मऊ के लाल : वेद को कंठस्थ हैं ऋग्वेद के छह हजार मंत्र 

15 May 2022

---बुलंद आवाज विशेष---
-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विभाग के रहे हैं टॉपर
-2015 में सीएम अखिलेश यादव दे चुके हैं वेद पंडित पुरस्कार
-कलमकार चाचा की प्रेरणा से संस्कृत से हो गया गहरा लगाव
-जिस कालेज से मिली वेदविभूषण की उपाधि, उसी में अध्यापक

बृजेश यादव
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मऊ : बुलंद आवाज
के साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं वेदप्रकाश चतुर्वेदी से। वेद वह शख्सियत हैं जिन्हें ऋग्वेद के समस्त सूक्तों के 10 हजार 580 मंत्रों में छह हजार अभी भी कंठस्थ हैं। उन्होंने पत्रकार चाचा अशोक चौबे की प्रेरणा से संस्कृत को अपनाया तो संस्कृत ने उन्हें अपना लिया। इस भाषा के अध्ययन में इतने लीन हुए कि आचार्य (स्नातकोत्तर) में उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में अपने विभाग को टाप कर दिया। वर्ष 2013 में दीक्षांत समारोह में तत्कालीन राज्यपाल बीएल जोशी ने उन्हें गोल्ड मेडल प्रदान किया। सपा मुखिया अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में उनके हाथों वेदप्रकाश वर्ष 2015 में वेद पंडित पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वेदप्रकाश ने जिस कालेज से वेद विभूषण की उपाधि अर्जित की, आज वहीं ऋग्वेद अध्यापक के रुप में अपने नाम के अर्थ को चरितार्थ कर ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं। वह पूर्व मध्यमा (हाईस्कूल) व उत्तर मध्यमा (इंटरमीडिएट) के छात्र-छात्राओं को ऋग्वेद का बोध करा रहे हैं। 
संस्कृत ने बनाया विद्वान, नौकरी भी दी 
वेदप्रकाश चतुर्वेदी ने जूनियर हाईस्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के बाद संस्कृत को पूरी तन्मयता से अपना लिया। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्रावास में रहने के दौरान वह संस्कृत के वातावरण में ही ढलते चले गये। उन्हें संस्कृत से इतना गहरा लगाव होता गया कि वह एक तरह से उनकी माता-पिता बन गई। इसका परिणाम यह हुआ कि वेद को संस्कृत ने विद्वान बनाकर सूबे में सम्मान दिलाया तो उनका कॅरियर भी संवारा। वाराणसी के हनुमानघाट स्थित श्रीपट्टाभिराम शास्त्री वेद मीमांसा अनुसंधान केंद्र से उन्होंने वेद विभूषण की उपाधि ली। उसी उपाधि की बदौलत वर्ष 2019 में महज 27 साल की अवस्था में उन्हें उसी संस्थान में ऋग्वेद अध्यापक की नौकरी भी मिल गई। तबसे अब तक वह वहां ऋग्वेद के ज्ञान को अपने शिष्यों में बांट रहे हैं। 
बचपन से ही बना लिया लक्ष्य 
वेद प्रकाश ने संस्कृत को ही अपनाकर आगे बढ़ने का लक्ष्य बचपन में ही निर्धारित कर लिया था। इसकी वजह उनके चाचा वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार अशोक चौबे बने। कलमकार अशोक चौबे ने भतीजे वेदप्रकाश की प्रतिभा को बाल्यावस्था में ही पहचान लिया था। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि उनका यह भतीजा संस्कृत पढ़े और इस क्षेत्र में परिवार का नाम रोशन करे। खेती-किसानी जैसे बैकग्राउंड वाले परिवार से ताल्लुक रखने वाले वेद ने चाचा की इच्छा को पूरी करने को मन में ठान लिया। उसी को लक्ष्य बनाकर संस्कृत को प्राथमिकता में लेकर आगे की पढ़ाई की। 
2013 में विभाग को कर दिया टॉप 
अशोक चौबे की प्रेरणा से कक्षा आठ की पढ़ाई गांव पर पूरी करने के बाद वेद वाराणसी पहुंचे। यहां संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पूर्व मध्यमा (हाईस्कूल) में उन्होंने दाखिल लिया। विश्विद्यालय के छात्रावास में रहकर ही उन्होंने संस्कृत का अध्ययन शुरु किया। पूर्व मध्यमा उत्तीर्ण करने के बाद इन्होंने यहीं से उत्तर मध्यमा (इंटरमीडिएट) व शास्त्री (स्नातक) किया। स्नातक करते-करते वेद संस्कृत के ज्ञान में निपुण हो गये। इसका पुरस्कार भी उन्हें आचार्य (स्नातकोत्तर) का रिजल्ट आने के बाद मिला। वर्ष 2013 में आचार्य की परीक्षा में उन्होंने विश्विद्यालय के अपने विभाग को टॉप करने का गौरव हासिल किया। उनकी इस सफलता पर घर-परिवार की खुशी का तब ठिकाना नहीं रहा जब यूपी के राज्यपाल बीएल जोशी ने उन्हें दीक्षांत समारोह में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया। 
पढ़ाई के दौरान मंत्रों को करते रहे कंठस्थ 
संपूर्णानंद संस्कृत विश्विद्यालय में दाखिला लेने के बाद से ही वेदप्रकाश का मन ऋग्वेद का ज्ञान अर्जित करने की ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने ऋग्वेद की संहिता भाग, पद पाठ, क्रम अष्टव विकृति के 10 हजार 580 मंत्रों को कंठस्थ करना शुरु कर दिया। एक समय ऐसा आया जब सभी मंत्र इन्हें जुबानी याद हो गये। यह भी उनकी सफलता का बड़ा आधार बना। अखिलेश यादव ने वर्ष 2015 में मुख्यमंत्री रहते ऋग्वेद के मंत्रों को कंठस्थ करने वाले वेदप्रकाश को लखनऊ में समारोहपूर्वक वेद पंडित पुरस्कार से नवाजा। अखिलेश ने उन्हें 51 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। एक सवाल के जवाब में वेद ने बुलंद आवाज को बताया कि आज भी उन्हें पांच-छह हजार मंत्र जुबानी याद हैं। 
आचार्य युगल किशोर की विशेष कृपा 
काशी की सार्वभौमिक वैदुष्य परंपरा के वाहक आचार्य प्रोफेसर युगल किशोर मिश्र व उनके अनुज प्रोफेसर श्रीकिशोर मिश्र की इस मेधावी छात्र पर विशेष कृपा रही। इन गुरुजनों के मार्ग निर्देशन में इन्होंने ऋग्वेद का गहनता के साथ अध्ययन किया। इनके मार्गदर्शन की ही वजह रही कि वेदप्रकाश ने शास्त्री व आचार्य की पढ़ाई के दौरान ही श्रीपट्टाभिराम शास्त्री वेद मीमांसा अनुसंधान केंद्र से वेद विभूषण की उपाधि हासिल की। यही उपाधि उन्हें उसी अनुसंधान केंद्र में ऋग्वेद का अध्यापक बनाने में सहायक बनी। 
दो भाइयों में हैं बड़े 
संस्कृत के विद्वान वेदप्रकाश चतुर्वेदी का जन्म कोपागंज ब्लाक के आखिरी गांव हथिनी में पांच जून 1992 को हुआ। वह दो भाइयों में बड़े हैं। उनके पिता प्रमोद चौबे मूलतः किसान हैं। वेद की प्रारंभिक शिक्षा (कक्षा एक से आठ तक) कविवर श्याम नारायण पांडेय विद्यालय हथिनी से हुई। आगे की शिक्षा के लिये वह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी चले गये। बुलंद आवाज से बातचीत में वेदप्रकाश ने बताया कि वेद धर्म का मूल है। वेद में कर्मकांड, उपासनाकांड, ज्ञानकांड समाहित है। मानव जीवन के चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) वेद में ही हैं। उन्होंने कहा कि हमने मूल मंत्रों का संरक्षण किया। मूल मंत्र का संरक्षण रहेगा तो ही वास्तविक ज्ञान अर्जित होगा। ऋषि, मुनियों के संरक्षण मंत्रों का गहनता से अध्ययन करने पर काफी कुछ ज्ञान हासिल होता है। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि अभी भी पीएचडी कर नेट व जेआरएफ उत्तीर्ण करना उनका अगला लक्ष्य है। 



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