मऊ के लाल : कोहिनूर हैं वर्ल्ड चैंपियन मुमताज

10 Oct 2021

---बुलंद आवाज विशेष---
-धन से नहीं पर कर्म से दुनिया की अमीर शख्सियतों में हैं एक
-36 साल पहले गरीब परिवार के कलाकार ने बनाया कीर्तिमान
-विश्व के 44 हजार चित्रकारों की प्रतिस्पर्धा में पाया शीर्ष स्थान

बृजेश यादव
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मऊ : बुलंद आवाज के साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित करा रहे हैं मुमताज खान आर्टिस्ट से। पेंटिग कला में वर्ल्ड चैंपियन मुमताज कोहिनूर हैं। वह धन से तो नहीं पर कर्म व हुनरमंद पैदा करने में दुनिया की अमीर शख्सियतों में एक हैं। शहर के मलिक टोला मुहल्ले के गरीब परिवार में जन्मे मुमताज 36 साल पहले जिस पेंटिंग पर विश्व विजेता बने, उसे बनाने को उनके पास न तो कागज थे और न ही सामग्री खरीदने को धन। अभावों में फिल्म के पोस्टर के पीछे उन्होंने पेंटिंग बना कीर्तिमान स्थापित कर दिया। उस प्रतिस्पर्धा में दुनिया के विभिन्न देशों के 44 हजार कलाकारों ने हिस्सा लिया था। उनमें मुमताज को शीर्ष स्थान मिला। खबर के अंत में उनके द्वारा निर्मित कुछ जीवंत पेंटिंग्स भी हैं।
शांति के पैगाम पर करनी थी चित्रकारी
जापान की राजधानी टोकियो में अगस्त 1985 में वर्ल्ड पीस पेंटिंग कम्पटीशन आयोजित हुआ था। उसकी थीम थी शांति का पैगाम। यह थीम इसलिये रखी गई थी कि जापान के हिरोसीमा नाका साकी में वर्ष १९४५ में भीषण वम विस्फोट हुआ था। उसमें काफी विनाश और तबाही हुई थी। उसके सदमे से लोगों को उबारने के लिये पेटिंग्स प्रतियोगिता हुई।
रेडियो से मिली जानकारी
मुमताज ने बुलंद आवाज से बताया कि रेडियो पर होने वाले कार्यक्रमों को सुनने के वह बचपन से ही शौकिन रहे हैं। फरमाइशी गीतों व अन्य कार्यक्रमों में अपना नाम सुनने का उन्हें इतना जुनून था कि हमेशा टेलीग्राम के जरिये कुछ न कुछ फरमाइश लिखकर भेजते रहते थे। विदेशी चैनलों को भी सुनते थे। 1985 में जापान के रेडियो चैनल एनएचके पर वर्ल्ड पीस पेंटिंग कम्पटीशन की जानकारी मिली। शांति का पैगाम देती पेटिंग्स बनाकर वहां भेजनी थी।
हिस्सा लेने को मन में लिया ठान
वैश्विक चैंपियनशिप की सूचना सुनने के बाद से उनका दिन का चैन व रात की नींद गायब हो गई। दिन-रात उनके दिमाग में चलने लगा कि कैसी पेंटिंग बनाकर भेजी जाय। सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि उनके पास न तो पैसे थे और न ही चित्रकारी बनाने वाले पेपर। उस समय मुमताज शहर के कृष्णा चित्र मंदिर, लारी पैलेस व पैराडाइज में फिल्मों के प्रचार-प्रसार के लिये गुमटियों व दीवारों पर चिपकाये जाने वाले पोस्टर बनाते थे। चैंपियनशिप में हिस्सा लेने को मन में ठान चुके मुमताज को जब कुछ नहीं मिला तो उन्होंने फिल्मों के दो पोस्टरों को आपस में चिपका दिया। पीछे के सादे हिस्से में पेटिंग्स बनाकर दिल्ली में जापानी दूतावास के पते पर पोस्ट कर दिया।
मां दुर्गा के स्वरुप की बनाई पेंटिंग
मुमताज ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में जो पेंटिंग बनाकर भेजी, उसमें उन्होंने मां दुर्गा के स्वरुप वाली महिला का चित्र बनाया था। उस महिला के छह हाथ थे। छह हाथ अलग-अलग मुद्रा में अमन व शांति का पैगाम दे रहे थे। एक हाथ की मुट्ठी बंधी थी। एक हाथ से गोद में बच्चे को पकड़े हुई थी। एक हाथ से हमला करने वाले को तमाचा मार रही थी। पेंटिंग बनाकर भेज चुके मुमताज को भी यह अंदाजा नहीं था कि उनकी यह चित्रकारी पूरी दुनिया में धमाल मचाने वाली है।
विकट घड़ी में आया टापर का पैगाम
मुमताज के जीवन में सफलता व दुश्वारियों का नाता साथ-साथ चला। विश्व चैंपियन बनने का पैगाम भी विकट घड़ी में ही उन्हें मिला। वह बताते हैं कि उनकी छह दिन की बच्ची की मौत हो गई थी। उसे मिट्टी देने के बाद वह गम में डूबे थे कि बीवी ने उन्हें कहीं से टेलीग्राम आने की जानकारी दी। उसे देखा तो उसमें उन्हें वर्ल्ड चैंपियनशिप के खिताब से नवाजे जाने और जापान की टीम के आने की जानकारी थी। हालांकि इससे पूर्व रेडियो पर उनके चैम्पियन बनने का प्रसारण भी हो चुका था।
देश प्रेम में जापान के आफर को ठुकराया
विश्व चैंपियन की टेलीग्राम से सूचना मिलने के कुछ दिन बाद ही जापान से कंपटीशन मंडल के डायरेक्टर आसाई, कैमरामैन व द्विभाषिया दीपक के साथ पहुंच आये। यह टीम वाराणसी के फाइव स्टार होटल में ठहरी। उनके घर आकर उनसे कुछ पेंटिंग्स बनवाकर हुनर सीखने की कोशिश की। उनके साथ शूटिंग भी की। डायरेक्टर ने उन्हें अपने परिवार के साथ जापान चलने का आफर दिया। कहा कि वहां की सरकार उनके जैसे मशहूर आर्टिस्ट को अच्छा पैकेज देगी, बशर्ते उनकी शर्त थी कि उन्हें जापान का ही होकर रह जाना है। इंडिया वापस नहीं आना है। देशप्रेम से ओत-प्रोत मुमताज ने उनका आफर ठुकराने में क्षण भर की भी देरी नहीं की। उनका तर्क था कि भारत का प्रतिनिधित्व करके ही उन्हें विश्व में ख्याति मिली। यहां की मिट्टी में पले-बढ़े। कलाकारी भी इसी सरजमीं पर सीखने को मिली। ऐसे में सदा के लिए अपना वतन छोड़ने की शर्त उन्हें मंजूर नहीं।
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बुलवाया
मऊ के इस कलाकार के विश्व विख्यात होने का प्रसारण टेलीविजन पर हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का उन तक पैगाम आया। उसमें प्रधानमंत्री ने मुमताज से मिलने की ख्वाहिश जताई थी। उन्हें दिल्ली में दूतावास बुलाया गया। वहां जाने के बाद दूतावास के जरिये पीएमओ को जानकारी दी गई। समय निश्चित हुआ और राजीव गांधी उनसे मिले। देश का नाम रौशन करने की बधाई दी। बात चल ही रही थी कि इसी दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री लोगवाला के निधन की दुखद खबर आ पहुंची। प्रधानमंत्री और उनकी बातचीत पर विराम लग गया और दुखी मन से राजीव गांधी पंजाब के लिये रवाना हो गये। चूंकि रमजान माह चल रहा था, इसलिये दो-तीन दिन तक वहां पीएम से दोबारा मिलने के इंतजार में रुके रहे। मुलाकात नहीं हुई तो वह घर आ गये। वह सपा सरकार में मऊ आये मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव को मंच पर डा. राम मनोहर लोहिया की खुद की बनाई पेंटिंग भेंट कर चुके हैं।
कलाकार पैदा करने का कर लिया प्रण
इसके बाद मुमताज ने अपने अंदर की कला का विस्तारीकरण करने के लिये कलाकार पैदा करने का प्रण कर लिया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलकर आने के बाद उन्होंने वर्ष 1985 में राष्ट्रीय ललित कला प्रशिक्षण विकास परिषद नाम की संस्था शुरु की। यहां युवतियों, महिलाओं को पेंटिंग में हुनरमंद बनाने लगे। तीन महीने के कोर्स में उन्हें दक्ष बनाने के एवज में संस्था महज 100 रुपये बतौर शुल्क लेती है। 35 रुपये से भी कम महीने आने वाले मामूली प्रशिक्षण शुल्क के बाबत मुमताज का कहना है कि उन्होंने अभावों में चित्रकारी की। ऐसे में वह नहीं चाहते कि कोई कलाकार धन के अभाव में कला की बारीकियां सीखने से वंचित रह जाए।
35 हजार युवतियों को बनाया हुनरमंद
मुमताज खान की संस्था का भी आज विस्तार हो चुका है। मऊ जिले में आज राष्ट्रीय ललित कला प्रशिक्षण विकास परिषद की 108 शाखायें कार्यरत हैं। इन शाखाओं से करीब 35 हजार महिला व युवतियों को हुनरमंद बनाया जा चुका है। यह हुनर पेंटिंग्स तक ही सीमित नहीं है। उन्हें सिलाई-कढ़ाई, कंप्यूटर, ब्यूटीशियन कोर्स, मेंहदी, संगीत, स्पीकिंग आदि में भी दक्ष किया जाता है।
बीएचयू के विद्यार्थी आते हैं पेंटिग्स बनवाने
मुमताज की ख्याति का असर यह है कि बीएचयू के कला विद्यार्थी पेंटिग्स बनवाने मऊ तक आते हैं। बनारस के घाटों की ऐसी चित्रकारी करते हैं कि लगता है जैसे घाट का परिदृश्य हकीकत में उतर आया हो। इसके अलावा तमाम लोग उनकी पेंटिग्स खरीदने आते हैं। वह मऊ जिले में दर्जन भर से अधिक डीएम-एसपी की पत्नियों को उनके आवास पर जाकर पेंटिंग्स बनाने का गुर सीखा चुके हैं।
मुमताज को गर्व, शिष्य हैं शिखर पर
70 वर्ष की अवस्था में भी मुमताज के हौसले जवां हैं। उनको इस बात पर गर्व है कि उनके सिखाये शिष्य आज शिखर पर हैं। वह बताते हैं कि रेनू अग्रवाल अमेरिका के पेंटिंग्स स्कूलों में बच्चों को हुनरमंद बना रही है। नजमा बानो का निकाह फिल्मी डायरेक्टर मुसीर रेयाज ने अपने बेटे से किया। नजमा आज फिल्मो में आर्ट डाइरेक्शन देती है। प्रतिभा चौबे संगीत के क्षेत्र में भोजपुरी फिल्मों में गाना गाकर अपनी पहचान बनाई है। फिल्मी गीत देने वाले विधान पांडेय भी उन्हीं की नर्सरी के छात्र हैं।
मऊ महोत्सव में निभाई प्रमुख भूमिका
कला-संगीत प्रेमी मुमताज की भूमिका जिलाधिकारी पी गुरु प्रसाद के कार्यकाल में हुए मऊ महोत्सव में भी प्रमुख रही। उनकी पहल पर हुए मऊ महोत्सव ने वर्ष 2005 में मऊ में हुए सांप्रदायिक दंगों से लोगों के दिलों में बनी गहरी खाई को पाटकर भय के माहौल को दूर किया। वह बताते हैं कि दंगे के आग में जलने के बाद बाल निकेतन रेलवे क्रासिंग के इस पार का व्यक्ति न तो उस पार जाना चाहता था और न ही उस पार का व्यक्ति इस पार आना चाहता था। लोगों में बने दहशत के माहौल को मऊ महोत्सव में उमड़ी भीड़ व कलाकारों के मंचन ने दूर कर शांति का पैगाम दिया।
12वीं तक की पढ़ाई
विश्व विख्यात कलाकार मुमताज का जन्म एक जनवरी 1951 को शहर के मलिक टोला मुहल्ले में हुआ। स्वर्गीय अब्दुर्रहमान खान की नौ संतानों (छह बेटे व तीन बेटियों) में मुमताज खान पांचवें नंबर पर हैं। गरीबी की मार झेल रहे परिवार में पैदा हुए मुमताज की पढ़ाई 12वीं तक ही हो सकी। उन्होंने अपने मुहल्ले मलिक टोला के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा पांच तक शिक्षा अर्जित की। इसके बाद छह से 12वीं तक शहर के मुस्लिम इंटर कालेज में पढ़े। इसे कुदरती देन ही कहा जाएगा कि मुमताज का मन पेंटिंग्स बनाने में बचपन से ही लगता था। इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने जिले के फतेहपुर ताल रतोय स्थित फतहपुर गर्ल्स इंटर कालेज में एक साल तक बाम्बे आर्ट का कोर्स किया। इसके बाद तीन साल तक वाराणसी में बीएचयू से फाइन आर्ट में प्रशिक्षण लिया। दक्ष होने के बाद मुमताज ने अपने मुहल्ले मलिक टोला में शहर के मुख्य मार्ग पर पेंटिंग्स की दुकान खोली। इसके अलावा आसपास के जिलों में होने वाली विभिन्न पेंटिंग्स प्रतियोगिता में भी भागीदारी करने लगे।
प्रेक्षागृह न होने का है मलाल
मुमताज को कलाकारों की कला के प्रदर्शन/बिक्री के लिये आडिटोरियम या प्रेक्षागृह न होने का मलाल है। वह बताते हैं कि कलाकारों की सफलता पर जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अफसर बहुत कुछ होने का दावा तो करते हैं, लेकिन ठोस कदम नहीं उठाया जाता। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने विश्व चैंपियनशिप जीती थी तो मऊ के विकास पुरुष कल्पनाथ राय ने प्रेक्षागृह बनवाने का वादा किया। मुहम्मदाबाद गोहना के विधायक व पूर्व मंत्री श्रीराम सोनकर ने भी वादा किया। कई अफसरों ने भी इस दिशा में भरोसा दिया, लेकिन आज तक यह धरातल पर नहीं उतर सका। उनका कहना है कि कलाकारों की कलाओं के प्रदर्शन का स्थान मिल जाता तो हजारों रोजी-रोटी से जुड़ते और बेरोजगारी दूर होती।



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