अनुभव साझा कर व हिदायत देकर कानून-व्यवस्था को चाक-चौबंद बनाये रखा। इसके बाद सरकार ने उन्हें मैनपुरी का पुलिस अधीक्षक बनाया। वहां भी कानून का उल्लंघन करने वालों को उन्होंने नहीं बख्शा। पखवारे भर पहले उनका तबादला हो गया। वर्तमान समय में वह वाराणसी कमिश्नरेट में डीसीपी स्पेशल ड्यूटी (डिप्टी कमिश्नर आफ पुलिस) के रुप में कार्यरत हैं। 
रेयांव में भगवान राय के घर लिया जन्म  
अशोक राय का जन्म बड़रांव ब्लाक के रेयांव गांव में जुलाई 1962 में हुआ। वह स्वर्गीय भगवान राय की चार संतानों (दो बेटे-दो बेटियां) में बेटों में छोटे हैं। पांच साल पहले गोलोकवासी हुए भगवान राय प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक थे। मास्टर साहब का दोहरीघाट व बड़रांव ब्लाक क्षेत्र के सम्मानित व्यक्तियों में प्रमुख स्थान था। पिता द्वारा बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने का परिणाम रहा कि अशोक राय के बड़े भाई डा.राजेंद्र प्रसाद राय मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित रिजनल इंजीनियरिंग कालेज रीवां में मैथमेटिक्स के प्रोफेसर बने। डा.आरपी राय सेवानिवृत्त होने के बाद अब वाराणसी में रहते हैं। उनका गांव भी आना-जाना होता है। 
हाईस्कूल-इंटर में कालेज के रहे टॉपर 
अशोक राय बचपन से ही मेधावी छात्र रहे। उनकी कक्षा एक से पांच तक की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय रेयांव में हुई। कक्षा छह से 10वीं तक की पढ़ाई उन्होंने संत विनोबा इंटर कालेज सिपाह से की। इंटरमीडिएट शांता राम स्वतंत्र भरत इंटरमीडिएट कालेज अमिला से किया। सबसे बड़ी बात यह रही कि हाईस्कूल में 80 प्रतिशत मार्क्स पाकर उन्होंने कालेज को टाप तो किया ही, उनके पहले उस कालेज में किसी के उतना अंक पाने का रिकार्ड भी नहीं था। इंटर में भी 79 फीसद अंक पाकर उन्होंने कालेज को टाप किया। 
बीएचयू में फैकेल्टी को किया टॉप 
इंटरमीडिएट करने के बाद राय आगे की शिक्षा के लिये काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) चले गये। साइंस से उन्होंने बीएसएसी में दाखिला लिया। यहां भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और अपनी फैकेल्टी को टॉप कर दिया। बीएससी के बाद उन्होंने एलएलबी में दाखिला लिया। पढ़ाई के साथ सिविल सर्विसेज की तैयारी भी करते रहे। उन्होंने लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में हिस्सा लेना भी शुरु कर दिया। इसका परिणाम यह रहा कि एलएलबी का फर्स्ट व सेकेंड ईयर ही कंप्लीट कर पाये थे कि 1989 में उनका सलेक्शन ट्रेजरी आफिसर के बाद पर हो गया। दो साल की ट्रेनिंग के बाद 1991 से 1994 तक वह लखनऊ में उस पोस्ट पर नौकरी किये। 1994 में पीपीएस क्वालीफाई करने के बाद उन्होंने खाकी धारण कर ली। 
गांव में बचपन के दोस्तों की खलती है कमी
आइपीएस अशोक राय का अपनी जन्मभूमि रेयांव गांव से भी गहरा नाता है। वह नेवता-हकारी में समय रहने पर जरुर आते हैं। अवकाश मिलने पर भी गांव आना-जाना लगा रहता है। बुलंद आवाज के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि गांव में कदम रखते ही उनकी आंखों के सामने बचपन की स्मृतियां चलचित्र की तरह चलने लगती हैं। गर्मी की छुट्टियां बिताते समय आम का पेड़, कबड्डी व चिक्की खेलने का स्थान सब याद आता है। बचपन के सभी साथियों का चेहरा सामने आता है। कुछ साथियों के दिवंगत हो जाने के चलते उनकी याद आते ही आंखों में आंसू आ जाते हैं। उनकी बहुत कमी खलती है। 
जन्मभूमि के लोगों को देते हैं भरपूर समय 
अशोक राय का कहना है कि पुलिस की नौकरी में जिम्मेदारी के चलते अवकाश कम मिलता है, लेकिन वह जहां भी तैनात रहे, जन्मभूमि के लोगों के आने पर उन्हें भरपूर समय देते हैं। गांव से ही जुड़ाव रखने को उन्होंने राजधानी लखनऊ की बजाय नजदीकी की सोच बनारस में मकान बनवाया। एक वाकया का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि हमारे गांव में घर-घर नल स्कीम योजना का ठेका मैनपुरी के ठेकेदार के पास था। वहां पुलिस अधीक्षक के रुप में वह तैनात थे। उन्होंने ठेकेदार को बुलाकर योजना को सही ढंग से मूर्त रुप देने को कहा। योजना को लागू कराने में कुछ व्यवधान आ रहा था तो तत्कालीन जिलाधिकारी ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी से बात कर उसे दूर कराया। उन्होंने कहा कि आज भी गांव के पीड़ित व शोषितों को न्याय दिलाने के लिये वह हरसंभव मदद करते हैं। प्रकृति से अगाध लगाव रखने वाले अशोक राय ने सेवानिवृत्ति के बाद गांव से और गहरे जुड़ने का वादा करते हुए युवाओं की बेहतरी के लिये यथासंभव रचनात्मक कार्य करने की बात कही। 



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