मऊ के लाल : न्याय दिलाने का नशा है अर्चना उपाध्याय को

03 Oct 2021

---बुलंद आवाज विशेष---
-औरों के दुख को बना लेती हैं अपना, मदद के लिये निकल पड़ते कदम
-गरीब बिटिया की शादी रचाकर नये घर में मनाया गृहप्रवेश का उत्सव
-टूटने के कगार पर पहुंचे हजारों पति-पत्नी के रिश्तों में घोल दी मिठास

बृजेश यादव
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मऊ : अपने साप्ताहिक कालम मऊ के लाल में आज हम आपको परिचित कराने जा रहे हैं कर्मठी व साहसी महिला अर्चना उपाध्याय से। शहर के फातिमा चौराहा के निकट सहादतपुरा में रहने वाली अर्चना को दुखियारों को न्याय दिलाने का नशा है। इनमें सबसे बड़ी खूबी यह है कि पीड़ित, गरीब, शोषित महिला हो या पुरुष, जिसके साथ भी अन्याय होते सुना, उसके दुख को अपना बना लेती हैं। उनके कदम न्याय दिलाने के लिये निकल पड़ते हैं। टूटने के कगाार पर खड़े हजारों दंपतियों के रिश्तों में मिठास घोलकर उनके संबंधों को जोड़ने में प्रमुख भूमिका अदा कर चुकी हैं।
विवाहिता को ससुराल में रखवा कर साधा दम
अर्चना उपाध्याय के साहसिक व सामाजिक कार्यों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है। उनके प्रमुख कार्यों में एक है गाजीपुर में ससुराल में विवाहिता को रखवाकर दम साधना। प्रकरण दस साल पुराना है। गाजीपुर में स्वर्णकार परिवार अपनी बहू को नहीं रख रहा था। वजह यह थी कि बहू उनके परिवार के अन्य सदस्यों से काफी पढ़ी-लिखी थी। बहू के मायके वाले कई पंचायत कराये, लेकिन ससुराल पक्ष रखने को तैयार नहीं हुआ। यह जानकारी जब अर्चना को हुई तो वह विवाहिता को लेकर पहुंच गईं गाजीपुर उसके ससुराल। वहां डेरा डाला और स्वर्णकार समाज के चार सौ लोगों को धिक्कारते हुए जगाया। अर्चना की बातों का असर यह हुआ कि स्वर्णकार समाज के लोग मौके पर पहुंचे, सबने पहल की। नतीजा यह हुआ कि ससुराल पक्ष ने बहू को अपना लिया। नासमझी में बिखर रहा यह रिश्ता दोबारा इस कदर जुड़ा कि आज वह परिवार हंसी-खुशी फल-फूल रहा है। अपने सेवाभाव व संस्कार से वही बहू व उससे जन्मे बच्चे आज परिवार की आंखों का तारा हैं।
बहुतों को लड़कर दिलाई पेंशन व आवास
अर्चना उपाध्याय विधायक-सांसद तो नहीं हैं, लेकिन उनके यहां उसी अंदाज में मदद की गुहार लगाने लोग आते हैं। शहर की राजमति, सुगिया, देवंती, कमलावती जैसी न जाने कितने विधवाओं, सुमेर, श्रीपति, मंगरु, किशोर जैसे बुजुर्गों को वृद्धा पेंशन दिलाने में अहम रोल अदा किया। समाज कल्याण विभाग का चक्कर लगाते-लगाते बुुजुर्ग व विधवाएं, महिलाएं जब थक जाते हैं। जब उनकी नहीं सुनी जाती तो अर्चना के पास पहुंचते हैं। वह उनकी परेशानी को विनम्रतापूर्वक सुनती हैं। आवश्यक होने पर उनके मसले को जिलाधिकारी तक ले जाती हैं और समाज कल्याण विभाग के कर्मचारियों से लड़ने में भी कोई गुरेज नहीं करतीं। उन्होंने दर्जनों पात्रों को कांशीराम आवास दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई।
अन्नदाताओं से अथाह प्रेम, किसानों खातिर राष्ट्रपति से मिलीं
अर्चना उपाध्याय किसी राजनीतिक दल की सदस्य नहीं हैं, लेकिन किसानों से उन्हें अथाह प्रेम है। पारिवारिक पृष्ठभूमि व्यवसायिक के साथ-साथ खेती-किसानी की भी रही है। वह किसानों के परिश्रम व उपज उगाने की घोर तपस्या के रग-रग से वह वाकिफ हैं। यही वजह है कि किसान संगठन जब-जब आंदोलन का बिगुल फूंकते हैं, तब-तब वह अग्रणी भूमिका में नजर आती हैैं। साढ़े तीन साल पहले उन्होंने किसानों के मसले को लेकर एक माह तक यूपी में यात्रा की। बुंदेलखंड में किसानों परिवारों की व्यथा सुन उनकी आंखों में आंसू आ गये। वहां की हालत यह है कि किसान कई एकड़ जमीन के मालिक तो हैं, लेकिन सिंचाई की व्यवस्था न होने के चलते खेती नहीं होती। परिवार के लोग मजदूरी करने को बाध्य हैं। उनके घर की लड़कियां 40 साल की अवस्था में भी कुंवारी मिलीं। इस मसले सहित किसानों को 60 साल की अवस्था पूरी करने के बाद पेंशन देने की मांग को लेकर वह अतुल कुमार अनजान सहित अन्य किसान नेताओं के संग राष्ट्रपति रामनाथ कोविद से मिलकर मिलीं।
अभिनय का भी शौक, भोजपुरी फिल्मों में किया काम
अर्चना उपाध्याय को अभिनय का भी शौक रहा। रंगमंच व अभिनय निर्देश की संस्था इप्टा से वह जुड़ी रहीं। उन्होंने दो भोजपुरी फिल्मों में अभिनय भी किया। पहली फिल्म मुंबई वाली मुनिया में उन्होंने किसान की पत्नी व तीन बच्चों की मां का रोल बखूबी निभाया। इस फिल्म में उनके घर की जमीन को हथियाने के लिये इलाके का रसूखदार परिवार किस हद तक परेशान करता है, उसे फिल्माया गया है। उनके पति को झूठे हत्या के प्रयास के मुकदमे में जेल भेज दिया जाता है। पिता को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने का विरोध करने पर सात-आठ वर्ष के दो बेटों को मारने के लिये इस कदर दौड़ाया जाता है कि वह दहशत के मारे घर छोड़कर निकल जाते हैं। अंत में वही तीनों बेटे रसूखदार परिवार के लोगों को सबक सिखाते हैं। यह फिल्म यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। इसके अलावा उन्होंने रघुपति राघव राजाराम नामक फिल्म में अभिनय किया। सामाजिक दायित्वों के निर्वहन व पारिवारिक जिम्मेदारी के चलते अभिनय का यह सिलसिला अभी तक फिलहाल यहीं रुका है।
लिखने में भी अभिरुचि, दूरदर्शन पर दिया साक्षात्कार
अर्चना की लिखने में भी अभिरुचि है। उन्होंने बुलंद आवाज को बताया कि हिन्दुस्तान अखबार में मऊ शहर करके एक कालम आता था। इसमें उनके अनेकों लेख छपे। वह दहेज प्रथा, किसानों, महिलाओं, बुजुर्गों की समस्याओं को लेकर लिखती रहीं। यही नहीं कृषि संबंधी मसलों पर मऊ दूरदर्शन में वह कई बार साक्षात्कार भी दे चुकी हैं।
इन दायित्वों का किया निर्वहन
-दीवानी न्यायालय स्तर से गठित सुलह-समझौता केंद्र की काउंसलर।
-बाल उम्र में श्रम करते बच्चों को मुक्त कराने के बाद उनके उत्थान को बनी बाल कल्याण समिति की सदस्य।
-अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में अनुसूचित जाति/जनजाति कमेटी की सदस्य।
-दीवानी कचहरी व बिजली विभाग की यौन प्रताड़ना समिति में भागीदारी।
-पुलिस विभाग द्वारा पति-पत्नी के बीच विवाद निपटाने के लिये बने महिला एच्छिक ब्यूरो की स्थापना सदस्य।
ससुराल व मायके का रहा भरपूर सहयोग
अचर्ना ने उस भ्रम को भी तोड़ने का काम किया, जिसे माना जाता था कि महिलाओं का काम केवल घर परिवार की जिम्मेदारी संभालना होता है। वह पुरुषों के बराबर समाजसेवा को समर्पित रहीं। ऐसा वह इसलिये कर सकीं कि मायके व ससुराल वालों का सकारात्मक दृष्टिकोण व भरपूर सहयोग रहा। अर्चना बताती हैं कि समाजसेवा का भाव उन्हें उनके पिता स्व.प्रभुनाथ पांडेय से आनुवंशिकता के रुप में मिला। शादी के बाद बिजली विभाग में कार्यरत उनके पति अखिलेश उपाध्याय का स्नेह, प्रेम व घर से बाहर निकलकर लोगों की मदद करने की प्रेरणा निरंतर बनी रही। उनके दो बेटों ने भी मां के सामाजिक दायित्वों को समझते हुए काफी सपोर्ट दिया।
लंबे समय तक चला पढ़ाई का सिलसिला
समाजसेवा के साथ-साथ अर्चना की पढ़ाई की सिलसिला भी चलता रहा। उनकी प्रांरभिक शिक्षा बिहार की राजधानी पटना में रविंद्र बालिका विद्यालय में हुई। अर्चना का मायका जिले के घोसी क्षेत्र में है। उनके पिता का पटना में व्यवसाय है, इसिलिये उनका परिवार वहां रहा। प्रभुनाथ पांडेय के दो बच्चों में अर्चना व उनके एक भाई हैं। अर्चना ने हाईस्कूल व इंटर की शिक्षा मऊ में यूपी बोर्ड से उत्तीर्ण किया। इसके बाद उन्होंने मगध विश्वविद्यालय बिहार से स्नातक किया। दांपत्य जीवन में आने के बाद भी उनकी पढ़ाई का सिलसिला जारी रहा। उन्होंने इलाहाबाद से बीएड के समकक्ष शिक्षा विशारद किया। वर्ष 2012 में उन्होंने अखिल भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा संचालित नेचुरो पैथी एंड योग साइन्स कोर्स किया। 2016 में उन्होंने एलएलबी का कोर्स पूरा किया।



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