खरी-खरी : भारत का इसिलिये डेवलपमेंट नहीं

07 Jan 2022

---वास्तविकता---
-हर आदमी सिर्फ एंटरटेनमेंट चाहता है, उसका विकास से नहीं है वास्ता-सरोकार
-नेता, धर्मगुरु, टीवी चैनल के एंकर भारतीय मनुष्य की मानसिकता से हैं परिचित 

डा.गंगासागर सिंह 
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मऊ :
भारत का आदमी एंटरटेनमेंट चाहता है। उसे डेवलपमेंट से मतलब नहीं है। चाहे वह बाहरी डेवलपमेंट हो या भीतरी, उसकी इंद्रियां तो बस रस चाहती हैं। उत्तेजक, रोमांचक रस, विशेषकर मानसिक रस। जैसे- कुत्ता दिन भर बैठा हड्डी चबाता है, वैसे ही भारत का आदमी घंटों बैठा एंटरटेनमेंट चबाता है। वह न्यूज चबाता है। टेलीविज़न सीरियल चबाता है। वेब सीरीज चबाता है। वर्चुअल गेम्स और पोर्न चबाता है। कुछ नहीं है तो वह गुटखा, सुपारी या पान चबाता है।
यह है इंसान की प्रवृत्ति 
स्वाभाविक है, जो चबाता (सुनता और जान लेता) है वह थूकता (बघारता) भी है। जिस तरह वह जगह-जगह गुटखा और पान थूकता है, उसी तरह वह हर जगह अपने चबाए विचार भी थूकता है। धर्म चबा लिया तो धर्म थूकता है। ज्ञान चबा लिया तो ज्ञान थूकता है। विचारधारा चबा लिया तो विचारधारा थूकता है। ओशो रजनीश के विचार को चबा लिया तो उसे थूकता है। जग्गी चबा लिया तो जग्गी थूकता है।
पचाने की हो आदत तो न दिखे वैमनस्यता  
ख्याल रहे, थूकी वही चीज जाती है जो गटकी नहीं जाती। हम भोजन नहीं थूकते, क्योंकि उसे गटक लिया जाता है, पचा लिया जाता है। पचा लेने से पोषण मिलता है, जो अंग लगता है। हम लोग धर्म नहीं गटकते, ज्ञान नहीं गटकते। अगर गटकते तो वह पचता। पचता तो अंग लगता, यानी चेतना को लगता, किंतु चेतना का कोई पोषण तो कहीं दिखता नहीं। वरना इतनी हिंसा, इतनी मार-काट, इतना वैमनस्य और दिमागों में इतना जहर भी नहीं दिखता।
मजा से मतलब, गिजा से नहीं 
हम लोग धर्म को सिर्फ चबाते हैं, गटकते नहीं। ज्ञान को सिर्फ चबाते हैं, फिर थूक देते हैं, गटकते नहीं। इसीलिए हमारी चेतना को कोई पोषण नहीं मिलता। हमें सिर्फ स्वाद से मतलब है, पोषण से नहीं। हमें मजा से मतलब है, गिजा (पौष्टिक आहार) से नहीं। हमारी इस आदत को सभी उच्च धूर्त भली तरह जानते हैं, फिर वह धर्मगुरु, नेता हों चाहे न्यूज चैनल। इसीलिए चैनल न्यूज नहीं दिखाते, वह एंटरटेनमेंट दिखाते हैं।
गीता-रामायण पढ़ना चाहते, न सुनना 
हम तेजी से उस चैनल की बटन दबाते हैं जहां उत्तेजक बहस चल रही हो या सनसनीखेज न्यूज चिल्लाई जा रही हो। तमाम मीडिया हाउस और एंकर्स हमारी नब्ज पहचानते हैं। वह थाली में वही डिश परोसते हैं, जिसे अधिक खाया जाएगा। भारत में वही आदमी सफल है जो भारतीयों की इस चबाने की आदत को जानता हो। यहां वही नेता सफल है जो उसे चबाने के लिए एंटरटेनमेंट दे। वही धर्मगुरु सफल है जिसके आश्रम में एंटरटेनमेंट मौजूद हो। अधिकांश लोग गीता, रामायण, महाभारत पढ़ना नहीं चाहते। कोई समझाये, बताये, पढ़ाये तो पढ़ना समझना नहीं चाहते, इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है? 
कब प्राप्त हो जाए प्रेरणा, कहना मुश्किल 
तीन अक्षरों का शब्द प्रेरणा अद्भुत एवं आश्चर्यजनक परिवर्तन लाकर मनुष्य को अमर बना देता है। वे पीढ़ी दर पीढ़ी समाज सुधार के लिए प्रेरणादायक सिद्ध होते हैं। किसे किस घटना से प्रेरणा प्राप्त हो जायेगी यह कहना मुश्किल है। हां एक सच्चाई है कि एकाध घटना हमारे अन्तरात्मा को पूर्णतः महातूफान की तरह झकझोर कर रख देती है। वहीं अद्भुत प्रेरणा उत्पन्न होती है और जीवन का रास्ता एवं विचार एक सौ अस्सी के कोण पर मुड़कर  समाज सुधार के लिए समर्पित हो जाता है। ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व प्रेरणा प्राप्त करने वालों में महर्षि वाल्मीकि, महाकवि तुलसीदास, महाधनुर्धर एकलब्य, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, महान अशोक एवं आधुनिक युग में भी ऐसे लोग हैं जिन्होने गम्भीर अपंगता से प्रेरणा प्राप्त कर दोनों पैर कट जाने के बाद भी एवरेस्ट फतह कर लिया। (यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक इंडियन मेडिकल एसोसिएशन मऊ के अध्यक्ष हैं।)



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