मऊ के लाल : संघर्ष से सफलता की प्रतिमूर्ति हैं विजयशंकर यादव

14 Nov 2021

---बुलंद आवाज विशेष---
-गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के होते हुए भी शिक्षा के क्षेत्र में उठाया साहसिक कदम
-मुश्किल घड़ी को मात देते हुए शिक्षा के पिछड़ेपन को दूर करने का हासिल किया श्रेय

बृजेश यादव
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मऊ : बुलंद आवाज के साप्ताहिक कालम मऊ के लाल के तहत आज हम आपको परिचित करा रहे हैं विजयशंकर यादव से। विजयशंकर यादव वह सख्शियत हैं, जिन्हें शिक्षा क्षेत्र में मऊ के पिछड़ेपन को दूर करने का श्रेय दिया जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। शिक्षा की अलख जगाने के लिये उन्होंने समुद्र में अदहन देने जैसा साहसिक कदम उठाया। निजामुद्दीनपुरा मुहल्ले में मड़ई के स्कूल से कालेजों का एंपायर खड़ा करने वाले विजयशंकर यादव संघर्ष से सफलता अर्जित करने की जीती-जागती प्रतिमूर्ति हैं। गरीबी रेखा से नीचे पारिवारिक पृष्ठभूमि के होने के बावजूद उन्होंने मऊ में स्कूल संचालन का बड़ा निर्णय ले लिया। इस दौरान तमाम मुश्किल की घड़ियां आईं, लेकिन उनके मजबूत इरादे, अथक परिश्रम के आगे परेशानियों को भी नतमस्तक होना पड़ा।
शहर को दिया सबसे पहला सीबीएसई स्कूल
शहर को सबसे पहला सीबीएसई बोर्ड का स्कूल देने का श्रेय भी विजयशंकर यादव को ही है। उन्होंने जब सीबीएसई बोर्ड की पढ़ाई शुरु कराई, उस समय जिले के मझवारा क्षेत्र में ललितपुर लुदुही में सीबीएसई बोर्ड का एकमात्र रामरती हायर सेकेंडरी स्कूल था। वह कालेज शहर से इतनी दूर था कि यहां के बच्चों का वहां जाकर शिक्षा अर्जित करना लगभग असंभव था। शहर के निजामुद्दीनपुरा मोहल्ले में चार कमरों के स्कूल में उन्होंने इंग्लिश मीडियम स्कूल खोला।
36 बच्चों से शुरु किया इंग्लिश मीडियम
विजयशंकर यादव ने 30 साल पहले 36 बच्चों से इंग्लिश मीडियम स्कूल की शुरुआत की। उन्होंने शुरु में नर्सरी, एलकेजी व यूकेजी कक्षा की पढ़ाई शुरु कराई। पहले बैच की पहली छात्रा सर्जन डा.एससी तिवारी की बिटिया मल्लिका तिवारी का नाम उन्हें आज भी याद है। उस समय जिला अस्पताल के चिकित्सक डा.केडी द्विवेदी की धर्मपत्नी अंजुला द्विवेदी पहली प्रधानाचार्य के रुप में सेवा दीं। उन्होंने बच्चों को आधुनिक पैटर्न की बेहतर शिक्षा दी।
सैकड़ों डाक्टर, हजारों इंजिनियर्स पर है अमिट छाप
लिटिल फ्लावर चिल्ड्रेन स्कूल से पढ़कर निकले हजारों छात्र-छात्राएं आज बेहतर मुकाम पर हैं। सैकड़ों डाक्टर, हजारों इंजीनियर्स पर इस स्कूल की अमिट छाप है। इस स्कूल के दो छात्र आइएएस व कई आइपीएस भी हैं। एक छात्र इसरो में वैज्ञानिक है तो एक और वैज्ञानिक के रुप में अन्य संस्थान में।
शिक्षा रत्न का मिल चुका है सम्मान
खुद का जीवन बच्चों को बेहतर शिक्षा देकर शीर्ष मुकाम दिलाने को समर्पित कर चुके विजयशंकर यादव शिक्षा रत्न सम्मान भी अर्जित कर चुके हैं। दस साल पहले उन्हें यह सम्मान दिल्ली में तत्कालीन राज्यपाल ने प्रदान किया। इस सम्मान के लिये यूपी से दो लोगों का चयन हुआ था। इनमें एक आइआइटी कानपुर से, दूसरे मऊ से विजयशंकर यादव थे। इनसे अलावा उन्हें बेस्ट एजुकेशन अवार्ड, बेस्ट सिटीजन अवार्ड, राजीव गांधी पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।
हंसने वाले ही करने लगे सराहना
विजयशंकर यादव ने बुलंद आवाज से भूली-बिसरी यादें साझा करते हुए कहा कि दिल्ली में शिक्षा रत्न प्राप्त करने जुटे पूरे भारत के लोगों में एकमात्र वह ही धोती-कुर्ताधारी थे। सूट-बूट में मौजूद लोग इंग्लिश मीडियम स्कूल के संचालक को धोती-कुर्ता में देख उपहास उड़ाते हुए हंस रहे थे। अपनी बात रखने का जब विजयशंकर का नंबर आया तो उन्होंने हिंदी भाषा में शिक्षा को लेकर अपने अनुभव और उतरोत्तर विकास पर व्याख्यान दिया तब हंसने वाले भी सराहना करने लगे। उनके हंसने से उन्हें कोई अचरज भी नहीं हुआ, क्योंकि जब मड़ई में उन्होंने स्कूल की शुरुआत की थी, उस समय भी कुछ लोग यह कहकर उपहास उड़ाते थे कि स्कूल चलेगा ही नहीं। बाद में जब मुकाम मिला तो वही लोग हिम्मत की दाद देते हैं।
दर्जन भर कालेजों का बन गया ग्रुप
मुश्किल घड़ी को बुलंद हौसले से मात देने की ही देन है कि विजयशंकर यादव ने आज दर्जन भर कालेजों का ग्रुप खड़ा कर दिया है। इनमें मऊ के अलावा बलिया व आजमगढ़ में सीबीएसई बोर्ड के छह कालेजों में प्रतिभाओं को निखारा जा रहा है। इसके अलावा मऊ के सिकटिया व बलिया के किड़िहिरापुर में दो डिग्री कालेज हैं। दोनों डिग्री कालेजों में बीएड व बीटीसी का भी कोर्स संचालित है।
अल्प आयु में ही कमाने की थी विवशता
विजयशंकर यादव का जन्म बलिया जिले के बेल्थरारोड तहसील क्षेत्र के औराई गांव में एक जुलाई 1956 को हुआ। पेशे से किसान स्वर्गीय जगरनाथ यादव के तीन बेटे व चार बेटियों में विजयशंकर सबसे बड़े हैं। परिवार की माली हालत भी ठीक नहीं थी। खेती-बाड़ी भी इतनी नहीं थी कि उसमें पैदा होने वाले अनाज से पूरे परिवार का साल भर पेट भरता। बड़े होने के नाते विजयशंकर यादव के कंधों पर अल्पआयु में ही कहीं नौकरी कर दो पैसे घर भेजने की भी जिम्मेदारी थी। कुछ पैसों की बचत कर चार बहनों की शादी करने का भी दायित्व भी निभाना था।
संघर्ष करते हुए किया डबल एमए
विजयशंकर की कक्षा एक से पांच तक शिक्षा की शिक्षा उनके मूल गांव के करीब शाहपुर में स्थित प्राथमिक विद्यालय में हुई। कक्षा छह से 12वीं तक की शिक्षा उन्होंने नेशनल इंटर कालेज अदरी से अर्जित की। डीसीएसके महाविद्यालय से स्नातक किया। इसके बाद घर चलाने की जिम्मेदारी का भार होने के चलते वह नौकरी करने मऊ आये तो यहीं के हो गये। उन्होंने बच्चों को पढ़ाते हुए आजमगढ़ के चंडेश्वर पीजी कालेज से इतिहास व समाज शास्त्र से डबल प्राइवेट एमएम किया।
मुफलिसी में काटने पड़े दिन
नौकरी की तलाश में 1976 में 20 वर्ष की अवस्था में विजयशंकर यादव मऊ आ गये। उस समय देश में आपातकाल लागू था। संघ से जुड़े लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा रहा था। भदेसरा के संघ से जुड़े आचार्य देवराज सिंह से उनकी मुलाकात हुई। उनके साथ वह भी कुछ महीने संघ की शाखाओं में गये। गिरफ्तारी से बचते हुए गुप्त रुप से सोनीधापा में शिशु मंदिर की तर्ज पर कमला शांति स्कूल खोला गया। देवराज सिंह प्रधानाचार्य बने। विजयशंकर यादव 60 रुपये महीने की पगार पर शिक्षक हो गये। यह रुपये घर समेत उनके खुद का खर्च चलाने को पर्याप्त नहीं थे। मुफलिसी में दिन काटने पड़े।
घर-घर बच्चों को पढ़ाया ट्यूशन
आठ घंटे स्कूल में सेवा देने के बाद वह प्रति बच्चे 40 रुपये प्रतिमाह पर कई घरों में ट्यूशन पढ़ाने लगे। उनका आठ घंटे का समय कोचिंग पढ़ाने में भी जाने लगा। 16 घंटे के अथक परिश्रम के बाद रात में भोजन बनाते और खाते। करीब दस साल तक दिन में भोजन मयस्सर ही नहीं हुआ। अपने गांव-परिवार में 15 दिन पर किसी रविवार को चले गये तो चले गये, अन्यथा सारा समय मऊ में ही बीतता।
बढ़ाकर घटाई तनख्वाह तो बढ़ गई नाराजगी
विजयशंकर यादव बताते हैं कि जब कक्षा एक से आठ तक कमला शांति स्कूल खुला, उस समय शहर में स्कूल काफी कम थे। रेलवे शिक्षा मंदिर, बाल निकेतन स्कूल व शिशु मंदिर ही थे। ऐसे में यहां शुरुआत में ही बच्चों की संख्या ठीक-ठाक मिल गई। उनकी लगन व परिश्रम को देखते हुए तनख्वाह 60 से बढ़ाकर 100 रुपये कर दी गई। कुछ माह बाद तनख्वाह घटाकर फिर 60 रुपये कर दी गई तो वह नाराज हो गये। इसी बीच वह और देवराज सिंह बलिया में लगी संघ की तीन दिवसीय शाखा में शामिल होने चले गये। वापस आये तो मैनेजर ने दोनों लोगों को स्कूल से निकाल दिया।
गोदावरी प्रभावती शिशु विद्यालय किया ज्वाइन
कमला शांति स्कूल से निकाले जाने के बाद देवराज सिंह शिशु मंदिर में चले गये। सोनीधापा ग्राउंड में ही स्कूल की पुरानी बिल्डिंग में खुले गोदावरी प्रभावती शिशु विद्यालय को उन्होंने ज्वाइन किया। इस विद्यालय के मैनेजर गिरधर बाबू ने उन्हें तीन सौ रुपये महीने पगार पर रखा। कुछ वर्ष बाद गिरधर बाबू का निधन हो गया।
यहां भी हुई खट-पट तो लिया साहसिक निर्णय
दिवंगत मैनेजर गिरधर बाबू की खुद की कोई संतान नहीं थी। मैनेजमेंट भतीजों के हाथ में आ गया तो उन्हें विजयशंकर यादव को तीन सौ रुपये प्रतिमाह देना भारी लगने लगा। नये मैनेजर का मानना था कि जब सौ रुपये में टीचर मिल रहे हैं तो उन्हें तीन सौ क्यों दिया जाय? इस बात पर खट-पट हो गई। विवाद के बाद उन्होंने वहां छोड़ने के साथ ही खुद का स्कूल डालने का समुद्र में अदहन देने जैसा निर्णय ले लिया। दोनों स्कूलों में दस साल की सेवा देने के बाद वह मुक्त हो गये।
उदय नरायण सिंह ने एक मंडा जमीन दिया दान
1985 में गोदावरी प्रभावती शिशु विद्यालय छोड़ने के बाद विजय शंकर यादव ने खुद के स्कूल खोलने पर विचार करना शुरु कर दिया। वह निजामुद्दीनपुरा मोहल्ले में उदय नरायन सिंह के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे। उन्होंने उनसे स्कूल खोलने की मंशा जताते हुए जमीन देने के लिये अनुनय किया तो वह सहर्ष तैयार हो गये। अपनी एक मंडा जमीन उन्हें दान में दे दी। 1985 में ही इस जमीन पर उन्होंने जनसहयोग से मड़ई डालकर आजाद हिंद स्कूल का शुभारंभ किया।
बच्चे बढ़े तो चार मंडा जमीन का हुआ सौदा
विजयशंकर यादव की लगन, परिश्रम व साहस व उनके साथ त्याग व समर्पण के भाव से जुटे कुछ शिक्षकों की कोशिश दो साल में रंग दिखानी शुरु कर दी। बच्चों की कुछ संख्या बढ़ी तो एक मंडा जमीन अपर्याप्त हो गई। मड़इया स्कूल के नाम से आजाद हिंद की पहचान बढ़ने लगी। बगल में मौजूद उदयनरायन सिंह की चार मंडा जमीन का सौदा 40 हजार में तय हुआ। इधर-उधर लोगों से कर्ज मांगकर विजयशंकर ने उन्हें 30 हजार रुपये दिया। इसके बाद उन्होंने उस जमीन में भी मड़ई डालने की इजाजत दी। शेष दस हजार रुपये का भुगतान वह पांच सौ रुपये प्रतिमाह की किश्तों में करने लगे।
कर्ज लेकर करानी पड़ी रजिस्ट्री
1989 में जब मऊ को जिले का दर्जा मिला, तब तक आजाद हिंद कालेज की शिक्षा की गुणवत्ता की खुशबू अपनी महक बिखेरने लगी थी। जिला बनने के बाद जमीन के मालिक उदयरायन सिंह ने विजयशंकर यादव को बुलवाकर कहा कि जमीन की रजिस्ट्री करा लिजिये। जिला बनने से जमीन काफी महंगी हो गई है। रजिस्ट्री न होने पर जब वह नहीं रहेंगे तो पता नहीं बच्चें देंगे या नहीं। उस समय विजयशंकर के पास रजिस्ट्री कराने भर को पैसे नहीं थे। उन्होंने पहचान के कुछ लोगों से कर्ज लेकर जमीन रजिस्ट्री कराई।
स्कूल की खातिर बन गये एलआइसी एजेंट
स्कूल खड़ा करने का संकल्प ले चुके विजयशंकर इसके लिये 24 घंटे भी काम करने को तैयार थे। अध्यापकों की पगार व अन्य खर्च में आने वाली कमी को दूर करने के लिये वह एलआइसी के एजेंट बन गये। यह उनके संघर्ष का सबसे क्रीम निर्णय साबित हुआ। बच्चों के अभिभावक उनसे सहर्ष बीमा करा लेते और बदले में मिलने वाले कमीशन से वह स्कूल का खर्च चला लेते। एलआइसी एजेंट के रुप में उनको इतनी सफलता मिली कि कमीशन से मिले पैसों से धीरे-धीरे स्कूल के कमरे बनवाने लगे।
मंडई उठाते समय मिला जीवनदान
आजाद हिंद स्कूल की मड़ई उठवाते समय विजयशंकर यादव उसमें दब गये थे। वह इतनी बुरी तरह फंस गये थे कि कुछ देर और रहते तो जान भी जा सकती थी। स्थानीय लोगों ने उन्हें मंडई के नीचे निकाल कर इलाज कराया तो उन्हें जीवनदान मिला। उन्होंने एक और दृढ़ संकल्प लिया था कि स्कूल की बिल्डिंग खड़ी करेंगे तभी अपने लिये मकान बनायेंगे। वह 20 साल से अधिक समय तक निजामुद्दीनपुरा में कटरैन के ही मकान में रहे। स्कूल के डवलपमेंट के बाद मकान का निर्माण कराया।
डा. एससी तिवारी ने दी सीबीएसई स्कूल की प्रेरणा
विजयशंकर यादव बताते हैं कि वह दिन उन्हें अच्छी तरह याद है, जब हिंदी माध्यम का आजाद हिंद इंटर कालेज खड़ा होने की ओर अग्रसर था। इसी दौरान वरिष्ठ सर्जन डा. एससी तिवारी ने उन्हें आधुनिक शिक्षा की ओर ध्यान दिलाते हुए सीबीएसई बोर्ड का स्कूल चलाने की प्रेरणा दी। डा.तिवारी ने यह भी बताया था कि इंग्लिश मीडियम के नाम पर शहर के करीब केवल एकमात्र फातिमा कांन्वेंट स्कूल है। उसका भी आईसीएसई बोर्ड है। यहां सीबीएसई बोर्ड का एक भी स्कूल नहीं है।
हो गई नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी से शुरुआत
डा. तिवारी की प्रेरणा के बाद विजयशंकर यादव ने धन का अभाव बताते हुए उनसे कुछ मदद करने को कहा। डा. तिवारी ने उस समय 50 हजार रुपयों की मदद की। उस रकम से चार छोटे कमरे बने। तीन कमरों में नर्सरी, एलकेजी व यूकेजी की कक्षा शुरु हुई। एक कमरा प्रिंसिपल आफिस बन गया। हाईस्कूल से आगे के संचालन में यहां जमीन कम पड़ने लगी तो सिकटिया ओवरब्रिज के नीचे जमीन खरीदी। आज वहां बेहतर शिक्षा की अलख जग रही है। इसी संस्था ने अन्य संस्थाओं का भी विस्तार कर दिया। 65 वर्ष की आयु में भी विजयशंकर यादव को बच्चों व स्कूल से बेहद लगाव है। पैर खराब होने के बाद भी वह 10 से 12 घंटे स्कूल के अनुशासन, पढाई की गुणवत्ता पर पैनी नजर रखने का वर्क करते हैं। बताते हैं कि जब वह स्वस्थ्य थे तो 16 घंटे मेहनत करने पर भी थकावट महसूस नहीं होती थी।



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