मऊ के लाल : बीएचयू में ज्ञान की रोशनी बिखेर रहीं अणिमा 

29 May 2022

---बुलंद आवाज विशेष---
-महिला महाविद्यालय में बीएससी-एमएससी की छात्राओं को करा रहीं जंतु विज्ञान का बोध
-कर चुकी हैं निषेचन क्रिया के बाद महिलाओं में बनने आने वाले अंडों के कारकों पर शोध
-बैंंक में क्लर्क पिता ने दिलाई बेहतर शिक्षा तो बेटी ने मुकाम हासिल कर किया गौरवान्वित
-रानीपुर ब्लाक के रामवन काझा गांव की बहू के पति पवन भी बीएचयू में असिस्टेंट प्रोफेसर 

बृजेश यादव 
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मऊ : बुलंद आवाज
के साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं डा.अणिमा त्रिपाठी से। जिले की बहू अणिमा काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के महिला महाविद्यालय में ज्ञान की रोशनी बिखेर रही हैं। बैंक में क्लर्क रहे पिता ने बेहतर शिक्षा दिलाई तो उनकी बेटी ने असिस्टेंट प्रोफेसर का मुकाम हासिल कर गौरवान्वित कर दिया। वह बीएससी व एमएससी की शिक्षा ग्रहण कर रहीं देश की कर्णधारों को जंतु विज्ञान के ज्ञान का बोध करा रही हैं। पीएचडी के दौरान वह निषेचन क्रिया के बाद महिलाओं के गर्भाशय में बनने वाले अंडों के विभिन्न कारकों पर शोध कर चुकी हैं। रानीपुर ब्लाक के रामवन काझा गांव की बहू अणिमा के पति प्रो.पवन दुबे भी बीएचयू में ही आनुवंशिकी विकार केंद्र में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वह जन्मजात बीमारियों पर रिसर्च कर रहे हैं। 
जहां पढ़ीं, वहीं पढ़ाने का सपना साकार 
अणिमा त्रिपाठी ऐसे सौभाग्यशाली लोगों में शामिल हैं, जिनका विश्व विख्यात बीएचयू में पढ़कर उसी संस्थान में पढ़ाने का सपना साकार हुआ। अणिमा ने बीएचयू से ही बीएससी, एमएससी व पीएचडी की है। अपनी रुचि के चलते उन्होंने जंतु विज्ञान (जीलोजी) को अपनाया तो जंतु विज्ञान ने उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर के रुप में कॅरियर बना दिया। सीमेन, स्पर्म से भ्रूण के आकार लेने से लेकर उसको मेंटेन करने वाले कारकों पर उनका गहन अध्ययन है। इस ज्ञान को वह देश की भावी वैज्ञानिक व प्रोफेसर बनने वाली छात्राओं में बांट रही हैं। 
मन में रच-बस गई है काशी 
पीएचडी करने के बाद अणिमा ने कॅरियर बनाने की ओर कदम बढ़ाया। मुरादाबाद स्थित आइएफटीएम यूनिवर्सिटी में जंतु विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर के रुप में उनका सलेक्शन भी हो गया। वह वहां पढ़ाने तो गईं, लेकिन उनके मन में तो भोले शंकर की नगरी काशी रची-बसी थी। ऐसे में उनका मन वहां नहीं लगा। किसी तरह से साल भर तक वहां सेवा देने के बाद वह काशी आ गईं। यहां उन्होंने बीएचयू आइआइटी में डिपार्टमेंट आफ फार्मास्युटिक्स में डेढ़ साल तक युवा वैज्ञानिक के रुप में कार्य किया। 
अमेरिका में भी लिया प्रशिक्षण 
अणिमा त्रिपाठी 23 जनवरी 2011 को प्रोफेसर पवन दूबे से दांपत्य जीवन के रिश्तों की डोर में बंध गईं। मां-बाप के घर अपनी इच्छा से पढ़ाई व अपना जीवन जीने वाली किसी भी बेटी के लिये शादी के बाद ससुराल वालों के हिसाब से आगे का जीवन जीना पड़ता है। ससुराल वालों की तरफ से कॅरियर बनाने की दिशा में रोक-टोक की बजाय प्रोत्साहन मिला तो उनमें दोगुनी ऊर्जा का संचार हो गया। उन्हें अपने पति के साथ अमेरिका जाकर भी प्रशिक्षण करने का सौभाग्य मिला। वह 2013 में उड़ान भरकर अमेरिका पहुंची। वहां डेढ़ साल तक प्रशिक्षण लेने के बाद काशी आ गईं। 
2017 में पूरी हुई मन की मुराद 
अमेरिका से वापसी के बाद अणिमा के मन की मुराद 2017 में पूरी हो गई। बीएचयू के महिला महाविद्यालय में जंतु विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति निकली तो उन्होंने आवेदन किया। इंटरव्यूह में हिस्सा लेने के कुछ दिन बाद जब उन्हें सलेक्शन होने की जानकारी हुई तो वह खुशी के मारे उछल पड़ीं। इस खुशी को उनके मायके व ससुराल पक्ष ने भी साझा किया। नात-रिश्तेदारों ने भी बधाई दी। रामवन काझा गांव के लोगों ने भी बहू के बीएचयू जैसे संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का गर्व से आसपास के गांवों व जिला-जवार में बखान किया। आज भी बहुओं को शादी के बाद भी सफल होने के लिये अणिमा की नजीर दी जाती है। 
पीएचडी के जुनून में झेल गईं दर्द 
2011 में शादी के बंधन में बंधने के बाद अणिमा ससुराल की जिम्मेदारियों का भी बखूबी निर्वहन करते हुए शिक्षा जारी रखी रहीं। बुलंद आवाज के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मायके में पिताजी के बैंक में जॉब करने के चलते पढ़ाई-लिखाई के संसाधनों को लेकर तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन पीएचडी के दौरान उन्हें अलग ढंग की दुश्वारियां झेलनी पड़ी। पीएचडी के दौरान वह प्रेगनेंट थीं। आज आठ साल का हो चुका उनका बेटा उनके गर्भ में था। प्रेगनेंसी के दौरान हर महिलाओं की तरह होने वाली दिक्कतों को झेलते हुए कालेज जाना काफी दुष्कर था, लेकिन पीएचडी करने के जुनून के चलते वह हर दर्द को झेल गईं। वर्तमान समय में तीन स्टूडेंट उनके मार्ग निर्देशन में पीएचडी कर रहे हैं। वह जंतु विज्ञान के विभिन्न आयामों पर शोध कर रहे हैं। 
गांव से भी रखती हैं नाता  
काशी की धर्म संस्कृति को मन में बसा चुकीं अणिमा को गांव से भी बेहद लगाव है। जब भी उनको अवकाश मिलता है, वह अपने ससुराल रामवन काझा जरुर आती हैं। गांव की आबोहवा, यहां का कल्चर भी उन्हें खूब भाता है। अणिमा का मायका मूल रुप से देवरिया जिले के रुद्रपुर में है। उनके पिता नरेंद्रमणि त्रिपाठी स्टेट बैंक आफ इंडिया में क्लर्क के पद से सेवानिवृत्त हैं। 1990 में उनका परिवार पिता के साथ बनारस आ गया, तबसे यहीं का होकर रहा गया। वाराणसी के इंदिरानगर में रहकर इन्होंने शिक्षा हासिल की। 
छोटी बहन भी असिस्टेंट प्रोफेसर 
नरेंद्रमणि त्रिपाठी की तीन संतानें (दो बेटियां, एक बेटा) हैं। उन्होंने शिक्षा का मोल समझते हुए तीनों बच्चों को बेहतर संस्थानों से उनकी रुचि के हिसाब से उच्च शिक्षा दिलाई। अणिमा की छोटी बहन गरिमा त्रिपाठी टीएनबी यूनिवर्सिटी भागलपुर में कैमिस्ट्री की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उनके भाई कृष्णमणि त्रिपाठी महाराष्ट्र के चालीसगांव में बैंक आफ महाराष्ट्रा के मैनेजर हैं। अणिमा की कक्षा एक से इंटरमीडिएट तक की शिक्षा केंद्रीय विद्यालय डीएलडब्ल्यू से सीबीएसई बोर्ड से हुई। इसके बाद उन्होंने बीएससी, एमएससी व पीएचडी बीएचयू से किया। अणिमा का कहना है कि बहुत पहले लोग बेटों की अपेक्षा पढ़ाने-लिखाने में बेटियों को कम महत्व देते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। उच्च शिक्षा हासिल कर देश के विभिन्न क्षेत्रों में बेटियां भी मुकाम बनाकर घर-परिवार का मान बढ़ा रही हैं।  



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