मऊ के लाल : पीपीएस सिसौदिया ने छोड़ी अमिट छाप

14 Dec 2021

---बुलंद आवाज विशेष---
-सिर फूटने के बाद भी नहीं आया आवेश, मुट्ठी भर फोर्स लेकर रुदौली में बनाये रखा सौहार्द
-दिवंगत किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैट की गिरफ्तारीे को उनके गांव में ही डाल दिया था डेरा
-माटी से अटूट लगाव, बिखरते कुनबों की परिपाटी के बीच 17वीं पीढ़ी में भी है संयुक्त परिवार
-इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1991 में एमए प्रथम वर्ष में बैच को टाप करने का दर्ज है इतिहास

बृजेश यादव
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मऊ : बुलंद आवाज के साप्ताहिक कालम में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं पीपीएस अनिल सिंह सिसौदिया से। यह वह सख्शियत हैं, जिन्होंने खाकी का मान सदैव बनाये रखा। सूबे के कई जिलों में इनकी अमिट छाप है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2012 में सांप्रदायिक बवाल में सिर फूटने के बाद भी रुदौली सर्किल में दंगा नहीं होने दिया। खुद पर हमला होने के बाद भी आवेश में नहीं आये। कम फोर्स के साथ सूझ-बूझ से सौहार्द बनाये रखने में कामयाब रहे। इलाहाबाद (प्रयागराज) विश्वविद्यालय में 1991 में एमए प्रथम वर्ष में अपने बैच को टाप करने का इतिहास दर्ज कराने वाले सिसौदिया का अपनी जन्मभूमि से अटूट लगाव है। आधुनिक भारत में बिखरते कुनबों की परिपाटी के बीच अपने परिवार की 17वीं पीढ़ी को सहेज कर रखना देश के समक्ष मिसाल है। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले खाकी वर्दीधारी का बराबर गांव आना-जाना, 17 साल के किशोर से लेकर 70 साल तक के बुजुर्ग की सुनना, जितना बन पड़े गांव-गिरांव के लिये मदद करना जीवनशैली का अहम हिस्सा है।
ट्रेनिंग के दौरान हत्याकांड का खुलासा कर हुए चर्चित
अनिल सिंह सिसौदिया की न्यायपरक पुलिसिंग का प्रमाण ट्रेनिंग के दौरान ही मिल गया। पीपीएस में सलेक्शन के बाद उन्हें थानाध्यक्ष की ट्रेनिंग के लिये महाराजगंज जिले के पनियरा थाने की कमान दी गई। उसी समय एक बच्ची का मर्डर हुआ। उस हत्याकांड को लेकर लोगों ने पुलिस को निशाना बनाना शुरु कर दिया था। घटना का वास्तविक खुलासा करना पुलिस के लिये अहम चुनौती थी। कई दिन तक दिन-रात लगे रहकर, दर्जनों से पूछताछ करने के बाद घटना का वर्कआउट कर वह चर्चित हुए। उन्होंने मुख्य आरोपी के बचाव में की जा रही पैरवी को अनसुना कर दोषी को सलाखों के पीछे भेज दिया।
किसान नेता के गांव में गुजारी चुनौती भरी दो रातें
सीओ से लेकर एएसपी तक की नौकरी में सामने आईं हर चुनौतियों का साहस और बुद्धि के बल पर सामना किया। वर्ष 2007 में चुनौती भरी दो रातें दिवंगत किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैट के सिसौली (मुजफ्फरनगर) में उनकी गिरफ्तारी के लिये गुजारी। घटनाक्रम यह था कि टिकैत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के खिलाफ बिजनौर में अनुचित टिप्पणी की थी। टिप्पणी करने के बाद टिकैत समर्थकों के हुजूम के साथ बिजनौर से अपने गांव सिसौली के लिये चले दिये। अधिकारियों ने उनको गिरफ्तार करने का आदेश दिया। सीओ अनिल सिंह सिसौदिया ने उन्हें गिरफ्तार करने के लिये 48 घंटे तक दिन-रात उनके गांव में डेरा डाला। वह ऐसी परिस्थिति थी कि सिसौली में हर घर के लोग टिकैट के लिये जान देने व लेने के लिये तैयार थे । पुलिस गिरफ्तार करती तो पब्लिक कुछ भी करने पर आमादा थी। उनके बीच खुद की सुरक्षा भी सबसे बड़ी चुनौती थी। यह अलग बात रही कि 48 घंटे बाद अफसरों ने सिसौदिया और उनकी टीम को वापस बुला लिया। टिकैत की कुछ दिन बाद गिरफ्तारी भी हो गई।
घायल होने के बाद भी नहीं खोया होश-विवेक
खाकी वर्दी धारण करने के बाद कानून व शांति व्यवस्था का राज स्थापित करने में जोखिम भी उठाना पड़ा। अक्टूबर 2012 में फैजाबाद (अब अयोध्या) में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान सांप्रदायिक बवाल के बाद दंगा हो गया। उस समय सिसौदिया रुदौली सर्किल के क्षेत्राधिकारी थे। फैजाबाद में दंगा होने के बाद जिले भर की अधिकतर फोर्स शहर में बुला ली गई। इधर दंगे की आंच रुदौली में भी पहुंच गई। यहां मुट्ठी भर फोर्स के साथ बवाल रोकने की कोशिश में जुटे सिसौदिया पर भी हमला हुआ। उनका सिर फूट गया। बावजूद इसके उन्होंने होश और विवेक नहीं खोया। खाकी धारण करते समय लिये संकल्प को याद कर कर्तव्य परायणता को प्राथमिकता दी। माहौल बिगड़ने न देने के लिये बुद्धि-विवेक से काम लिया। तत्कालीन एसडीएम रामसूरत पांडेय के साथ वह मौके पर डटे रहे। विसर्जन जुलूस नहीं रुकने दिया। दोनों वर्ग के बौद्धिकों से निरंतर वार्ता कर हिंदुस्तान की एकता व अखंडता के साथ बवाल से नुकसान का खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को उठाने का बोध कराते रहे। उनका अथक प्रयास रंग लाया। रुदौली की जनता प्रशासन के सहयोग में उतर आई। और इलाकों में दंगा भले हुआ, लेकिन यहां सौहार्द स्थापति होने की मिसाल बनी।
धर्मस्थल में रेप की कोशिश करने वाले दरिन्दे को किया गिरफ्तार
सीओ के रुप में फैजाबाद में अपनी कर्तव्यनिष्ठा से हर वर्ग में लोकप्रिय हो चुके सिसौदिया की पब्लिक कनेक्टिविटी 2018 में काम आई। तब उनकी तैनाती वहां एसपी सिटी के रुप में थी। हुआ यूं कि एक संप्रदाय की लड़की को दूसरे संप्रदाय का युवक अपने धर्मस्थल में लेकर चला गया। वहां उसने रेप करने की कोशिश की। यह खबर जंगल में लगी आग की तरह चारों ओर फैली तो एक सम्प्रदाय के लोग आरोपी पर कार्रवाई की मांग को लेकर जगह-जगह चक्काजाम कर दिये। पुलिस ने युवती को तो मुक्त करा लिया, लेकिन आरोपी की गिरफ्तारी के लिये पब्लिक के प्रदर्शन से जबर्दस्त दबाव था। आरोपी मोबाइल भी प्रयोग नहीं करता था। पुलिस के सर्विलांस समेत अन्य इलेक्ट्रानिक सिस्टम भी उस तक पहुंचाने में कारगर साबित नहीं हो सकते थे। ऐसे समय में सिसौदिया का सीओ कार्यकाल का पब्लिक से जुड़ाव काम आया। उन्होंने आरोपी के वर्ग के लोगों की ही मुखबिरी व मदद से उसे गिरफ्तार कराकर सलाखों के पीछे भेजवाया, तब जाकर आंदोलित लोगों का गुस्सा थमा। उनकी इस सफलता के मुरीद यूपी के पुलिस महानिदेशक भी हुए। उन्होंने सिसौदिया को रजत प्रशंसा चिन्ह से नवाजा।
पहले प्रयास में ही आईएस का प्री इक्जाम कर गये क्वालीफाई
अनिल सिंह सिसौदिया की बुद्धिलब्धि पढ़ाई के दिनों में भी सामान्य से ऊपर थी। 1991 में हिन्दी विषय से इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष में उन्होंने अपने बैच को टाप कर इतिहास रचा। इसी वर्ष वह सिविल सर्विसेज में आईएस की प्री परीक्षा को क्वालीफाई कर पूरे यूनिवर्सिटी में चर्चित हो गये। वह 1992 व 93 में भी प्री क्वालिफाई कर मेन परीक्षा में भागीदार बने। 1993 में पीसीएस क्वालिफाई करने के बाद उनका सलेक्शन पीपीएस के लिये हुआ। उन्होंने पुलिस उपाधीक्षक के रुप में अपनी पसंदीदा खाकी धारण कर ली।
खाकी ही ख्वाब, आईपीएस-पीपीएस को दी वरियता
अनिल सिंह सिसौदिया का ख्वाब भी अजीब था। यह ऐसा ख्वाब था कि वह आईएस व पीसीएस वर्ग में यदि टाप भी करते तब भी डीएम-एसडीएम की बजाय एसपी-सीओ ही बनते। वह आवेदन करते समय प्रथम वरियता में आईपीएस व पीपीएस का ही सलेक्शन करते थे। इस संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने बुलंद आवाज से बताया कि उनका खुद का मानना रहा है कि गरीब, पीड़ित, शोषित को त्वरित न्याय पुलिस विभाग ही दे सकता है। वह अपने कार्यकाल में अब तक हजारों पीड़ितों को त्वरित न्याय दिला चुके हैं। उनका सदैव प्रयास रहता है कि थाने स्तर पर ही पीड़ित को न्याय मिले। इसके लिए थानाध्यक्षों की नकेल कसते रहते हैं।
इन जिलों में रहे तैनात, जीता जनता का विश्वास
पीपीएस में सलेक्शन के बाद सिसौदिया का 1997-98 में मुरादाबाद ट्रेनिंग सेंटर में प्रशिक्षण हुआ। जनपद स्तर के ट्रेनिंग के लिये उन्हें 1998-99 में गोरखपुर व महाराजगंज जिला भेजा गया। महाराजगंज के पनियरा थाने पर थानाध्यक्ष की तैनाती की ट्रेनिंग ली। इसके बाद सीओ के रुप में गोंडा, अंबेडकरनगर, बस्ती, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बांदा, सुल्तानपुर, हाथरस, लखनऊ (गोमतीनगर, गाजीपुर, अलीगंज सर्किल), फैजाबाद (रुदौली व सीओ सिटी) तैनात रहे। फैजाबाद में सीओ की तैनाती के दौरान ही उनकी पदोन्नति एएसपी के रुप में हो गई। वह कुछ दिनों तक अयोध्या में इंटेलिजेंस विभाग में भी कार्यरत रहे। कानपुर में बिजली विभाग के एसपी केसको की जिम्मेदारी का निर्वहन किया। एएसपी के रुप में कौशांबी, पीएसी गोंडा के डिप्टी कमांडेंट, सवा दो साल तक गाजीपुर के एसपी आरए, एएसपी भदोही, एसपी सिटी फैजाबाद, एएसपी बागपत व पांच महीने तक एडीजी जोन वाराणसी के स्टाफ आफिसर के पद पर कार्य किये। कई महीनों तक एसटीएफ मुख्यालय लखनऊ के प्रभारी एसएसपी की जिम्मेदारी संभालने का भी सौभाग्य प्राप्त है। वर्तमान में वह जनपद कासगंज में अपर पुलिस अधीक्षक हैं। वर्ष 2022 में पदोन्नति पाकर आईपीएस का रैंक पाने की संभावना है।
भदींड है जन्मभूमि, 1967 में हुआ जन्म
54 वर्षीय अनिल सिंह सिसौदिया का जन्म मुहम्मदाबाद गोहना तहसील क्षेत्र के भदींड़ गांव में 1967 में हुआ। वह अपने पिता स्व. श्यामकीरत सिंह की तीन संतानों (दो पुत्र, एक पुत्री) में दूसरे नंबर पर थे। दुःखद यह रहा कि उनके बड़े भाई का युवावस्था में ही निधन हो गया। पिताजी के भी गुजरने के बाद परिवार की अभिभावक की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर आ गयी। उसका वह बखूबी निर्वहन भी कर रहे हैं। देश के समक्ष सबसे बड़ी मिसाल यह है कि पिता, दादा, परदादा आदि के संयुक्त परिवार की दी गई पारिवारिक व्यवस्था को वह आज भी संजोकर चल रहे हैं। उनके भतीजे संयुक्त परिवार की 17वीं पीढ़ी की एकता की निशानी हैं। उनके घर में एक मीटिंग 20 सदस्यों का भोजन एक ही चूल्हे पर पकता है। लोगों में बड़े-छोटों का लिहाज करने, संस्कार व सामंजस्य इस कदर है कि घर में दो चौखट होने की कोई बात भी कहे तो उन्हें बेमानी लगती है।
बोरा-पटरी से की पढ़ाई, तीन कोस साइकिल भी चलाई
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले सिसौदिया की प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय भदींड़ में बोरा-पटरी से हुई। कक्षा छह से आठवीं तक वह गांव के ही जूनियर हाईस्कूल से पढ़े। कक्षा नौ से 12वीं तक की पढ़ाई के लिये वह प्रतिदिन तीन कोस (9 किलोमीटर) साइकिल चलाकर आजमगढ़ जिले के स्मिथ इंटर कालेज अजमतगढ़ जाते। इंटर तक साइंस के विद्यार्थी रहे सिसौदिया स्नातक करने इलाहाबाद विश्वविद्यालय गये तो वहां उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिये आर्ट विषयों का चयन किया। हिंदी, प्राचीन इतिहास व दर्शन शास्त्र विषय से स्नातक में दाखिला लिया। एक साल तक गोविन्दपुर कालोनी में किराये के कमरे में रहकर पढ़ाई के साथ-साथ भोजन पकाना सीखने से जूझना पड़ा। इसके बाद वह केपीयूसी छात्रावास में आ गये।
खेती-किसान व खलिहान से जुड़ाव
सिसौदिया का बचपन खेती-किसानी में बीता। भदींड़ गांव के लोग बताते हैं कि अनिल विद्यार्थी जीवन में भी खेती-किसानी में खूब पसीना बहाते थे। वह खुद ट्रैक्टर चलाकर खेत जोतते। गन्ना का उत्पादन होने के बाद ट्राली पर लादकर चीनी मिल ले जाते। मिल पर तौल में विलंब होने पर दो-दो रात तक वहीं रुकते। औरों के साथ मिलकर बाटी-चोखा बनाते। ठंड के मौसम में भी ट्राली के नीचे पुआल बिछाकर चद्दर-कंबल तानकर सो जाते। आलू की फसल रखने के लिये गोरखपुर जिले के बड़हलगंज में कोल्ड स्टोरेज पर भी अपना नंबर आने के लिये कई दिन-रात वहीं गुजारते। इतना ही नहीं आज भी अगर आते-जाते उन्हें रास्ते में खेत में धान, गेहूं या अन्य अच्छी फसल दिख गई तो गाड़ी में ब्रेक लगवा देते हैं। खेत घूमकर फसल देखते हैं। बोआई, निराई-गुड़ाई, खाद-बीज, सिंचाई के बारे में जानकारी प्राप्त कर अपने यहां उसका प्रयोग कराते हैं।
मार्गदर्शन से दिला दिया कइयों को मुकाम
भदींड़ गांव के लोगों को गर्व है कि उनकी माटी में अनिल सिंह सिसौदिया जैसा लाल पैदा हुआ। हिन्दू-मुस्लिम हर वर्ग के लोगों का उन पर उतना ही भरोसा है, जितना उनके परिवार के सदस्यों का। वह किसी से कोई भेद नहीं रखते। आज उनके मार्गदर्शन से गांव के कइयों को बेहतर मुकाम मिल चुका है। उनके खुद की तैयारी के लिये बनाये गये नोट्स, अध्ययन के लिये जुटाई गई पुस्तक, गाइडें और उनके द्वारा दी गई कोचिंग से भदींड़ क्षेत्र के कई युवा आईएस, आईआरएस व पीपीएस क्वालीफाई कर मुकाम पर हैं। सऊदी में जाकर फंसे गांव के मौर्या परिवार के लड़के की जानकारी होने पर उन्होंने विदेश मंत्रालय के सहयोग से उसकी वापसी कराने में महती भूमिका अदा की।
सिसौदिया क्रिकेट क्लब के कैप्टन ने संवारा गांव
किशोरावस्था में सिसौदिया क्रिकेट क्लब का गठन कर कप्तान अनिल सिंह ने अपनी टीम का भी आसपास के क्षेत्रों में लोहा मनवाया। इस टीम ने क्षेत्रीय टूर्नामेंट के कई खिताब झटके। सिसौदिया इस समय जिस मुकाम पर हैं, वह भी चाहते तो अन्य अफसरों की तरह गांव से मुंह मोड़ राजधानी या महानगरों में अपना ठिकाना बना लेते, लेकिन ऐसा नहीं हैै। वह पीछे मुड़कर अपनी जन्मभूमि की ओर देखते व संवारते भी हैं। उनके प्रयास से वर्ष 2016 में पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह के माध्यम से गांव के कोठिया धाम के लिये 11 लाख रुपये स्वीकृत हुआ। इस धनराशि से धाम की चहारदीवारी व परिक्रमा मार्ग का कायाकल्प हुआ। इसके बाद उनकी पहल पर जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील सिंह चौहान के कार्यकाल में जिला पंचायत से 20 लाख की लागत से 400 मीटर इंटरलाकिंग का कार्य हुआ। वर्तमान सरकार के ग्राम्य विकास विभाग के मंत्री मोती सिंह के माध्यम से राजनाथ गुप्ता के घर से इंटर कालेज भदींड़ तक इंटरलाकिंग कार्य को उनका सार्थक प्रयास, माटी से अटूट नाता को प्रमाणित करता है।
जननी जन्मभूमिश्च स्वार्गादपि गरीयसी को किया आत्मसात
गांव व गांववासियों से प्रगाढ़ लगाव के बारे में पूछे जाने पर सिसौदिया बुलंद आवाज से कहते हैं कि संस्कृत का एक श्लोक है। यह श्लोक वाल्मीकि रामायण के कुछ पांडुलिपियों में भी दो रुपों में मिलता है। पहला रुप है मित्राणी, धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव। जननी जन्मभूमिश्च स्वार्गादपि गरीयसी।। इसका अर्थ है मित्र, धन-धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है, किन्तु माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है। श्लोक का दूसरा रुप है अपि स्वर्णमयी लंका न में लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।। इस श्लोक में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम द्वारा लंका पर विजय प्राप्त करने के तुरंत बाद लक्ष्मण से कही गई बात का जिक्र है। प्रभु राम कहते हैं कि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है, क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं। सिसौदिया का कहना है कि उन्होंने इन्हीं दोनों श्लोकों को आत्मसात कर लिया है। वह बताते हैं कि नौकरी से जब भी छुट्टी मिलती है गांव जरुर जाते हैं। वहां 17 से लेकर 70 साल तक के लोग उनसे मिलने आते हैं। गांव के लोगों की समस्या छोटी हो या बड़ी, अगर उनसे समाधान होने लायक है तो वह तत्काल प्रयासरत हो जाते हैं। उनकी पूरी कोशिश रहती है कि गांव के शादी-विवाह व मांगलिक आयोजनों के हर बुलावे में शामिल हों।



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