यथार्थ : आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है भिक्षाटन

17 Jan 2022

---नेक सलाह---
-गलत हाथों में दान देने वाले बढ़ाते हैं सामाजिक बुराई
-भीख मांगने पर सरकार को लगा देना चाहिये प्रतिबंध 

डा.गंगा सागर सिंह 
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मऊ :
भिक्षाटन आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को गहरी चोट पहुंचाता है। सरकार द्वारा भिक्षाटन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। दान एक बहुत पवित्र शब्द है। आज कल समाज में दानवीरों की कमी नहीं है लेकिन दान निःस्वार्थ होना चाहिए तथा गलत निष्ठा के व्यक्तियों को नहीं देना चाहिए। दानवीर को दान ग्रहण करने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं लक्ष्य की पूर्ण जानकारी के बाद ही दान देना चाहिए, अन्यथा आप एक सामाजिक बुराई को बढ़ावा दे रहे हैं।
अय्याशी का साधन बन रही प्रवृत्ति 
चंदा मांगना भीख मांगने के समान है। यह प्रवृत्ति आज के युग में जीविकोपार्जन व अय्याशी का साधन बनती जा रही है। इसे समाप्त किये जाने की आवश्यकता है। कोई भी संस्था या संघ कानूनतह ही चलना चाहिये। कानून से हटकर चलने पर संस्था या संघ टूट जाता है। किसी भी संघ के सभी सदस्यों को बराबर का अधिकार है। कोई भी व्यक्ति अपने सिनियारिटी का दुरुपयोग नहीं कर सकता है। 
नकद राशि न करें स्वीकार
संस्था सर्वोच्च है, व्यक्ति विशेष का कोई महत्व नहीं है। अगर आज की समाजसेवी एवं अन्य संस्थाएं नगर चंदा मांगना बंद कर दें और उन संस्थाओं से सदस्यता शुल्क समाप्त हो जाए तो पदाधिकारी ईमानदार एवं कर्मठ व्यक्ति होंगे। संस्थाएं दान व चंदा में स्टेशनरी, प्रचार माध्यम, आवश्यक वस्तुएं एवं कार्य को ही चंदा के रुप में स्वीकार करें अर्थात यात्रा टिकट, रहने की व्यवस्था, खाना-पीना, पंफलेट आदि का चंदा स्वीकार करें। नगर राशि कदापि न स्वीकर करें। 
अनिष्टकारी है ऐसा दान 
संस्थाओं में पद कार्य दक्षता, गुणवत्ता एवं कार्य संख्या पर दिये जाएं न कि चुनाव से। अगर चुनाव जरुरी है तो कम से कम योग्यता जरुर निश्चित की जाए। दान स्वेच्छा से दिया जाता है। अगर दान देते समय आत्मा को थोड़ा भी दुख होता है तो वह दान नहीं है। ऐसा दान देने एवं लेने वाले दोनों व्यक्तियों के लिये अनिष्टकारी है। 
पद मिलने के बाद असली पहचान 
मनुष्य अपनी क्षमता एवं कर्मों से किसी भी पद पर आसीन होता है। आगे का सफर स्वभाव, ईमानदारी, व्यवहार, कार्य कुशलता, बुद्धिमत्ता एवं सामाजिक परिदृश्य पर निर्भर करता है। राम चरित मानस में महाकवि तुलसीदास ने लिखा है नहिं कोउ अस जन्मा जग माही। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।। यह ध्रुव सत्य है लेकिन अगर घमंड नहीं हुआ तो वह महात्मा है। आदमी की पहचान पद मिलने के बाद ही होती है।
मिलनसारिता से बनी रहती है प्रतिष्ठा 
व्यक्ति की ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा, सत्यवादिता एवं कार्य क्षमता का आंकलन पद मिलने के बाद ही होता है। हर पद की एक गरिमा होती है। उस पद के अनुरूप अपने को बनाये रखना एक तपस्या है। किसी पद पर आसीन होने के बाद स्पष्टवादिता, कार्यों में पारदर्शिता एवं अमीर से गरीब तक सबसे मिलनसारिता उस पद की प्रतिष्ठा बनाये रखता है।
क्षणभंगुर होते हैं पद 
कृपया याद रखें! क्षणभंगुर संसार की तरह पद भी क्षणभंगुर होते हैं। रिटायर्मेंट के बाद फिर इसी समाज में वापस आना है। पद का घमंड एवं दुरूपयोग करने वाले व्यक्ति रिटायर्मेंट के बाद पुनः अपने समाज में वापस आने पर अधिकांशतः संतुलन बनाने में अपने को असहाय पाते हैं। वह डिप्रेशन के साथ हाइपरटेंशन, मधुमेह एवं अन्य बीमारियों से ग्रसित होकर नारकीय जीवन यापन करते मिलते हैं। अतः मैं इस निष्कर्ष पर पहुँच रहा हूँ किसी भी पद पर पहुँचना आसान हो सकता है लेकिन समाज से सामान्य तौर पर जुड़कर पद का निर्वाह करना एक अग्निपरीक्षा है।(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक इंडियान मेडिकल एसोसिएशन के मऊ के अध्यक्ष हैं।)      



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