मोदी जी, आपके राज में मर रहे हम

19 Nov 2016

---देश के रीढ़ मजदूरों की व्यथा----
-दिहाड़ी में मिली मजदूरी से लुगाई द्वारा बचाए गए पंद्रह सौ रुपये तीन दिन लाइन में लगकर बदले, हुए खत्म
-ना बाढ़ का मौसम और ना ही घर में लगी आग, दस दिन से आपदा से भी बदतर जीवन जीने को हुए हैं विवश
-बरसात के सीजन न होने पर भी काम-धंधा ठप, प्रधानमंत्री जी आप ही बताएं बीवी-बच्चों को लेकर कहां जाएं

बृजेश यादव
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आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी,
हम प्रार्थीगण कम पढ़े लिखे और मजदूरी कर पेट पर्दा पालने वाले मजदूर लोग हैं। आपने 2014 में अच्छे दिन लाने का सब्जबाग दिखाया तो हमें भी लगा आपका साथ देना चाहिए, दिया भी। अच्छे दिन तो न जाने कब आएंगे, लेकिन हमारे बुरे दिन शुरु हो गए हैं। आपके राज में हम मर रहे हैं।
मोदी जी, जबसे आपकी सरकार बनी आप हम मजदूरों को लाइन में खड़ा कर देते हैं। कभी राशन कार्ड आनलाइन कराने की लाइन, कभी जन-धन का खाता खोलवाने की लाइन, कभी पेंशन आनलाइन कराने की लाइन। उक्त तीनों लाइनों में तो महज तीन-चार दिन का श्रम व कुछ रुपये ही गंवाने पड़े। यहां तक तो ठीक न रहने के बाद भी जैसे-तैसे लाइन लगाकर आपने जो कहा, हमने उसका पालन किया। इस बार तो आपने हमें ऐसी लाइन में खड़ा कर दिया, जिससे भूखों मरने की नौबत उत्पन्न हो गई है।
दस दिन पहले आपने एक हजार और पांच सौ के पुराने नोटों का प्रचलन बंद क्या किया, हम पर तो पहाड़ टूट पड़ा। रोज कुंआ खोदने और पानी पीने की तर्ज पर श्रम करके 250 रुपये मजदूरी कमाने वाले हमारे जैसे लाखों लोगों को गश सी आ गई। कोई बता रहा था कि आपने नोट की बंदी इसलिए किया कि कालाधन, भ्रष्टाचार और नकली नोट पर अंकुश लगेगा, लेकिन हम आहत यह हैं कि आपने हमारे बारे में नहीं सोचा।
आपकी घोषणा के अगले दिन काम पर गया तो मालिक ने पुराने नोट ही मजदूरी देने की बात कही। हमने आपका हवाला देते हुए नया मांगा तो उसने काम से ही हटा दिया। मुंह लटकाकर दोपहर में ही हम घर पहुंचे तो लुगाई ने कारण पूछा। हमने आपकी घोषणा से लेकर मालिक के काम न देने तक की दास्तान बताई तो उसने माथा पीट लिया। लगी बड़बड़ाने, ढाई साल पहले बड़का चुनाव में हम कह रही थी कि जहां पहले से वोट देते आ रहे हैं, वहीं दिया जाएगा, लेकिन आपका माथा फिर गया था, जो अच्छे दिन की बात कहकर नई जगह वोट दिलवाया।
प्रधानमंत्री जी, आपको बता रहे हैं कि घंटे भर तक वह भी सुध-बुध खोई रही। इसी बीच लड़िकन आए तो टाफी-बिस्किट मांगने लगे। लुगाई ने उन्हें डांटा तो वे सहम से गए। शाम को लुगाई किराना की दुकान से उधार राशन ले आई। हमने कहा कर्जा कइसे भरा जाएगा तो उसने अपना बक्सा खोला। उसमें साड़ी के बीच हजार की एक और पांच सौ की एक नोट रखी थी, जिसे निकालकर दिया और कहा कि अब इन्हें चलना ही नहीं है तो कल आप बैंक जाकर बदल लाइएगा।
सच बताएं मोदी जी, तीन दिन बैंक में लाइन लगाई तो जैसे तैसे दस की एक गड्डी और सौ के पांच नोट मिले। इन तीन दिनों में किराना का दुकानदार और राशन उधार देने से मना कर दिया। रुपये बदलकर लाए और उसक कर्जा भरे तो पास में बचे सात सौ रुपये। तीन दिन पहले वे भी खत्म हो गए। काम के अभाव में हम घर पर बैठक हो गए हैं। पहले आपदा आने पर पास-पड़ोस के लोग मदद कर देते थे। इस बार तो आपने ऐसा बाण चलाया कि वह भी मदद नहीं कर रहे। सब लाइन लगाने, आगे ना जाने कब तक काम ना मिलने व अपनी फाकांकशी को लेकर परेशान हैं।
प्रधानमंत्री जी, आप भाषण दे रहे हैं कि काला धन वाले नींद की गोली खा रहे हैं। अरे हम मजदूरों के पास तो कालाधन क्या पिछली सरकार द्वारा बंद की गई चवन्नी भी नहीं है और हमारी चैन की नींद गायब है। मोदी जी, कृपा करके आप राष्ट्र के नाम एक और संबोधन करें और साफ-साफ बता दें कि हम लाखों मजदूर अपने बीवी-बच्चों को लेकर कहां जाएं, या फिर......। अपनी व्यथा बयां करने में कुछ गलत कह दिया हो तो मोदी जी क्षमा करिएगा।
प्रार्थी......
श्रीनिवास राम, बबलू बांसफोर, मानिकचंद राजभर,
सोहन राम, मोहन यादव, योगेंद्र, दीपक व लाखों मजदूर।



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