मऊ के लाल : प्रो. प्रेमचंद यादव को उच्च शिक्षा से मिला उच्च मुकाम 

24 Apr 2022

---बुलंद आवाज विशेष---
-आजमगढ़ के डीएवी पीजी कालेज के प्राचार्य पद को कर रहे सुशोभित
-डाक्टर बन सेवा की थी चाह, हाथ लगी विफलता तो ले लिया यू टर्न
-दो बार पीसएस व एक बार आइएएस की मुख्य परीक्षा में हुए शामिल
-40 शोधपत्र व पांच पुस्तकें प्रकाशित, देश में 15 सेमिनारों में व्याख्यान 

बृजेश यादव 
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मऊ : बुलंद आवाज
के साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं प्रोफेसर प्रेमचंद यादव से। डीएवी पीजी कालेजआजमगढ़ के प्राचार्य पद को सुशोभित कर रहे प्रो.प्रेमचंद ने उच्च शिक्षा हासिल की तो उच्च शिक्षा ने उन्हें उच्च मुकाम भी दिला दिया। कॅरियर को लेकर उधेड़बुन में पड़े युवाओं के लिये भी प्रो.यादव प्रेरणास्रोत हो सकते हैं। उनकी खुद की चाह डाक्टर बनने की थी, लेकिन सफलता न मिलने पर उन्होंने यू टर्न ले लिया। सिविल सर्विसेज के क्षेत्र में वह दो बार पीसीएस व एक बार आइएएस की मुख्य परीक्षा में भी शामिल हो चुके हैं। अब तक उनके खुद के लिखे 40 शोधपत्र व पांच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा देश भर में करीब 15 सेमिनारों में व्याख्यान देकर उन्होंने प्रतिभाओं को सही मार्ग दिखाने का काम किया है। 
राजनीति में पिछड़ों की भूमिका पर शोध 
प्रो. प्रेमचंद यादव ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से राजनीति शास्त्र से स्नातकोत्तर किया। यहीं से इन्होंने पीएचडी भी की। भारतीय राजनीति में अन्य पिछड़ी जातियों की भूमिका पर ही इन्होंने शोध किया। पंचायती राज व्यवस्था, भारतीय विदेश नीति, डा.राम मनोहर लोहिया व अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर उनकी लिखी किताबें प्रकाशित हो चुकी है। राजनीति शास्त्र से ही उच्च शिक्षा अर्जित करने के निर्णय के पीछे उनका घर का राजनीतिक परिवेश भी कारण बना। उनके पिता स्व.घुरभारी यादव अपने गांव के 40 साल तक प्रधान रहे। साथ ही राज्यपाल व मुख्यमंत्री रहे स्व.रामनरेश यादव, केन्द्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव के समकक्ष राजनीतिज्ञ थे। 
समाउद्दीनपुर करमी में लिया जन्म 
प्रो.प्रेमचंद यादव का जन्म 4 जून 1968 को रानीपुर ब्लाक क्षेत्र के ग्राम पंचायत समाउद्दीनपुर करमी (चिरैयाकोट) में हुआ। वह स्व.घुरभारी यादव की पांच संतानों (तीन बेटे, दो बेटियां) में दूसरे नंबर पर हैं। सबसे बड़े भाई सुदर्शन यादव गोविंदपुर पूर्व माध्यमिक विद्यालय समाउद्दीनपुर में प्रधानाध्यापक हैं। सबसे छोटे भाई गिरीशचंद यादव भी उसी स्कूल में सहायक अध्यापक हैं। इस एडेड विद्यालय की नींव इनके पिता घुरभारी यादव ने ही रखी थी। इसके अलावा सन 1952 में घुरभारी ने ही राष्ट्रीय इंटर कालेज चिरैयाकोट व 1970 में श्रीकृष्ण इंटर कालेज की नींव रखी थी। इन कालेजों से हजारों प्रतिभाएं निकलकर आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में नाम रोशन कर रही हैं। 
प्राइमरी स्कूल से बीएचयू तक की पढ़ाई 
प्रेमचंद यादव की प्रारंभिक शिक्षा झोला-पटरी से हुई। उन्होंने कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई गांव के प्राथमिक विद्यालय से की। पिताजी द्वारा स्थापित गोविंद पूर्व माध्यमिक विद्यालय से कक्षा छह से आठ तक की शिक्षा अर्जित किया। हाईस्कूल की शिक्षा राष्ट्रीय इंटर कालेज चिरैयाकोट से ग्रहण की। रानीपुर ब्लाक मुख्यालय पर स्थित जनता इंटर कालेज से वर्ष 1987 में विज्ञान वर्ग से इंटरमीडिएट उत्तीर्ण किया। आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिये वह बनारस चले गये। वहां काशी विद्यापीठ से स्नातक व बीएचयू से एमए व पीएचडी किया। 
कॅरियर को लेकर बनाया विकल्प 
प्रो.यादव की इंटरमीडिएट करने के बाद मेडिकल शिक्षा में प्रवेश लेने की हार्दिक इच्छा थी। बनारस में इन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा निकालने की लिये तैयार की। कोचिंग भी किया, लेकिन सफल नहीं हो सके। इसके बाद इन्हांने बीए, एमए के बाद पीएचडी के दौरान ही 1997 में नेट क्वालीफाई कर विकल्प बना लिया। नेट क्वालीफाई करने से पहले यूपी पीसीएस की प्री परीक्षा पास कर चुके थे। 1996 में वह मुख्य परीक्षा में शामिल हुए लेकिन सफलता नहीं मिली। 1997 में वह आइएएस व 1998 में पीसीएस की मुख्य परीक्षा दिये, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। 
1998 में असिस्टेंट प्रोफेसर को किया आवेदन 
कॅरियर को लेकर चल रही उहापोह के बीच 1998 में उच्च शिक्षा चयन आयोग इलाहाबाद ने असिस्टेंट प्रोफेसर की वैकेंसी निकाली। इसमें इन्होंने आवेदन कर दिया। वर्ष 2000 में इंटरव्यूह हुआ तो यहां पहली बार में ही सलेक्शन हो गया। एक अप्रैल 2000 को इन्होंने बीएनकेबी पीजी कालेज अकबरपुर अंबेडकर नगर में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ज्वाइन किया। 
एक नवंबर 2021 में बन गये प्राचार्य 
अंबेडकर नगर में उच्च शिक्षा देने के दौरान ही वर्ष 2012 में पदोन्नति पाकर एसोसिएट प्रोफसर बन गये। इसके बाद 2019 में उच्च शिक्षा चयन आयोग ने प्राचार्य की वैकेंसी निकाली तो इन्होंने आवेदन किया। वर्ष 2020 में लिखित परीक्षा हुई। उसे उत्तीर्ण करने के बाद इंटरव्यूह हुआ। साक्षात्कार में सलेक्शन होने के बाद एक नवंबर 2021 को इन्होंने मंडल मुख्यालय आजमगढ़ के प्रतिष्ठित डीएवी पीजी कालेज का प्राचार्य का पदभार ग्रहण किया और अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उच्च पद हासिल करने के बाद गांव से निकली प्रतिभाएं शहरों में परिवार संग शिफ्ट हो जाती हैं, लेकिन प्रो. यादव में ऐसा नहीं है। उन्हें गांव से अटूट लगाव है। बराबर गांव उनका आना-जाना है। वह अपने को सौभाग्यशाली मानते हैं कि उनके पिता का सानिध्य लंबे समय तक मिला। सौ साल से अधिक साल जीवित रहकर घर-परिवार व समाज को संवारने वाले उनके पिता 25 जुलाई 2016 को गोलोकवासी हुए। पिताजी के जीते जी बेटों ने उनके नाम पर 2002-2003 में गांव में घुरभारी यादव इंटर कालेज व 2015-16 में घुरभारी यादव डिग्री कालेज की स्थापना की है। इसकी देख रेख प्रो.प्रेमचंद के दोनों अध्यापक भाई करते हैं।  
पिता की थी उन्नतिशील किसान की पहचान  
प्रो.प्रेमचंद यादव के पिता घुरभारी यादव की गिनती 1972-73 में उस समय गिने चुने उन्नतिशील किसानों में होती थी, जब देश में अनाज का संकट था। बुलंद आवाज के एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि जिस समय लोगों को खाने को गेहूं नहीं मिलता था उस समय वैज्ञानिक विधि से खेती कराकर पिता ट्रक भरकर गेहूं बेचने बनारस एफसीआइ गोदाम भेजते थे। उनके खेत में जब गेहूं की वैज्ञानिक विधि से बोआई होती थी तब रानीपुर ब्लाक के खंड विकास अधिकारी और अन्य लोग देखने के लिये खेत में आते थे। उनके यहां देशी चीनी बनाकर अच्छा-खासा कारोबार होता था। उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि आज के युवाओं से हमारा यही कहना है कि यदि वह सच में भविष्य व कॅरियर बनाने के प्रति गंभीर हो जाएं और सकारात्मक प्रयास व मेहनत से तैयारी करें तो सफलता निश्चित मिलेगी। 



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